Uncategorized

तथ्यपरक वास्तविक कहानी मानव जीवन एक विरोधाभास हैं

तथ्यपरक वास्तविक कहानी मानव जीवन एक विरोधाभास हैं।सुख-दुःख , अच्छाई बुराई, और हानि-लाभ की घटनाएं जीवन में मिश्रीत हैं । ज़िंदगी की हंसी-ख़ुशी सफ़लता के वैभव में जीवन चलता हैं तो कभी जीवन में ऐसा दौर भी आता हैं कि रिश्ते के फ़ूल मुरझा जाते हैं। जाने वाले तो इस दुनिया से स्वर्गवासी हो जाते हैं लेकिन यहां रहने वाले को इस सुखद और दु:खद घटनाओं को भूलना मुश्किल होता हैं। साहित्य जीवन का अभिन्न अंग हैं और यह अपने समय का आईना होता हैं। श्रीमती शान्ति थवाईत व्याख्याता राजनीति शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कुरदा चांपा में कार्यरत हैं। विद्यालय में पढ़ाने के बाद आज़कल गृह नगर चांपा में रहते हुए स्वतंत्र लेखन और सामाजिक कार्य में सक्रिय हैं। महानगरीय आपाधापी से दूर अपनी जड़ों और संस्कृति को बचाए रखती हुई , सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानियां लिखती हैं । कई सम्मान और पुरस्कार इन्हें हासिल हैं । दीपावली रोशनी का त्यौहार हैं। दिया तो जलता हैं लेकिन रोहित के दिल का अंधेरा नहीं मिटता। ममता की याद में आज़ उसकी आंखें भरी हुई हैं,उसकी खुशियां गायब हैं । दीपों की जगमगाहट में, आतिशबाज़ी के शोरगुल से बहुत दूर एक दीप सदा के लिए बुझ गया । इन्हीं यादें पर केन्द्रित ममता की सूनी हो गई दीवाली आप तक प्रस्तुत हैं । यह बेहद दिलचस्प और सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं । शशिभूषण सोनी

*ममता की सूनी हो गई दीवाली ।*

दीपावली खुशियों का त्योंहार हैं लेकिन कभी-कभी हमारे जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटनाएं घटित हो जाती हैं , जब हर पल हम मर-मर के जिंदगी जीते हैं तो हर त्यौंहार फीकी लगती हैं यानी कि सूनी लगती हैं । इस बार की मेरी कहानी कुछ इसी प्रकार की घटनाओं को लेकर लिखी गई सच्ची कहानी हैं ।
रोहित गुमसुम-सा अकेला अपने घर की छत में बैठा हुआ था । चारों ओर पटाखों की आवाजें उसके कानों में गूंज रही थी परंतु उसके मन में इसका कोई असर नही हो रहा था । वह छत से आकाश को एकटक देखे जा रहा था उसकी आंखों से टप-टप आंसू बहते जा रहा था । थोड़ी गुलाबी ठंडी होने के बावजूद उसे नीचे जाने का मन नहीं कर रहा था ।वह आकाश में चांद व टिमटिमाते तारों को देख कुछ सोचते हुए बुदबुदाने लगा कि ममता तुम कौन-सी तारा हो ? काश तुम्हारा चेहरा मुझे किसी तारे में नज़र आ जाएं ? ममता क्यों , क्यों ? तुम मुझे छोड़कर क्यो चली गई ? वैसे तुम्हारा कोई दोष नही हैं तुमने तो कैंसर जैसी बीमारी को मात देने के बावजूद बढ़िया जीवन जी रही थी । प्रकृति या यूं कहे ईश्वर को ही मेरे साथ तुम्हारा रहना नागवार गुज़रा और मुझसे तुम को छिन लिया । ममता ‘ आई लव यू मुझें हर पल तुम्हारी याद आ रही हैं ।’ ••• ममता को याद करते-करते उसके साथ बिताए जीवन के अठारह साल उसकी आंखों के सामने झूलने लगा ।
रोहित तीन भाइयों व दो-बहनों में सबसे बड़ा था । मां पिताजी ने रोहित के नौकरी मिलते ही उसके लिए रिश्ता खोजना शुरु कर दिया । उसके लिए ऐसी लड़की तलाशने लगे जो पूरे परिवार को साथ लेकर चले । ईश्वर की कृपादृष्टि से रोहित के लिए ममता मिल गई । ममता एक किसान की सर्वगुण संपन्न बेटी थी। पढी-लिखी लेकिन उसे नौकरी करना पसंद नही था । वह सिलाई कढ़ाई में बहुत पारंगत थी और उसने सिलाई को ही अपना कैरियर बनाना शुरु कर दिया था । रोहित पास के गांव में ही नौकरी करता था ‌। ममता सिलाई करते हुए अपना घर गृहस्थी संभाल रही थी । सब कुछ बढ़िया चल रहा था। दो-साल कैसे गुजर गये पता ही नही चला । अचानक माताजी की तबियत ख़राब हो गई अस्पताल ले जाया गया लेकिन हार्ट अटैक से वो बच नहीं पाईं ।माता जी के देहावसान से इधर पिताजी एकदम गुमसुम रहने लगे धीरे-धीरे उनको भी बीमारी ने घेर लिया और वो भी एक दिन सबको छोड़कर अनंत यात्रा पर निकल गए जहां से कोई वापस नहीं आता ।
ममता व रोहित के ऊपर घर की पूरी जवाबदारी आ गई। इसी बीच उनके जीवन में एक लक्ष्मी रुपी गुड़िया ने कदम रखा । मां बाप बनने का यह एक सुखद अहसास था । समय बीतता गया दो भाइयों को पढ़ाना व बहनों को पढा-लिखाकर अपने पैरों मे खड़ा करने के बाद विवाह करना अब उनके जीवन का लक्ष्य बन गया था । दोनों भाई व बहनें अपनी भाभीजी यानि कि ममता से बहुत प्यार करती थी । ममता थी ही प्यारी-सी । दोनों भाइयों को पढ़ा लिखाकर उनकी नौकरी लगवाने तक ममता ने बहुत त्याग किया ।इसी बीच उनके जीवन में एक नन्हें बालक ने भी कदम रखा था । एक बेटी व एक बेटा से परिवार संपूर्ण प्रतीत होता था । बहनों की पढ़ाई हो गई थी , उनकी नौकरी के साथ-साथ योग्य लड़के की भी तलाश जारी थी । दोनों बहनों के लिए जब अच्छा रिश्ता आया तो उनकी भी विवाह तय कर दी गईं । दोनों बहनों का एक साथ विवाह हो गया । अपने ससुराल में वो भी खुश हैं । दोनों नौकरी कर रही हैं एक शिक्षिका तो दुसरी आंगनबाड़ी में सुपर वाइजर हैं । दोनों भाई भी समय के अनुसार आगे बढ़ते हुए अपने अपने कार्य में लग गए । एक ने नौकरी तो दुसरे ने बिजनेस करना शुरु कर दिया । दोनों अपने-अपने पैरों में खड़े होते ही उनकी भी शादी करके वे अपना फ़र्ज़ पूरा करना चाहते थे और इसमें भी वो कामयाब हो गए । आज़ सब अपने-अपने परिवार में मग्न हो गये । पूरा परिवार ख़ुश था ।

