धर्म

यज्ञ के प्रसाद से दशरथ के घर हुआ राम जन्म

   सबका संदेश न्यूज़-  मैं दशरथ रघुवंश के कुलवृक्ष की एक शाखा। मां इंदुमति और पिता अज की संतान। मेरे नाम के पीछे की कहानी है, संतों ने पिता से कहा था आपकी संतान धर्मात्मा और सदा धर्म के दस अंगों का पालन करने वाली होगी। धर्म के दस अंग कौन से? धैर्य, क्षमा, संयम, अस्तेय , पवित्रता, इन्द्रिय निग्रह, शुद्ध बुद्धि, विद्या. सत्य और अक्रोध। ये दस धर्म रथ के दस अश्व हैं। जो इस रथ पर विराजित हो, वो दशरथ। इस तरह पिता के प्रेम और गुरुओं के आशीर्वाद के रुप में मुझे नाम मिला. दशरथ। पिता अज से विरासत में अयोध्या का दुर्लभ राज तो मिला ही, पराक्रम और धर्माचरण दोनों भी मिले। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। तीन पत्नियों के साथ सुख पूर्वक जीवन बीत रहा है। लेकिन…एक सुख जो संसार में हर पुरुष का स्वप्न होता है…उससे वंचित। संतान का सुख। अवध के राजमहल में राग-रंग की समस्त ध्वनियां बाल-किलकारियों के बिना ऐसे लगती हैं, जैसे शेषशायी विष्णु के भोग में तुलसीदल का अभाव। आयु युवा से अधेड़ और अधेड़ से वृद्धावस्था की ओर तेजी से भाग रही है लेकिन रघुवंश के कुलवृक्ष पर नई बेल का अंकुर नहीं फूट रहा। गुरु वशिष्ठ राजमहल में आए हैं। गुरुवर ने सुझाया अश्वमेघ यज्ञ के साथ पुत्रेष्टि यज्ञ किया जाए। इसका आचार्य विभांडक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि को बनाया जाए। हिरणी के गर्भ से जन्मे श्रृंगी तपोनिष्ठ हैं। उनके आशीर्वाद से रघुवंश को उत्तराधिकारी अवश्य मिलेगा। यज्ञ की तैयारी शुरू हुई। विभांडक पुत्र श्रृंगी ऋषि को ससम्मान आमंत्रित किया गया। कई दिनों आहुतियों और समिधाओं में बीते। अंततः पूर्णाहुति की घड़ी भी आ गई। अंतिम आहुति के पड़ते ही, यज्ञ कुंड से देव पुरुष अवतरित हुए। चारों ओर मंगलध्वनियां गूंज उठीं। हर तरफ शीतल, मंद और सुगंधित वायु बह रही थी। यज्ञ पुरुष अपने हाथ में यज्ञ प्रसाद का पात्र लेकर आए। यज्ञ आचार्य श्रृंगी को पात्र प्रदान किया। श्रृंगी देव ने मेरे हाथों में वो पात्र थमाया। आज्ञा दी, तीनों रानियों को इस खीर रुपी प्रसाद बांट दो। इसके प्रभाव से आपको अवश्य ही संतान की प्राप्ति होगी। मैंने उनकी आज्ञा का पालन किया। समय गुजरा। एक साथ तीनों रानियां गर्भवती हुईं। यज्ञ के प्रसाद को पाने का वक्त आ गया। राशि कौशल्या और कैकयी ने एक-एक और सुमित्रा ने दो पुत्रों को जन्म दिया। गुरु वशिष्ठ ने चारों राजकुमारों के नामकरण किए, कौशल्या पुत्र को राम, कैकई पुत्र को भरत और सुमित्रा के पुत्रों को लक्ष्मण और शत्रुघ्न नाम दिए। चारों पुत्रों की किलकारियों से अवध का राजमहल गूंज रहा है। राम के तेजमय सुंदर मुख के आगे पूर्णमासी का चंद्रमा भी पराजित है। राम ने सभी का मन मोह लिया है। पूरा महल राममय हो गया है और मेरे लिए तो राम का अर्थ है मेरा सर्वस्व।

 

 

 

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