छत्तीसगढ़

गुरु के द्वारा ही हम परमात्मा को जानते है :- स्वामी सदानंद सरस्वती*

*गुरु के द्वारा ही हम परमात्मा को जानते है :- स्वामी सदानंद सरस्वती*

आत्मा – परमात्मा जैसे शब्द भले हम सुनते रहते है लेकिन इनके सच्चे स्वरूप का बौध तो गुरू वाक्यों से ही होता है कह सकते है की परमात्मा ज्ञान का द्वार गुरु ही है यदि वह न हो तो हम परमात्मा को जान पाए यह असंभव है उक्त उद्गार पूज्यपाद स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने चातुर्मास्य प्रवचन के अंतर्गत गीता प्रवचन करते हुए व्यक्त किए पूज्य स्वामी जी ने आगे कहा कि आकाश तत्व एक ही है उसमे कभी भेद नहीं होते तथापि नाम और उपाधि से धाराकाश , माथाकाश, महाकाश , आदि कहा जाता है इसी तरह तीन अवस्था , तीन गुण के साक्षी आत्मा के परमत्व के भी समझा जा सकता है देहो पाधियां इसमें भ्रम उत्पन्न जरूर करती है लेकिन विद्वान इस भ्रम से निकल जाता है की वह विद्या गुरुगम्य वश हो हमे जो अपना बोध होता है की में हूं यह बोध क्या है मेरी सत्ता तो निर्विवाद है किसी को यह शंका नहीं है की में हूं की नही पर में क्या हूं यह शंका अवश्य है क्योंकि यह अनुभव निरंतर बदलता रहता है कभी हम समझते थे कि हम बालक है पर अब हम समझते है कि हम युवा है कभी हमे अनुभव होगा की हम वृद्ध है यह जो तीन अनुभव अलग – अलग समप में होते हैं इसमें यह सिद्ध होता है की यह तीनों हमारी अवस्थाएं है हम नही इसी तरह अनेक उपाधियों को हम कभी अपना स्वरूप समझते है तो फिर उसे ही नकार देते है यह सब अनुभूतियां यह स्पष्ट कर देती है कि हम तीनो शरीरों तीनो अवस्थाओ और तीनो गुणों से परे कोई विलक्षण तथ्य ही है पर वह तत्व क्या है यह बिना गुरु के नही जान सकते पूज्य स्वामी जी ने कहा की इस संसार में गुरु के सिवा दूसरा कोई नही है जो हमे हमारे सच्चे स्वरूप का बौध कराए पिता माता कहेंगे तू पुत्र है पत्नी कहेगी तू पति है भाई मित्र और अन्य नामो से पुकारने वाले भी संसार में बहुत मिल जायेगे पर गुरु ही एक येसा है जो कहता है तू नित्य युद्ध – बुद्ध – मुक्त एक अविनाशी सत चित आनंद है

*सह अस्तित्व है ब्रह्मा का उपदेश :- स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी*

ब्रह्मा जी ज्ञानियों में श्रेष्ठ है वे जगतगुरु है उनकी शिक्षाएं आज भी समाज में अपनाई जप्ति है सह – अस्तित्व, पारस्परिक सहयोग आदि जैसे गुण यदि आज भी समाज में देखने को मिलते हैं तो ब्रह्मा जी की शिक्षा का ही परिणाम है उक्त उद्गार आपने चातुर्मास प्रवचन में गुरु गीता बताते हुए स्वामी श्री 1008 अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने परमहंसी मंच से व्यक्त किए मनुष्य देवताओं को यज्ञ के द्वारा हवि देते है और देवता वर्षा के द्वारा मनुष्यों को अनाज के उत्पादन को सुनिश्चित करते हैं इस तरह से एक दूसरे का सहयोग कर दोनों सुस्थिर हो पाते है |

*सही समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए*

ब्रह्मचारी श्री निर्विकल्प स्वरूप ने बताया कि कभी-कभी हमारा समय अच्छा नहीं रहता है ऐसे में हमें घबराना नहीं चाहिए अपितु सही समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए जो व्यक्ति सही समय की प्रतीक्षा करता है वह सही समय को प्राप्त भी कर लेता है समय का सदुपयोग कर वह अपना कल्याण कर सकता है इसीलिए सही समय जब तक ना आए तब तक प्रतीक्षा करनी चाहिए और धैर्य नहीं खोना चाहिए कार्यक्रम से पूर्व पूज्य शंकराचार्य जी की पावन पादुकाओं का पूजन हुआ मन्यवाचन ऋतुराज पंडित ने किया जगदीश कुशवाहा ने कविता का वाचन किया मंगलाचरण शुभ पाठक और आदर्श दीक्षित जी ने किया जी के वैध ने स्वागत भाषण किया कार्यक्रम का संचालन अंकित तिवारी और कार्यक्रम का संयोजन अरविंद मिश्रा जी ने किया |

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