अहमदाबाद में जगन्नाथ स्वामी का दर्शन और पूजन कर छत्तीसगढ़ अंचल के लोगों के लिए मांगी राजेश सोनी दंपति ने आशिर्वाद
भारतवर्ष में युगों युगों से रथयात्रा की पावन परंपरा चली आ रही हैं,जो मनुष्य में समरसता, भक्ति और एक दुसरे के प्रति समन्वय एवं भाईचारा का संदेश देती आ रही हैं । अनादिकाल से भारतवर्ष में निकलने वाली महाप्रभु जगन्नाथ स्वामी जी की यह रथयात्रा तीन स्थानों से मुख्य रुप से धार्मिक भक्तिभाव से निकलती हैं , जिसे पूरा विश्व देखता हैं । प्रथम हैं उड़ीसा प्रांत के जगन्नाथ पुरी से निकलने वाली रथयात्रा यह उड़ीसा राज्य के लिए सबसे बड़ा उत्सव होता हैं । सुबह-सुबह इस रथयात्रा की शुरुआत होती हैं और संध्या तक यह रथयात्रा गुड़ीचा मंदिर पहुंच जाता हैं । भगवान दुसरे दिन रथ से उतर कर मंदिर में पधारते हैं और सात दिनों तक वहीं विराजमान रहते हैं । दशमी को वहां से धूमधाम पूर्वक नगर भ्रमण करते हुए वापस लौटते हैं । दुसरी रथयात्रा अहमदाबाद के गुजरात के सुप्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर से निकलती हैं और अपने मामा घर रणछोड़ मंदिर सरसपुर में पंद्रह दिनों तक विश्राम करते हुए पुनः मुख्य मंदिर में जाकर भक्तों को दर्शन देती हैं । इसी प्रकार तीसरी रथयात्रा इंदौर के छत्री बांग स्थित वैंकटेश मंदिर से ध्वज पताका फहराकर निकाली जाती हैं । रथयात्रा के पूर्व दर्शन लाभ प्राप्त करने और छत्तीसगढ़ अंचल के लोगों के सुख शांति और समृद्धि की कामना से राजेश कुमार सोनी एवं श्रीमति दुर्गा देवी सोनी अपने तीन बच्चों के साथ पहुंचे और इस महान रथयात्रा के साक्षी बने। साहित्यकार शशिभूषण सोनी ने बताया कि गुजरात के अहमदाबाद में विश्व प्रसिद्ध हिन्दूओं के धार्मिक आस्था रखने वाले पवित्र मंदिर में श्री जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलराम स्वामी के अत्यंत पवित्र मंदिर हैं । आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को यहां यहां जगन्नाथ स्वामी जी की रथयात्रा निकलती हैं । भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी आनंदमय चेतना जागृत करने वाले देव पुरुष हैं । इनकी नज़र में राजा-प्रजा , पंडित पुजारी, रोगी-निरोगी , अमीर-गरीब, शुद्र-ब्राम्हण सब मनुष्य समान हैं । जाति पाति से परे मंदिर में सबको भगवान दर्शन देते हैं। ये कलयुग में साक्षात् परब्रह्म और परमात्मा हैं । इस अवसर पर अहमदाबाद पहुंचकर साक्षी बने सराफा व्यवसायी राजेश कुमार सोनी ने बताया कि प्रभु श्री जगन्नाथ स्वामी 15 दिन पहले से ही अपने मामा घर सरसपुर में रहने के लिए आ जाते हैं । इसलिए मंदिर में जगन्नाथ स्वामी के स्थान पर प्रतीक रुप में उनके तैल चित्र को देवतुल्य मानकर पूजा-अर्चना होती हैं । यहां जगन्नाथ स्वामी की महिमा ही ऐसी है कि श्रद्धालु भक्त एक बार मंदिर पहुंच जाते हैं कि वहां से महाप्रसाद पाये बिना आने की इच्छा ही नहीं होती । अमृत समान महाप्रसाद के एक एक दानें के लिए श्रद्धालु भक्त उमड़तें हैं और प्राप्त करते हैं , हम लोगों ने भी चांवल के भात,दाल और मिक्स स्वादिष्ट सब्जी के भोग लगाकर का रसास्वादन किया । साथ में यात्रा कर रहे टंकेश्वर प्रसाद सोनी ने भी बताया कि राजेश दंपति ने इसके पूर्व मंदिर पहुंचकर महंत श्री-श्री 1008 महामंडलेश्वर दिलीप दास जी से आशीर्वाद लिया और कंचन की नगरी चांपा , छत्तीसगढ़ अंचल और स्वर्णकार समाज के लोगों की सुख , समृद्धि और खुशहाली के लिए जगन्नाथ प्रभु जी से प्रार्थना की ।
*जात-पात और छुआछूत का निषेध ।*
जगन्नाथ मंदिर में बिना किसी भेदभाव के लोग महाप्रसाद ग्रहण करते हैं । सर्वधर्म में सद्भाव रखने वाली पूर्व पार्षद नगर पालिका परिषद , चांपा श्रीमति शशिप्रभा सोनी ने कहा कि यह परंपरा आदिवासी शबरी के समय से चली आ रही हैं । बिना किसी जाति धर्म भाषा, भेदभाव और रोक-टोक को भुलाकर भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा में शामिल होने जाते हैं और स्वयं को धन्य समझते हैं । वैसे भी जगन्नाथ मंदिर में किसी भी प्रकार की छुआछूत की भावना नहीं हैं। श्रद्धांलु भक्त तो दुर की बात हैं मैंने जगन्नाथ पुरी में यात्रा के दौरान देखा कि कई ब्राम्हण भी चण्डाल के हाथ से बने महाप्रसाद को लेकर प्रेम से खाते हैं।सभी जाति संप्रदाय के मानने वाले लोग भगवान जगन्नाथ स्वामी के दर्शन करते हैं और जनम-जनम के लिए पुण्य के भागीदार बनते हैं । वैसे भी छुआछूत के अभाव को बौद्धधर्म का प्रभाव कहना बिल्कुल ग़लत हैं यह संभव ही हैं कि यहां वैदिक परंपरा या वैष्णव मत के प्रभाव से छुआछूत के बचे-खुचे अवशेष अब समाप्त हो गए हैं और लोग सर्व-धर्म, सद्भाव और संस्कृति में विश्वास करने लगे हैं । आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान के तीनों विग्रहों यथा – भगवान जगन्नाथ स्वामी,बलभद्र और बहन सुभद्रा को सजा-धजाकर बाहर निकाला जाता हैं और लोग बिना भेदभाव के रथयात्रा में शामिल होते हैं । इसी कारण भारतवर्ष में रथयात्रा एक उत्सव का रुप धारण कर लिया हैं ।