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तरह तरह की अफवाह युक्त शँका शुरु हो जाती है कि भगवान गणेश जी का विसर्जन कब करें

 

गणेश विसर्जन कब करें।

*हल्के में मत लेना कोई , ये उनके लाल है…*
*जिनकी माता स्वयं महाकाली और पिता स्वयं महाकाल है….*

गणेश विसर्जन के दिन भद्रा व पंचक आदि को लेकर लोगों के मन में तरह तरह की अफवाह युक्त शँका शुरु हो जाती है कि भगवान गणेश जी का विसर्जन कब करें ?????

*आईये आप लोगो को इस शँका का समाधान बता रहा हूं। प. मनोज शुक्ला*

पहले तो यह समझ लें कि हर तीज त्योहार एक निश्चित नक्षत्र के आसपास ही पडता है । जैसे –
जन्माष्टमी – रोहणी नक्षत्र
तीजा – हस्त नक्षत्र
श्रावणी कर्म – श्रवण नक्षत्र में
गणेश स्थापना में भद्रा
राखी में भद्रा
होळी में भद्रा

इसी तरह हर साल के गणेश विसर्जन/ अनंत चतुर्दशी के दिन भद्रा व पंचक अनिवार्य रूप से होता ही है चाहे दिन में पडे या रात में !

अब पंचक क्या है? ये समझ लें
पंचक का सीधा सा अर्थ है 5 गुणा ।
पंचक के 5 नक्षत्रो में पूजा , अनुष्ठांन करने से 5 गुना अच्छा व शुभ फळ मिळता है । शास्त्रो में पंचक में शुभ कार्यो व धार्मिक क्रिया कलाप के लिय निषेध नही है। बल्कि पंचक में पूजा अनुष्ठान करने शुभ कार्य करने का 5 गुना फल प्राप्त होता है।

केवळ इन कार्यो का ही निषेध किया गया है 👇👇👇👇

शव का अंतिम संस्कार , छत ढालना , दक्षिण दिशा की यात्रा करना , लकडी काटना, पलंग या चारपायी बनाना ।

9 तारीख को अनन्त चतुर्दशी है । हवन करने के बाद पूरे दिन भर गणेश जी का विसर्जन सूर्यास्त के पहले तक किसी भी समय किया जा सकता है ,

इस सम्बन्ध में विद्वानो व ज्योतिषाचार्यो का कथन है कि –
भद्रा और पंचक ही केवल विघ्न नहीं हैं। व्यतिपात, कक्रजादि योग, मासदग्ध तिथियाँ, मासशून्य तिथियाँ , ग्रहण आदि अनेक चीजें हैं वो सब भी विघ्न ही हैं।
लेकिन
भगवान गणेश तो विघ्नहर्ता स्वयं हैं इसलिए उन्हें अपने किसी कार्य के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं है। न स्थापना के समय न विसर्जन के समय।

इसके आलावा गणेश विसर्जन हमारा तात्कालिक निर्णय नहीं होता है। बल्कि
जिस दिन हमने पूजा करने का निर्णय लिया उसके लिए शुभ मुहूर्त चुना तो पूजा के संकल्प में विसर्जन का संकल्प भाव भी मन में रहता ही है।
इसलिए विसर्जन के लिए अलग से मुहूर्त देखने की अनिवार्यता नही रह जाती है।
*छत्तीसगढ़ में प्राचीन समय से चली आ रही क्षेत्रीय लोकाचार के अनुसार अनन्त चतुर्दशी को हवन करके उसी दिन या दूसरे दिन पूर्णिमा को दिनभर मूर्ति विसर्जन किया जाता है। इसलिये किसी भी तरह की सुनी सुनाई बातों में आकर आवाहित करके – निवेदन करके बुलाये हुए देव को समय पूर्व विसर्जित कर देना उनका अपमान है जिसका दुष्परिणाम अवश्यसम्भावी है।*

उपरोक्त समस्त बातो को ध्यान में रखते हुए किसी भी तरह की शँका न करके , विधि विधान से पूजा करें । तथा 9 तारीख शुक्रवार को हवन करने के बाद शाम तक तथा 10 तारीख शनिवार को दिन भर विसर्जन कर सकते है।

किसी भी पार्थिव देवी देवता या पूजन पश्चात निर्माल्य सामग्रियों को दिन में , सूर्यास्त पूर्व ही नदी/तालाबों में विसर्जन करना चाहिये।

भगवान गणेश आप सब का मंगल करें।

इन्ही शुभ कामनाओ के साथ –

लेख संकलन –
पंडित मनोज शुक्ला महामाया मन्दिर रायपुर छत्तीसगड़ 

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