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कैसे संघर्ष कर एक अलग पहचान बनाई ममता दीदी ने?

भारतीय राजनीति में बहुत कम ही ऐसे नेता रहे हैं जो क्षत्रप नेता होने के बाद भी राष्ट्रीय राजनीति (National Politics) में हमेशा सुर्खियों में ही रहे हैं. इनमें सबसे प्रमुख नाम है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का जो 5 जनवरी को 68 साल की हो गई हैं. वे आठवीं बार बंगाल की मुख्यमंत्री (Chief Minister of West Bengal) पद संभाल चुकी हैं और 20 मई 2011 से लगातार मुख्यमंत्री हैं. लेकिन इससे पहले का ममता बनर्जी के जीवन और राजनीति का सफर आसान नहीं था. वे हमेशा ही एक जुझारू नेता के रूप में दिखाई दीं और मुख्यमंत्री रहने के बाद भी वे बंगाल और देश के लिए कुछ कर गुजरने की संकल्प लिए दिखाई देती हैं.

स्वतंत्रता सेनानी की बेटी
ममता दीदी, लोग उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं, का जन्म 5 जनवरी 1955 को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे. जब ममता 17 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने पिता को दिया है. उनकी मृत्यु पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं मिलने के कारण हो गई थी.

धर्म से लेकर कानून की पढ़ाई
ममता 15 साल की उम्र में हायर सेकेंड्री की परीक्षा पास की और उसी साल उन्होंने राजनीति में भी प्रवेश किया था. उन्होंने जोगमाया देवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की और उसके बाद इस्लामिक इतिहास में एमए की डिग्री कलकत्ता यूनिवर्सिटी से हासिल की. फिर उन्होंने श्री शिक्षायंतन कॉलेज से शिक्षण में डिग्री पाने के बाद जोगेश चंद्रा चौधरी लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री हासिल की.पढ़ाई के दौरान ही राजनीति में दखल
लेकिन पढ़ाई के दौरान ही केवल 15 साल की उम्र में ही राजनीति में आग गईं थीं. जोगमाया देवी कॉलेज कमें उन्होंने छात्र परिषद की यूनियन की स्थापना की जो उस समय कांग्रेस आई पार्टी की छात्र शाखा हुआ करती थी. यहां उनके नेतृत्व में परिषद ने सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्यूनिस्ट) की संबंद्ध ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट ऑरगनाइजेशनको हराया और अपनी राजनैतिक क्षमताओं का परिचय दिया था.दो बार सुर्खियों में
इसके बाद वे कांग्रेस आई की विभिन्न संगठनात्मक पदों पर रहीं. 1970 में कांग्रेस में शुरू हुए उनके करियर के बांच साले के बाद उन्होंने जय प्रकाश नारायण का विरोध करते हुए उनकी कार के सामने नृत्यकर सबका ध्यान खींचा. इसके बाद वे कांग्रेस में ऊपर उठती रहीं और 1984 को एक बार फिर चर्चा में तब आईं जब उन्होंने दिग्गज कम्यूनिस्ट नेता सोमनाथ चटर्जी को जाधवपुर संसदीय सीट से हरा दिया. 1991 के चुनावों से उन्होंने दक्षिण कलकत्ता की सीट 2009 तक नहीं गंवाई.कांग्रेस से टूटा रिश्ता
लेकिन ममता दीदी मुख्य रूप से वामपंथियों के खिलाफ संघर्ष करने में हमेशा आगे रहीं और उनके विरोध प्रदर्शनों को भी वाम सरकार की पुलिस ने बल प्रयोग से कुचला लेकिन ममता के जुझारूपन और संघर्ष को नहीं तोड़ सके. बाद में वाम दलों और कांग्रेस की नजदीकियों की वजह से 1997 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और उन्होंने खुद की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की स्थापना की और जल्दी ही उनकी पार्टी बंगाल में प्रमुख विपक्षी दल भी बन गईकेंद्र में भाजपा से नजदीकी और दूरी
1998 के बाद से वे एनडीए के साथ वाजपेयी सरकार में शामिल हुईं और देश की रेल मंत्री रहने के दौरान उन्हें काफी लोकप्रियता भी मिली. इस बीच वे कई मुद्दों पर भाजपा से नाराज भी हुईं लेकिन फिर सरकार और एनडीए में वापस भी आती रहीं. 2004 में वाजपेयी सरकार के जाने के बाद उनकी भाजपा से दूरियां बढ़ती गईं और 2009 में उन्होंने कांग्रेस गठंबंधन कर अपनी पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर वापसी कराई.लेकिन साल 2011 ममता दीदी के जीवन का बहुत बड़ा परिवर्तनकारी रहा. उनकी पार्टी ने पश्चिम बंगाल में बड़ी जीत हासिल करते हुए दशकों की वामपंथी सरकार को हटाने में सफलता हासिल की और उनकी जद्दोजहद का फल मिला. इसके बाद से ममता अब तक लगातार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं हुई हैं और धीरे धीरे उनके विपक्ष का चेहरा वामपंथ से बदल कर भाजपा का हो गया लेकिन वे लगातार अपने कुर्सी बनाए रखने में सफल रहीं.

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