समग्र ब्राह्मण परिषद् ने किया प्रांत स्तरीय संस्कृत वाचन सम्मेलन का आयोजन.
समग्र ब्राह्मण परिषद् ने किया प्रांत स्तरीय संस्कृत वाचन सम्मेलन का आयोजन.
समग्र ब्राह्मण परिषद् छत्तीसगढ़ द्वारा देवभाषा संस्कृत एवं संस्कृत के अभ्यस्त विद्वानों के सम्मान में आज रायपुर के सिविल लाइन स्थित वृंदावन हाल में “प्रांत स्तरीय संस्कृत वाचन सम्मेलन का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों द्वारा मंगलाचरण पाठ के साथ दीप प्रज्वलित कर भगवान श्री परशुराम जी एवं माता सरस्वती के छायाचित्र पर माल्यार्पण किया गया.
तत्पश्चात् ध्येय मंत्र का सामूहिक उच्चारण किया गया. इसके बाद श्रीमती प्रमिला तिवारी, श्रीमती प्रमिला मिश्रा तथा संस्कृत भारती छत्तीसगढ़ के प.चंद्रभूषण शुक्ला द्वारा उपस्थित अतिथियों के विषय में जानकारी प्रदान करते हुए स्वागत किया गया.
मुख्य अतिथि ब्रम्हचारी स्वामी डा.इंदुभवानंद जी महराज ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि संस्कृत विश्व की सर्वाधिक प्राचीन भाषा है. संस्कृत भाषा को सभी भाषाओं की जननी माना जाता है. संस्कृत सभी प्रकार से सम्पन्न व सक्षम भाषा है। इसे देवभाषा, देववाणी, सुरभारती व अमृतवाणी की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि संस्कृत भाषा का आविष्कार मनुष्यों ने नहीं बल्कि देवलोक के देवताओं ने किया है. संस्कृत भाषा भारत की पहचान है. हमारी सभ्यता और संस्कृति की धुरी है. यह मधुर, सरस, ललित, पवित्र, दोषों से रहित, अमृततुल्य वैज्ञानिक भाषा है। वेद, शास्त्र, उपनिषद, गीता, रामायण, महाभारत की भाषा संस्कृत ही है, सभी को इसका पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है.
विशिष्ट अतिथि महंत श्री वेदप्रकाशाचार्य जी महराज ने अपने विचार प्रगट करते हुए कहा कि संस्कृत का अध्ययन – अध्यापन भाषागत प्रांतीयता के विकार को दूर करके संसार में धर्म स्थापना, वेदों की वाणी, मंत्रों का उच्चारण, ऋषियों के पवित्र ज्ञान के माध्यम से विश्व शांति की स्थापना कर सकता है. इस कार्य के लिए संस्कृत भाषा के प्रति समर्पण भाव आवश्यक है. यह भाषा मानव को मानवता सिखाती है. विकारों को दूर कर मंत्रों की पवित्रता प्रदान करती है. स्वास्थ्य लाभ व दीर्घायु का वरदान देती है, यही नहीं अपितु ज्ञान का आधार, संस्कारों का समावेश व उन्नति की राह भी प्रशस्त करती है.
कार्यक्रम के अध्यक्ष डा.दादूभाई त्रिपाठी जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है. संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना है.
कार्यक्रम के अंत में आभार प्रकट करते हुए संगठन के प्रदेश समन्वयक पं.शैलेन्द्र रिछारिया ने कहा कि संगठन सदैव प्रत्यक्ष रूप से समाजोपयोगी एवं सनातन धर्म से जुड़े उद्देश्यों के क्रियान्वयन का प्रयास कर रहा है जिसकी सफलता में संगठन सहयोगियों के अलावा समाज के स्वजनों सहित सनातन समाज का साथ है.
कार्यक्रम में मंच संचालन डा.श्रीमती आरती उपाध्याय द्वारा किया गया.
संस्कृत स्त्रोत्र, श्लोक एवं संस्कृत नृत्य नाटिका के प्रस्तुतिकरण के आयोजन में डा.रामकिशोर मिश्र, डा.तोयनिधि वैष्णव, डा.बलदाऊ प्रसाद शर्मा, डा.शिवेश्वर उपाध्याय, डा.मनीषा पाठक, डा.कुमुद कान्हे, प्रो.पार्थ सारथी राव, डा.संध्या रानी शुक्ला, कु.कृष्नोनकी घोष, कु.तिष्या पटेल, चि.कृष्णव्रत मिश्रा, चि.तेजस त्रिपाठी, चि.श्रेयस त्रिपाठी, कु.पावनी कान्हे, चि.दिव्यांश झा, श्रीमती सुनीता अग्रवाल जी, चि.अवधूत पांडेय, चि.अनुज पांडेय, खुशबू सिंघानिया, डा.उर्मिला शर्मा, श्रीमती प्रीति रानी तिवारी, डा.श्रद्धा मिश्रा, शिल्पा मिश्रा, श्रीमती कल्पना शुक्ला, डा.गरिमा ताम्रकार, श्रीमती अनिता तिवारी, श्री तायोनिधि शर्मा, श्रीमती प्रमिला मिश्रा, कु.गार्गी देवांगन, श्रीमती रीता दास, श्री हेमंत दुबे, श्री मृगांक शर्मा, श्री सचिन शर्मा, श्री राकेश शर्मा, चि.अनंत बाजपेयी, कु.मैत्रेयी कोतवालीवाले, कु.गायत्री कोतवालीवाले, अनुपमा नायक, पं.श्रीकांत तिवारी, श्रीमती प्रभा दुबे, श्रीमती वैजयन्ती तिवारी जी, श्रीमती ईश्वरी देवांगन, चि.विकास दुबे, कु.हितीश्री शर्मा, चि.आदित्य शुक्ला ने प्रस्तुति दी.
संगठन के प्रदेश अध्यक्ष डा.भावेश शुक्ला पराशर ने जानकारी दी कि इस कार्यक्रम में श्रीमती आरती शुक्ला, श्रीमती स्वाति मिश्रा, श्रीमती पद्मा दीवान, श्रीमती खुशबू शर्मा, श्रीमती प्रभा दुबे, श्रीमती शशि द्विवेदी, श्रीमती मदालसा तिवारी, पं.सजल तिवारी, पं.विवेक दुबे, पं.संजय शर्मा, पं.दीपक शुक्ला, पं.गौरव मिश्रा, पं.अनुराग त्रिपाठी, पं.अखिलेश त्रिपाठी का विशेष योगदान रहा.