रोहित का स्थानांतरण दूसरी जगह हो गया । वो अपने बच्चों के साथ गांव से लगे शहर में रहने लगा । अचानक ममता एक दिन सिलाई करते-करते बेहोश हो गई । बेटी ने पानी की झींटे मार कर होश में लाया । रोहित जैसें ही घर आया बेटी ने यह बात पापा को इत्मीनान से बताई । ममता ने कमज़ोरी होने का हवाला देकर रोहित को शांत करा दिया । ममता अब बार-बार चक्कर खाकर बेहोश होने लगी । ममता ने इसको हल्के में लेते हुए रोहित को शांत करवाने का काम करती रही । परंतु रोहित ने अब ममता की एक ना सुनते हुए उसको डाक्टर के पास दिखाया । डाक्टर ने उसे एक बड़े डाक्टर का पता दिया और उसे शहर जाने की सलाह दी और उसे एक पर्ची थमाया । रोहित ने जब डाक्टर का नाम व अस्पताल का नाम देखा तो उसके होश उड़ गये । आंखों के सामने अंधेरा-छा गया ।फिर भी अपने को संभालते हुए उसने ममता को कुछ भी नही बताया । दूसरे दिन दोनों बड़े शहर गए जहां वो अस्पताल था ।ममता ने अस्पताल का नाम पढ़ते ही रोहित से सवाल किया कि आप डर रहे हो क्या जी कि मुझे कैंसर हो गया हैं ? अरे कैंसर हो भी जाएगा न तो भी मैं आपको छोड़कर थोड़ी ही जाने वाली हूं चलिए पहले तो चेक अप करवा लेते हैं । डाक्टर ने पूरे शरीर की जांच की व सैंपल के लिए ख़ून लिया व उसे चेक करने के लिए सैंपल लेकर सबसे बड़े शहर मुंबई भेजा । वो लोग दवाई वगैरह लेकर घर आ गए । एक हफ़्ते बाद रिपोर्ट आया रिपोर्ट में वही आया जिसकी आशंका उन्हें पहले से ही थी । ममता भी जान गयी कि उसे कैंसर हैं वह भी गले का कैंसर । उसने हिम्मत नही हारी , सबको बोलती रहीं कि मैं केंसर को मात दे दूंगी आप लोग देख लेना । एक नियत तिथि को ममता के गले का आप्रेशन हुआ। परिवार के सब लोगों ने यथासंभव तन, मन और धन से सहयोग दिया । देवरों ने, ननदो ने ममता और उनके परिवार की सेवा-सुश्रुवा में दिन-रात एक कर दिया । सब बारी-बारी से ममता की देख-रेख करने लगे । सबके प्रयासों से , सहयोग से , दुआओं से ममता धीरे-धीरे ठीक होने लगी थी । वह ख़ुश हो रही थी जो भी उसे देखने आता सबको बड़े ही प्रेम से बातचीत करती थी और इत्मीनान से कहती कि देखों मैने केंसर को कैसे परास्त किया हैं सब ख़ुश होकर उसकी बातों को समझते थे और उसके आत्मविश्वास की सराहना करते रहते थे । एक दिन रात का सन्नाटा गहरा चुका था तभी अचानक उसकी आंखें खुली घर पर ताका तो घड़ी की सुइयां साढ़े बारह पर थी । पास में ही रोहित निहार रहा था वह भी ममता के पास आकर बैठ गया। कुछ मिनट तक दोनों किसी बात पर आपस में विचार करने लगे। साल भर में ममता अस्पताल का चक्कर काटकर किसी तरह से स्वस्थ जीवन जी रही थी । पूरा एक कार्टून में खाली की गई दवाईयों के सैकड़ों पैकेट इस बात की ओर इंगित कर रहा था कि उसके इलाज़ में लाखों रुपए खर्च किए गए होंगे लेकिन कैंसर का दवाई चल ही रहा हैं । बेटी 10 कक्षा में थी बेटा आठवी में अध्ययन रत था । दोनों को देखकर ममता व रोहित जी का मन व्याकुल हो रहा था । अचानक ममता की तबियत बिगड़ने लगी । साल भर बाद कही फ़िर तो नहीं ? यह सोच- सोचकर रोहित का मन आशंकाओं से घिर गया । उसने भाइयों को बुलाया । सबने अस्पताल में चेक अप करवाने का निर्णय लिया ।ममता को अस्पताल में भर्ती कराया गया । फिर ईलाज की प्रक्रिया शुरु हुई । ममता कहती रही कि उसे कुछ नही होगा । पर ऐन दीपावली में धनतेरस के दिन ही ममता हमेंशा के लिए सो गई । अस्पताल में ही उसने रोहित की बाहों में यह कहते हुए दम तोड़ा कि मेरे बच्चे व मेरे पूरे परिवार की जवाबदारी अब आपके कंधो पर ही हैं ।रोहित की आंखों से अश्रुओं की धारा झर-झर करके बह रही थी वो चाहता था कि जोर-जोर से चिख-चिखकर रोए , पर वह एक मर्द था उसने अपने ग़म को अपने अंदर समेटा आंसूओं की धार को रोका व उठकर अस्पताल की औपचारिकता पूरी करने के लिए चल दिया । ममता को घर लाया गया ।

