छत्तीसगढ़

प्रभु के वामन अवतार के वृतांत का विस्तार पूर्वक वर्णन श्रोताओं को श्रवण पान करवाया, जिसमें कृष्ण जन्मोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया गया

श्रीमद भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर महाराज श्री जी ने प्रभु के वामन अवतार के वृतांत का विस्तार पूर्वक वर्णन श्रोताओं को श्रवण पान करवाया। जिसमें कृष्ण जन्मोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया गया। कथा के चतुर्थ दिवस पर श्रोता समुदाय ने महाराज श्री जी के श्रीमुख से कथा का श्रवणपान किया।
भागवत कथा के चतुर्थ दिवस में
महाराज श्री जी ने कथा में बैठे सभी भक्तों को सुंदर सा कीर्तन अपने मुखारविंद से श्रवण कराया। महाराज श्री जी ने कथा की शुरूआत करते हुए कहा कि भगवान के उत्सव में सम्मिलित होने का सौभाग्य भाग्यशाली स्त्रियों पुरुष, देवी – देवताओं मनुष्य को ही प्राप्त होता है। जिसके स्वीकृत नहीं है उसको भगवान के मंगल कार्यों में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त नहीं होता है। संसार की माया की इतनी उलझने है वहां से फुर्सत ही कहा है की आये के ठाकुर जी के उत्सव में वो सम्मिलित हो जाएँ। कथा पंडाल में पहुंचकर एक दम से प्रार्थना करते है किस लिए हम सब के घर में शांति हो हमारे चित्त में शांति हो। हमारे चित्त में शांति कब होगी जब हम शांति का दान देंगे। चाहे भगवान के मंदिर में, चाहे भगवान की कथा पंडाल में। भगवान वहीं देते हैं जो हम भगवान को देते हैं । अगर हम मंदिरों में, तीर्थों में कथा पंडालों में अशांति देंगे तो ये अशांति हमारे जीवन में आ जाएगी और अगर हम वहां जाकर शांति का परिचय देंगे तो हमारे जीवन में शांति आ जाएगी। बहुत ज्यादा जरूरी है की कथा में जाकर हम शांति का परिचय दें।
महाराज श्री जी ने कथा क्रम बढ़ाते हुए कहा की श्रीमद भागवत कथा श्रवण करने का फल लौकिक और पारलौकिक दोनों ही है। हमें भगवान से प्रीति कैसे करनी चाहिए। उसके लक्षण कैसे होने चाहिए। अगर हम भगवान से प्रीति करना चाहे तो हम क्या करें श्रीमद भागवत ग्रन्थ में वृत्रासुर जिस समय देवराज इंद्र के हाथ में बज्र देखकर सामने मृत्यु को देखकर क्यूंकि बज्र से वृत्रासुर की मृत्यु होनी है। तो उस युद्ध क्षेत्र में भी उस बज्र में भी वृत्रासुर को भगवान का दर्शन हो रहा है। नारायण का दर्शन हो रहा है। और यहाँ पर उन्होंने तीन उदाहरण दिए। की मुझे आपसे प्रीति कैसे होनी चाहिए हे महाराज भगवान हरि की स्तुति करते हुए उसने कहा जैसे छोटा सा पक्षी नवजात पक्षी माँ के बहार चले जाने पर अन्न तृण भोजन की व्यवस्था करने के लिए माँ को बहार जाना ही पड़ता है। पर उस घोर भयानक जंगल में जैसे वो नवजात शिशु तमाम बड़े – बड़े हिंसक पक्षियों से भयभीत होकर जंगली जानवरो से भयभीत होकर प्रेत्यक पल अपनी माँ का चिंतन करता है। ये कौन से पक्षी की बात हो रही है जिसके अभी पंख नहीं निकले जो अभी अपने सामर्थ में नहीं है। अपने आप अपनी वो सुरक्षा नहीं कर सकता। और आहारनेस चिड़िया के उड़ जाने पर उसका बच्चा अपने को असुरक्षित महसूस करता है। और जब – जब माता न आ जाये तब तक एक – एक क्षण अपनी माँ का चिंतन करता है। एक भी क्षण अपनी माँ के चिंतन से दूर नहीं होता। माँ को देखकर ची ची करके चिल्लाता है। और उसे बहुत बड़ा सुख प्राप्त होता है। वो सुख की अनुभूति करता है। हे प्रभु जैसे चिड़िया के चले जाने पर चिड़िया का बच्चा आहारनेस अपनी माँ का चिंतन करता है वैसे ही मैं प्रत्येक पल एक – एक क्षण आपका स्मरण करता रहू हे नाथ मैं आपको कभी न भूलू ऐसी कृपा कर कीजिये।
महाराज श्री जी ने श्रीमद्भागवत कथा चतुर्थ दिवस के प्रसंग का वृतांत सुनाते हुए बताया कि वामन अवतार भगवान विष्णु के दशावतारो में पांचवा अवतार और मानव रूप में अवतार था। जिसमें भगवान विष्णु ने एक वामन के रूप में इंद्र की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लिया। वामन अवतार की कहानी असुर राजा महाबली से प्रारम्भ होती है। महाबली प्रहलाद का पौत्र और विरोचना का पुत्र था। महाबली एक महान शासक था जिसे उसकी प्रजा बहुत स्नेह करती थी। उसके राज्य में प्रजा बहुत खुश और समृद्ध थी। उसको उसके पितामह प्रहलाद और गुरु शुक्राचार्य ने वेदों का ज्ञान दिया था। समुद्रमंथन के दौरान जब देवता अमृत ले जा रहे थे तब इंद्रदेव ने बाली को मार दिया था जिसको शुक्राचार्य ने पुनः अपन मन्त्रो से जीवित कर दिया था।
