सहसपुर लोहारा में कायम है शाही दशहरा मनाने की परम्परा

सहसपुर लोहारा में कायम है शाही दशहरा मनाने की परम्परा
पण्डित देव दत्त शर्मा
सहसपुर लोहारा
सबका संदेश न्यूज़ छत्तीसगढ़ कवर्धा- सहसपुर लोहारा में शाही दशहरा मनाने की सैकड़ों वर्ष पुरानी परम्परा आज भी कायम है । स्टेट की स्थापना के बाद से राजपरिवार का दशहरा में खाश सहभागिता शुरू हुई । नगर में दशहरे पर रावण का पुतला जलाने की परम्परा तत्कालीन रियासत के राजा बैजनाथ सिंह के दौर में शुरू हुई थी उसके बाद यह सिलसिला राजा ज्ञाने सिंह, राजा गुलाम सिंह, राजा केहर सिंह, राजे जगमोहन सिंह, राजा गिरराज सिंह, राजा
छत्रपाल सिंह, राजा यशवन्त राज सिंह और फिर राजा खड़गराज सिंह के दौर में भी चलता रहा । लेकिन अब पिछले दो साल से रावण के पुतला दहन को बंद कर रावण की प्रतिमा का पूजन किया जाने लगा ।
दशहरा के दिन सहसपुर लोहारा के राजा खड्गराज सिंह रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण में निकलते हैं । राजा की शाही सवारी राजमहल से निकलकर भगवती मंदिर, जमात के राधाकृष्ण मंदिर, महाबीर चौक हनुमान मंदिर से होते हुए रावण भांठा पहुँचती है ,नगर के मुख्य मार्गों से गुजरती है शाही सवारी, जहाँ राजा लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते हैं , लोगों की मान्यता है कि विजयदशमी के दिन राजा का दर्शन करना शुभ माना जाता है । इसीलिए दूर दराज से ग्रामीण दशहरा के दिन राजा के दर्शन के लिए सहसपुर लोहारा आते हैं । रावण भांठा में रावण की प्रतिमा का पूजन कर शाही सवारी राजमहल के लिए वापस होती है , जो राजमहल मार्ग पर शिव मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, भगवती मंदिर ,श्रीराम जानकी मंदिर होकर राजमहल पहुंचती है । राजा की शाही सवारी जब राज मार्ग पर श्री गुरु कृपा प्रसाद के पास पहुँची, तब शङ्कराचार्य जी के कृपापात्र शिष्य पण्डित देव दत्त शर्मा ने राजा खड्गराज सिंह को श्रीफल भेंट किया, जिसे राजा ने सहर्ष स्वीकार कर अभिवादन किया ।
सहसपुर लोहारा के राजमहल में लगता है शाही दरबार जहाँ नागरिक राजा से भेंट कर उपहार देते हैं और राजा खड्गराज सिंह उन्हें पान भेंट कर अभिवादन स्वीकार करते हैं।
सहसपुर लोहारा महल की भव्यता और सुंदरता आज भी है बरकरार । महल को देख कर नही लगता की यह वर्षों पुराना राजमहल है । सहसपुर लोहारा रियासत में रहा है राजपरिवार का दबदबा वर्तमान में यहाँ के राजा खड्गराज सिंह हैं । राजपुरोहित पण्डित द्वारिका प्रसाद दुबे बताते हैं कि दशहरा के दिन राजा नगर के प्रतिष्ठित मंदिरों के दर्शन करते हैं और शांम को रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं , जो रावण भांठा पहुंचकर रावण की प्रतिमा का पूजन करते हैं । राजा के साथ में हजारों लोग गाजे बाजे के साथ चलते हैं । आज से दो वर्ष पहले तक यहां राजपरिवार रावण दहन करता रहा है । वर्षों पुरानी इस परम्परा को राजपरिवार पीढी दर पीढ़ी आगे बढ़ाता रहा है । लेकिन बीते दो सालों से यहां रावण दहन की जगह राजा खड्गराज सिंह रावण का पूजन करते आ रहे हैं ,साथ में आदिवासी समाज के सैकड़ों लोग पारम्परिक वेशभूषा और गाजे बाजों के साथ नृत्य करते राजा के रथ के साथ चलते हैं।
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