अन्तिम विदाई के लिए जब ममता को सोलह श्रृंगार किया जा रहा था तो उसकी ख़ूबसूरती और बढ़ने लगी । लाल-साडी लाल बिंदी, लाल चूड़ी व लाल सिन्दूर , ऐसे लग रही थी जैसें वह दुल्हिन बनकर फ़िर मेरे से बात करेंगी जैसें विवाह के समय हुआ था परन्तु यह मेरी कल्पना थी ।ममता तो सो गयी थी सोई तो ऐसा कि फ़िर कभी ना ज़िंदगी में उठने के लिए । ममता को गए हुए आज़ तीसरा दिन था । बड़ी दीवाली थी चारों तरफ़ शोर-शराबा , पटाखों की आवाजें , अनारदाना की जगमगाहट झालरों की लडियां से पूरा वातावरण रोशन था । नीचे में घर के सब सदस्य बैठें हुए थे । तभी मेरे नज़दीक आकर किसी ने मुझ पर आहिस्ता से हाथ रखा वह हमारी ही बेटी थी । पापा पापा कहकर वह एकदम गले से लिपट गई फ़िर उसने मुझें इशारा ही इशारा में इंगित किया कि पापा वो देखिए मैंने ऊपर आकाश की ओर देखा एक गुब्बारे के अन्दर टिमटिमाता हुआ दिया सामने से जा रहा था धीरे धीरे वो नजरो से ओझल हो रहा था ठीक वैसे ही जैसें ममता हम सबकी नजरों से ओझल हो गई । दिये की नजरों से ओझल होते ही फ़िर वही अंधेरा छा गया जो मेरे मन-मस्तिष्क में चल रहा था । आख़िरकार अब मेरे जीवन की दीवाली हमेंशा सूनी रहेगी , अंधेरी रहेंगी ।
लेखिका : श्रीमती शान्ति थवाईत व्याख्याता ( राजनीति विज्ञान) शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कुरदा ( चांपा )प्रस्तुतकर्ता : शशिभूषण सोनी

Related Articles

Back to top button