शासन के पट्टा देने और नवीनीकरण के नये नियम से हजारों लोग परेशान
नहर, तालाब और रेल पटरी के किनारे बसे लोगों को नही दिया जायेगा पट्टा
पट्टे का मकान खरीदने वालों के नवीनीकरण पर भी पेंच
ेंभिलाई । शासन के पट्टा देने एवं नवीनीकरण के कुछ नियम से हजारों लोगों लोगों को चिंता में डाल दिया है। क्योंकि राजीव गांधी आश्रय योजना के तहत प्रदाय किए जाने वाले आवासीय पट्टे को लेकर नहर, तालाब और रेल पटरी के किनारे आशियाना बनाकर रहने वालों को पट्टा नही दिये जाने की चर्चा से इन दिनों वे लोग खासे परेशान दिखाई दे रहे है जो वर्षों से ऐसे स्थानों पर मकान बनाकर या खरीद कर निवास कर रहे थे। इसके साथ ही पुराने पट्टे के मकान खरीदने वालों को नवीनीकरण का लाभ मिलने पर भी पेंच फंसने की संभावना खड़ी हो गई है।
निगम क्षेत्र में पट्टा नवीनीकरण करने, भू स्वामी अधिकार प्रदाय करने आवेदन फार्म, पट्टे से अधिक क्षेत्रफल पर काबिज भूमि का अनियमितीकरण एवं अधिकार में परिवर्तन करने सहित पट्टे के अवैध खरीदी बिक्री को नियमित करने का कार्य शुरू हो चुका है। इसके साथही चर्चा शुरू हो गई है कि नहर, तालाब और रेल पटरी के किनारे काबिज लोगों को पट्टा नहीं मिलेगा। इस बात से सबसे अधिक बेचैनी उन हितग्राहियों में देखी जा रही है जिन्होंने ऐसे ही स्थानों पर बने पूर्व में दी गई पट्टे के मकान को खरीदा है।
दरअसल इससे पहले वर्ष 1984, 1998 तथा इसके बाद वर्ष 2003 में शासन द्वारा लोगों को काबिज भूमि का पटटा प्रदान किया है। इसमें अनेक ऐसे मकान भी शामिल है जो नहर तालाब अथवा रेल पटरी के किनारे है। इन इलाकों के पट्टे वाली कई मकानों की अवैध तरीके से खरीदी बिक्री हो चुकी है। अब जब सरकार ने खरीदी बिक्री वाले प्रकरणों पर वर्तमान काबिज परिवार के नाम से पट्टा नवीनकरण करने का निर्णय ले लिया है तो नहर, तालाब और रेल पटरी के किनारे पट्टा नहीं देने का तय किया गया तथाकथित मापदंड हजारों परिवारों के लिए दुर्भाग्य साबित हो सकता है।
गौरतलब रहे कि पहली बार 1984 में काबिज भूमि का पट्टा देकर लोगों को मालिकाना हक प्रदान किया गया था। तब भिलाई निगम सहित भिलाई चरोदा निगम और जामुल तथा कुम्हारी पालिका क्षेत्र विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण साडा में समाहित थी। उस वक्त इन चारो निकाय क्षेत्र के नहर, तालाब और रेल पटरी के किनारे अपनी सीमा तय करते हुए काबिज लोगों को 30 वर्ष के लि पट्टा प्रदान किया गया था। इसके बाद वर्ष 1998 और 2003 के दौरान भी अनेक आसे लोगों को पट्टा दिया गया जो नहर और तालाबों के किनारे आशियाना बनाकर काबिज थे। अब इस बार ऐसे स्थानों में बसे लोगों को पट्टा दिए जाने पर कुहांसा छा गया है।
यहां पर यह बताना भी लाजिमी होगा कि पट्टे का मकान बेचना या खरीदना गैर कानूनी होने के बावजूद हजारों पट्टे धारियों ने ऐसा काम किया है। कुछ पट्टे के मकान तो ऐसे भ जो एक के बाद अनेक बार खरीदे बेचे जा चुके हैं। अब सरकार ने वर्तमान काबिज के नाम से पट्टा नवीनीकरण का निर्णय लिया तो लाखों की जमा पूंजी लगाकर पट्टे का मकान खरीदने वालों को मालिकाना हक मिलने की उम्मीद जाग उठी है। लेकिन नहर, तालाब और रेल पटरी के किनारे दूसरे के नाम की पट्टे वाली मकान को खरीदने वालों की इन दिनों नींद उड़ी हुई है।
नक्शे के साथ चल रहा सर्वे कार्य
राजस्व विभाग और निगम का अमला पट्टा का सर्वे बाकायदा नक्शा साथ में लेकर कर रहा है। इस नक्शे में नहर, तालाब और रेल पटरी की सीमा बनी हुई है। शासन का निर्देश है है कि नहर और रेल पटरी के किनारे पट्टे का सर्वे न किया जाए। इससे सिंचाई तथा रेल विभाग से आपत्ति लगने का अनुमान जताया जा रहा है। जबकि तालाब के संरक्षण के लिए पार पर बने मकानों की भी पट्टा सर्वे कार्य में अनदेखी का निर्देश है। बताते हैं सर्वे में लगी टीम इसी निर्देश का हवाला देकर नहर, तालाब व रेल पटरी के किनारे बने आवासों का पट्टा नहीं बनाने की बात कह रही है। इसके लिए उन्हे शासन द्वारा उपलब्ध कराये गए नक्शे का हवाला दिया जा रहा है।
पड़ोस में बन रहा पीएम आवास
शहर में वर्ष 1998 तथा 2003 में मिले पट्टे के आधार पर स्वीकृत प्रधानमंत्री आवास का निर्माण अभी भी कई वार्डों में चल रहा है। इसमें कई ऐसे भी इलाके है जबहां नहर, तालाब और रेल पटरी की सीमा बताकर वर्तमान में नया पट्टा व पुराने पट्टे के नवीनीकरण हेतु सर्वे नहीं किया जा रहा है। यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि पड़ोस में पट्टे के आधार पर प्रधानमंत्री आवास बन रहा है और उसके आसपास दूसरे का पट्टा खरीदने वालों को यह कहते हुए नवीनीकरण का लाभ देने से आनाकानी किया जा रहा है कि उनका मकान नहर, तालाब या फिर रेल पटरी के किनारे होने से राजस्व विभाग को पट्टा देने का हक नहीं है।