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भोरमदेव महोत्सव 19 व 20 मार्च को होगी,जिला प्रशासन की तैयारी जोरों पर ,,आइए जानते है इससे जुड़ी कुछ रोचक जानकारी संक्षिप्त में Bhoramdev Festival will be held on March 19 and 20, the preparations of the district administration are in full swing, let us know some interesting information related to it in brief.

भोरमदेव मंदिर के आर्किटेक्चर के बारे में बात करें तो इस मंदिर की सरंचना कोणार्क मंदिर और खुजराहो से मिलती जुलती है। जी हाँ इस मंदिर में भी कोणार्क मंदिर और खुजराहो के समान स्थापत्य शैली में कामुक मूर्तियों के साथ कुछ वास्तुशिल्प विशेषताओं को जोड़ा गया है। गर्भगृह मंदिर का प्राथमिक परिक्षेत्र है जहाँ शिव लिंग के रूप में पीठासीन देवता शिव की पूजा की जाती है।

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मंदिर पूर्व की ओर एक प्रवेश द्वार के साथ बनाया गया है जो एक ही दिशा का सामना करता है। इसके अतिरिक्त, दक्षिण और उत्तर दिशाओं के लिए दो और दरवाजे खुलते हैं। हालांकि, पश्चिमी दिशा की ओर कोई दरवाजा नहीं है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार में गंगा और यमुना की प्रतिमाएँ दिखती हैं। मंदिर में भगवान शिव और भगवान गणेश के साथ साथ भगवान विष्णु के दस अवतारों की छवियों को भी दीवारों में चित्रित देखा जा सकता है।

पहले भोरमदेव मन्दिर के उत्तर द्वार पर स्थित भैरव देव में बलि दी जाती थी उसे 1974के आसपास प्रशासन,जैन समाज,हिन्दू समाज तथा भोरमदेव तीर्थकारिणी प्रबंध समिति के सहयोग से बंद कराया गया था।
एक समय था कि मेला अवधि को छोड़कर अन्य अवधि में भोरमदेव मन्दिर क्षेत्र में रात्रि में रुकने की मनाही थी।
मेले से महोत्सव तक के सफर में आदिदेव बुढ़ादेव (भोरमदेव) के आँगन में आदिवासियों की सभ्यता एवं संस्कृ़ति की पहचान तेरस के मेले को पहली बार भोरमदेव महोत्सव वर्ष 1994 में 27 ,28 और 29 मार्च को अविभाजित मध्यप्रदेश में तत्कालीन राजनांदगांव कलेक्टर अनिल जैन की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुआ था । उस समय कवर्धा के एस डी ओ राजस्व निसार अहमद हुआ करते थे । पहले भोरमे देव महोत्सव में 2 दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम तो भोरमे देव मंदिर क्षेत्र में होते थे परंतु तीसरे दिन साहित्यिक गतिविधिया कवर्धा में हुआ करती थी जो अब जिला मुख्यालय बन चुका है । प्रथम भोरमदेव महोत्सव में साऊथ ईस्टर्न कल्चरल सोसायटी द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमो को काफी सराहा गया था । विशेष रूप से माया जाधव और उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमो को सराहा गया था जो काफी दिनों तक चर्चा में रहा महाराष्ट्रीयन लोक नृत्य गीत “लावणी” ने बेतहाशा तालिया बटोरी थी तथा महीनो उक्त कार्यक्रम आम लोगो के बीच चर्चा का विषय बना रहा था ।
परंतु भोरमेदेव महोत्सव के इन 29 बरस के सफ़र में समय के साथ आदिवासियों के पारंपरिक मेले का सरकारी करण होने से समय के साथ साथ शास्त्रीय संगीत व नृत्य लोक गीत नृत्य के साथ साथ पंकज उदास , अनुप जलोटा , अनुराधा पौडवार , अलका याग्निक , ममता चंद्राकर जैसे अंतरराष्ट्रीय कलाकारों की प्रस्तुतियां भी हुई
सभ्यता बचाने के नाम पर पूर्व में लाखों रूपये पानी की तरह बहाये जा रहे थे, परंतु विगत के कुछ वर्षों के अनुभव से भोरमदेव महोत्सव छत्तीसगढ़ की सभ्यता एवं सस्कृति से दूर बालीवुड की चमक-धमक की ओर आकर्षित हो मुंबईया ठुमकों का मंच अब स्थानीय कलाकारों को महत्व के साथ साथ सारेगामा फेम कलाकारों का भजन व गीत संगीत होना है ।
जिले के विभिन्न मंदिरों के पुजारियों को अतिथि बना कर नए परम्परा की शुरुआत हुई है जो एक अच्छी पहल हो रही है।ऐतिहासिक और पुरातात्विक विभाग द्वारा की गयी खोज और यहाँ मिले शिलालेखो के अनुसार भोरमदेव मंदिर का इतिहास 10 वीं से 12 वीं शताब्दी के बीच कलचुरी काल का माना जाता है। भोरमदेव मंदिर के निर्माण का श्रेय फैनिनगवंश वंश के लक्ष्मण देव राय और गोपाल देव को दिया गया है। मंदिर परिसर को अक्सर “पत्थर में बिखरी कविता” के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र के गोंड आदिवासी भगवान शिव की पूजा करते थे, जिन्हें वे भोरमदेव कहते थे इसीलिए इस मंदिर को भोरमदेव मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। इतिहासकारों की माने तो यह मंदिर पूरे खजुराहो समूह से भी पुराना है।