महाबली ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा ने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। बाली भगवान ब्रह्मा के आगे नतमस्तक होकर बोला “प्रभु, मै इस संसार को दिखाना चाहता हूँ कि असुर अच्छे भी होते हैं। मुझे इंद्र के बराबर शक्ति चाहिए और मुझे युद्ध में कोई पराजित ना कर सके। भगवान ब्रह्मा ने इन शक्तियों के लिए उसे उपयुक्त मानकर बिना प्रश्न किये उसे वरदान दे दिया।
शुक्राचार्य एक अच्छे गुरु और रणनीतिकार थे जिनकी मदद से बाली ने तीनो लोकों पर विजय प्राप्त कर ली। बाली ने इंद्रदेव को पराजित कर इंद्रलोक पर कब्जा कर लिया। एक दिन गुरु शुक्राचार्य ने बाली से कहा अगर तुम सदैव के लिए तीनो लोकों के स्वामी रहना चाहते हो तो तुम्हारे जैसे राजा को अश्वमेध यज्ञ अवश्य करना चाहिए।
बाली अपने गुरु की आज्ञा मानते हुए यज्ञ की तैयारी में लग गया। बाली एक उदार राजा था जिसे सारी प्रजा पसंद करती थी। इंद्र को ऐसा महसूस होने लगा कि बाली अगर ऐसे ही प्रजापालक रहेगा तो शीघ्र सारे देवता भी बाली की तरफ हो जायेंगे।
इंद्रदेव देवमाता अदिति के पास सहायता के लिए गए और उन्हें सारी बात बताई। देवमाता ने बिष्णु भगवान से वरदान माँगा कि वे उनके पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लेकर बाली का विनाश करें। जल्द ही अदिति और ऋषि कश्यप के यहाँ एक सुंदर बौने पुत्र ने जन्म लिया। पांच वर्ष का होते ही वामन का जनेऊ समारोह आयोजित कर उसे गुरुकुल भेज दिया।इस दौरान महाबली ने 100 में से 99 अश्वमेध यज्ञ पुरे कर लिए थे। अंतिम अश्वमेध यज्ञ समाप्त होने ही वाला था कि तभी दरबार में दिव्य बालक वामन पहुँच गया।
महाबली ने कहा कि आज वो किसी भी व्यक्ति को कोई भी दक्षिणा दे सकता है। तभी गुरु शुक्राचार्य महाबली को महल के भीतर ले गये और उसे बताया कि ये बालक ओर कोई नहीं स्वयं भगवान विष्णु हैं वो इंद्रदेव के कहने पर यहाँ आए हैं और अगर तुमने इन्हें जो भी मांगने को कहा तो तुम सब कुछ खो दोगे।
महाबली अपनी बात पर अटल रहे और कहा मुझे वैभव खोने का भय नहीं है बल्कि अपने प्रभु को खोने का है इसलिए मै उनकी इच्छा पूरी करूंगा।
महाबली उस बालक के पास गया और स्नेह से कहा “आप अपनी इच्छा बताइये”।
उस बालक ने महाबली की और शांत स्वभाव से देखा और कहा “मुझे केवल तीन पग जमीन चाहिए जिसे मैं अपने पैरों से नाप सकूं”।
महाबली ने हँसते हुए कहा “केवल तीन पग जमीन चाहिए, मैं तुमको दूँगा।
जैसे ही महाबली ने अपने मुँह से ये शब्द निकाले वामन का आकार धीरे धीरे बढ़ता गया। वो बालक इतना बढ़ा हो गया कि बाली केवल उसके पैरों को देख सकता था। वामन आकार में इतना बढ़ा था कि धरती को उसने अपने एक पग में माप लिया।
दुसरे पग में उस दिव्य बालक ने पूरा आकाश नाप लिया। अब उस बालक ने महाबली को बुलाया और कहा मैंने अपने दो पगों में धरती और आकाश को नाप लिया है। अब मुझे अपना तीसरा कदम रखने के लिए कोई जगह नहीं बची, तुम बताओ मैं अपना तीसरा कदम कहाँ रखूँ।
महाबली ने उस बालक से कहा “प्रभु, मैं वचन तोड़ने वालों में से नहीं हूँ आप तीसरा कदम मेरे शीश पर रखिये।
भगवान विष्णु ने भी मुस्कुराते हुए अपना तीसरा कदम महाबली के सिर पर रख दिया। वामन के तीसरे कदम की शक्ति से महाबली पाताल लोक में चला गया। अब महाबली का तीनो लोकों से वैभव समाप्त हो गया और सदैव पाताल लोक में रह आचगया। इंद्रदेव और अन्य देवताओं ने भगवान विष्णु के इस अवतार की प्रशंशा की और अपना साम्राज्य दिलाने के लिए धन्यवाद दिया।
इसके बाद महाराज श्री जी के सानिध्य में सभी श्रोताओं ने श्री कृष्ण जन्मोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया। बधाईयां गीत हुई कथा विश्राम हुई।

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