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एकाग्र रमाकांत श्रीवास्तव पर दो दिवसीय साहित्यिक आयोजन का समापन

एकाग्र रमाकांत श्रीवास्तव पर दो दिवसीय साहित्यिक आयोजन का समापन

दुर्ग। साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद संस्कृत विभाग छत्तीसगढ़ शासन और हिंदी विभाग शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय ‘एकाग्र रमाकांत श्रीवास्तवÓ का समापन शुक्रवार को हुआ। महाविद्यालय के राधाकृष्णन सभागार में सुबह शुक्रवार को दूसरे व अंतिम दिन सुबह पहले सत्र की शुरुआत Óकिशोर मन का यथार्थÓ विषय से हुई। जिस पर साहित्यकार राजेंद्र शर्मा ने कहा कि रमाकांत श्रीवास्तव ने बच्चों और किशोर मन को अपने लेखन में बखूबी उकेरा है। साहित्यकार राजीव कुमार शुक्ला ने कहा कि जिस सक्रियता के साथ रमाकांत श्रीवास्तव ने किशोर मन: स्थिति पर अपनी लेखनी चलाई है, वह काबिले गौर है। उन्होंने कहा कि साहित्य लेखन तभी सार्थक है, जब हम बड़ों के साथ-साथ बच्चों और किशोर की मन:स्थिति को भी इसका हिस्सा बनाएं। राजेंद्र शर्मा और राजीव कुमार शुक्ल ने अपने वक्तव्य में रमाकांत श्रीवास्तव की बाल व किशोरवय पर केंद्रित कहानियों का भी जिक्र किया। इस सत्र का संचालन उषा आठले ने किया। इसके उपरांत ‘कथेतर का वैभवÓ के अंतर्गत ‘छत्तीसगढ़ी गाथा गीतÓ पर जीवन यदु ने अपनी बात रखी। उन्होंने डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव के व्यक्तित्व का उल्लेख करते हुए कहा कि वे पेंटिंग और गायन में भी माहिर हैं, वहीं अंधा युग नाटक का निर्देशन किया और अभिनय कला में भी प्रवीण रहे। उन्होंने बहुत सारी कविताएं लिखीं लेकिन कभी प्रकाश में लाया नहीं। यदु ने रमाकांत श्रीवास्तव को उद्धृत करते हुए कहा कि-‘Óवो लेखक बड़ा हो ही नहीं सकता जो बच्चों के लिए कुछ न लिखे। बच्चों के लिए लिखने का अर्थ इस देश को संस्कार देना है।’Ó  जीवन यदु ने बताया कि रमाकांत श्रीवास्तव ने अखबारों में ‘Óबच्चू चाचा के किस्सेÓÓ नाम से कॉलम खास बच्चों के लिए लिखा। वहीं ‘संस्मरण साहित्य’ पर सियाराम शर्मा ने कहा कि रमाकांत श्रीवास्तव ने जितने संस्मरण लिखे हैं, उनमें उनका व्यक्तित्व झलकता है और समाज के साथ उनके संबंधों की जानकारी मिलती है। उन्होंने इस दौरान खास तौर पर स्व. ललित सुरजन और महावीर अग्रवाल पर लिखे संस्मरणों का उल्लेख किया। ‘निबंध’ पर अपनी बात रखते हुए बसंत त्रिपाठी ने समसामयिक विषयों पर रमाकांत श्रीवास्तव की लेखनी की चच्र्रा की। उन्होंने विशेष रूप से सिनेमा के निबंधों में सत्यजीत राय और अमिताभ बच्चन पर उनकी लेखनी की चर्चा की। इस सत्र का संचालन राजीव कुमार शुक्ला ने किया। दोपहर 2:00 बजे दूसरे सत्र में Óव्यक्तित्व के विविध आयाम विषयÓ पर सत्र की शुरुआत राजकुमार सोनी ने की। रमाकांत श्रीवास्तव की पत्नी दीपा श्रीवास्तव ने उनके साहित्यिक पहलुओं के अलावा निजी जीवन से जुड़ी बातों पर भी विस्तार से कहा। खास तौर पर उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि रमाकांत श्रीवास्तव अपनी रखी चीजों को भूल जाते हैं। उनके पेपर हमेशा खोज कर देने पड़ते हैं। वक्ता के तौर पर मौजूद रमाकांत श्रीवास्तव के कॉलेज के दिनों से मित्र रहे वरिष्ठ साहित्यकार रवि श्रीवास्तव ने भी कहा कि पेपर भूलने वाली आदत के हम सब गवाह रहे हैं। उन्होंने कॉलेज के दिनों का भी विस्तार से उल्लेख किया। रंगकर्मी ऊषा आठले ने रमाकांत श्रीवास्तव को एक गार्जियन के तौर पर उल्लेखित करते हुए कहा कि अपने रचनाकर्म के साथ-साथ उन्होंने युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन भी किया। आयोजन के अंतिम सत्र ‘संवादÓ में रमाकांत श्रीवास्तव ने  रघुवीर सहाय की कविता ‘राम सिंह मरा नहींÓ पर आधारित अपनी कहानी का पाठ किया और दर्शकों के सवालों के जवाब दिए। रमाकांत श्रीवास्तव ने अपनी कहानी पाठ के उपरांत कहा कि आज का समाज ऐसा ही हो गया है, जहां लोग वीडियो बनाने तो आगे आते हैं लेकिन बचाने कम ही लोग आते हैं। इस दौरान उनके साहित्यकर्म और प्रगतिशील लेखक संघ के संचालन को लेकर भी सवाल पूछे। जिस पर उन्होंने कहा कि दोनों काम उन्होंने हमेशा सहज भाव से किया। इस सत्र का संचालन जय प्रकाश व राजीव कुमार शुक्ला ने किया। साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद संस्कृत विभाग छत्तीसगढ़ शासन के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त और शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग के प्राचार्य आरएन सिंह ने आयोजन में सहभागिता के लिए सभी रचनाकारों का आभार जताया। धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अनिमेष
सुराना ने दिया।

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