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मदनवाड़ा में शहादत के 14 वर्ष, यादे और टीस के बीच जिंदगी

ना चाहते हुए भी हमारे परिवार 12 जुलाई 2009 की उस नक्सल घटना को हर साल याद कर ही लेते है, जिसने छीन लिया किसी का पुत्र, किसी का पति, किसी का पिता और भाई। 1, 2, 3, 4 नही, 29 पुलिस जवानों की शहादत हुई थी उस दिन। 14 वर्ष के इस कालखण्ड में हर बार जुलाई के महीने में हमारा दर्द बढ़ता है, आंसू भी और दर्द भी। ऐसा स्वाभाविक भी है।

निःसंदेह हर जवान यही सोचकर वर्दी पहनता है कि वह देश की सेवा करे। लेकिन शायद ही कभी विचार आता होगा कि उनकी विदाई भी ऐसे होगी, जो परिजनों के लिए कष्टकारी हो जाये। मदनवाड़ा में 12 जुलाई 2009 को नक्सलियों से आमने सामने की लड़ाई में 29 पुलिस जवान मातृभूमि के लिए न्योछावर हो गए, जिनकी आयु तब 30 वर्ष के आसपास रही होगी। इनमे कुछ विवाहित थे। उनके पीछे थी पत्नी और अबोध बच्चे, जो समझ नही पाए कि आखिर नियति ने यह क्यो किया?

परिवार के मुखिया का चले जाने का दर्द लम्बे समय तक पत्नी ही झेलती है, प्रत्यक्ष रूप से, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में। मान लिया की शहादत की स्थिति में एक सदस्य को सरकार अनुकम्पा नियुक्ति दे देती है, लेकिन क्या इससे पारिवारिक और सामाजिक चुनौतियां पूरी हो जाती हैं जो लंबे समय तक चलना है। बच्चों की शिक्षा से लेकर उनके मनोरंजन, बहुत सारी महत्वाकांक्षा और अनगिनत सवाल। इन्हें सुलझाना और हर बात कई उलझे हुए सवालों के जवाब देना बेहद मुश्किल हो जाता है। फिर, पति के बिना शहीद की विधवा बनकर जीना, समाज के आगे आना, कई तरह की बेड़ियों को तोड़ना अत्यंत दुरूह हो जाता है। क्योंकि यह सच है पति की मौजूदगी के समय पत्नी की स्वीकार्यता कुछ अलग होती है, और वैधव्य जीवन मे बिल्कुल अलग। लगभग हर क्षेत्र में तस्वीरे कमोबेश एक जैसी ही है।

जितना हमने महसूस किया है, जवानों के बलिदान पर उनके परिजनों को राष्ट्रीय पर्व पर प्रशासन सम्मानित करने के साथ उनका मनोबल बढ़ाता है लेकिन यह रस्म अदायगी से ज्यादा और कुछ नहीं। क्योंकि शहीदों के परिवारों की चुनौतियां उनके अलावा और कोई न तो जानता है और ना ही इनके समाधान के बारे में चिंता करता है। यानी सब कुछ उन्हें ही बर्दाश्त करना है लम्बे समय तक, यह जीवन रहने तक।

फिर भी गर्भ की अनुभूति इस बात पर होती है देश पर न्योछावर होने के लिए मातृभूमि ने हमारे प्रिय पात्र को चुना। चाहे कारण जो भी हो यह सच है कि छत्तीसगढ़ का बहुत बड़ा हिस्सा नक्सल समस्या की चपेट में है और इसी को निराकृत करने के लिए लगातार बड़ी संख्या में हम अपने जवान खोते जा रहे हैं,यह बेहद दुखदायी है। अत्यंत घृणास्पद विचारधारा का समर्थन करने वाला वर्ग कभी भी क्रांतिकारी नही कहला सकता। जिनकी बंदूकों के कारण सेंकडो, हजारों देशभक्त कर्तव्य की बलिवेदी पर सर्वस्व न्योछावर कर रहे है, उसका हिसाब जरूर होगा, हमे इसका पूरा भरोसा है। क्योंकि, हमारी आह, टीस, दर्द और हृदय की वेदना इतनी साती भी नही है। हमारे श्राप से एक दिन छत्तीसगढ़ की धरती नक्सलियों जैसे रक्तबीज से जरूर मुक्त होगी

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