ये है मंदिर के खास आकर्षण केंद्र

संग्रहालय

मंदिर परिसर के भीतर एक ओपन-एयर संग्रहालय भी स्थित है। यह संग्रहालय पुरातात्विक कलाकृतियों का एक विशाल संग्रह है जिसमे 2 या 3 वीं शताब्दी के कुछ अवशेषो को देखा जा सकता है। सती स्तंभ ’भी यहाँ प्रदर्शन पर हैं। उनके पास एक अद्वितीय वास्तुशिल्प रूपांकन है, जो जोड़ों को शोकपूर्ण मुद्राओं में दिखाते हैं। संग्रहालय परिसर में संग्रहित चित्रों जैसे लिंग और नंदी की झालरें भी हैं।

हनुमान मंदिर

भोरमदेव मंदिर परिसर में हालही में हनुमान जी के लिए एक मंदिर का निर्माण भी करबाया गया है। यह मंदिर प्रांगण के एक तरफ स्थित है। हनुमान जी के हाथ में शिव लिंग बना हुआ है 

मड़वा महल

मड़वा महल मुख्य मंदिर परिसर के 1 किमी के आसपास में स्थित है। इसका निर्माण नागवंशी राजा, रामचंद्र देव और ​​राज कुमारी अंबिका देवी की शादी के उपलक्ष्य में किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि इस मंदिर की संरचना मैरिज हॉल या पंडाल के समान है, इसलिए इसे इसका नाम मड़वा मिला। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर पारंपरिक वास्तुशिल्प अलंकरण हैं।

इस्तलीक मंदिर

2 या 3 वीं शताब्दी में सूखे या जले हुए मिट्टी की ईंटों से इस्तलीक मंदिर भोरमदेव मंदिर के पास स्थित एक और प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की संरचना को मुख्य भोरमदेव मंदिर से सटे हुए पाया जा सकता है। यह वर्तमान में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, जिसमें केवल मण्डप है और जिसमें मण्डप और प्रवेश द्वार नहीं है। उमा महेश्वर की छवियों के साथ यहां एक मूर्ति शिवलिंग की पूजा की जाती है।

भोरमदेव मंदिर की टाइमिंग –

भोरमदेव मंदिर की यात्रा पर जाने वाले पर्यटकों और श्र्धालुयों को बता दे भोरमदेव मंदिर श्र्धालुयों के घूमने के लिए प्रतिदिन सुबह सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुलता है।
बता दे भोरमदेव मंदिर पर्यटकों के घूमने और देवता के दर्शन के लिए बिलकुल निशुल्क है

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