सबका संदेश न्यूज़ रायपुर छत्तीसगढ़- अमूमन मंदिरों में देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बिलकुल सीधी दिखाई देती हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हजारों साल पुराने मां महामाया देवी मंदिर में विराजी मां की मूर्ति थोड़ी-सी तिरछी दिखती है। इसका कारण यह बताया जाता है कि कल्चुरि वंश के राजा मोरध्वज, मां के स्वप्न में दिए आदेश पर खारुन नदी से प्रतिमा को सिर पर उठाकर पांच किलोमीटर पैदल चले।
प्रतिमा को कांधे पर उठाकर ले जाया जाए। मां के आदेश पर राजा ने प्रतिमा को कांधे पर रखा। पांच किलोमीटर चलने पर राजा थक गए। जैसे ही प्रतिमा को नीचे रखा, वह प्रतिमा वही स्थापित हो गई। जिस जगह पर प्रतिमा रखी गई, वह जगह थोड़ी ऊंची थी। इसके चलते प्रतिमा तिरछी दिखाई पड़ती है।
प्रतिमा एक खिड़की से ही दिखती है
गर्भगृह में दो खिड़कियां हैं। इसमें से दाहिनी ओर की खिड़की से प्रतिमा दिखाई देती है, लेकिन बाईं खिड़की से नहीं दिखती। मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला बताते हैं कि 1977 में ‘महामाया महत्तम” पुस्तक में मंदिर के इतिहास का जिक्र किया गया है। इसके बाद 2012 में मंदिर ट्रस्ट की ओर से ‘रायपुर का वैभव श्री महामाया देवी मंदिर”प्रकाशित किया गया।
मां के चरणों में पहुंचती है सूर्य की किरणें
वास्तु शास्त्र और तांत्रिक पद्धति से निर्मित मां महामाया की प्रतिमा पर सूर्य अस्त होने के समय सूर्य की किरणें माता के चरणों का स्पर्श करती हैं। तीनों रूप में विराजीं मां मां महामाया देवी, मां महाकाली के स्वरूप में यहां विराजमान हैं। सामने मां सरस्वती के स्वरूप में मां सम्लेश्वरी देवी विराजी हैं।
महाकाली, मां सरस्वती, मां महालक्ष्मी तीनों स्वरूप में मां के दर्शन होते हैं। अंग्रेजी शासनकाल में विशेष देखरेख हैहयवंशी राजा मोरध्वज द्वारा बनाए गए मंदिर का कालांतर में भोसला राजवंशीय सामंतों ने नवनिर्माण करवाया। मुगल शासनकाल और अंग्रेजी शासनकाल में भी माता के चमत्कार से मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ती चली गई। अंग्रेजों ने भी मंदिर की विशेष देखरेख में योगदान दिया।
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