जांजगीर

आचार्य युगल किशोर शास्त्री द्वारा बहुत ही सुंदर ढंग से कथा का रसपान कराया गया जांजगीर( खैजा) वाले

आचार्य युगल किशोर शास्त्री द्वारा बहुत ही सुंदर ढंग से कथा का रसपान कराया गया जांजगीर( खैजा) वाले
आयोजक  हुलेश्वर द्विवेदी श्री मति लता द्विवेदी द्वारा अमरकंटक में श्री मद,भागवत पुराण का आयोजन आचार्य युगल किशोर शास्त्री के मुखार बिंदु से कथा का रसपान किया जा रहा है अपार भीड़ के साथ लोग कथा का आनंद उठा रहें हैं समुद्र मंथन पृथ्वी के निर्माण के लिए हुआ था मगर विष्णु पुराण में समुद्र मंथन के कुछ और ही कथा छुपी हुई है समुद्र मंथन का कारण देवी लक्ष्मी की खोज देवी लक्ष्मी की क्षीर सागर मैमें विलुप्त होने के बाद जब उनकी तलाश की गई। इंद्र द्वारा भगवान विष्णु के पुष्पक का तिरस्कार होते देख कर दुर्वासा ऋषि के क्रोध की सीमा न रही उन्होंने देवराज इंद्र को श्री लक्ष्मी से हीन हो जाने के श्राप दे दिया, दुर्वासा मुनि के श्राप के फल स्वरुप लक्ष्मी उसी क्षण स्वर्गलोक को छोड़कर अदृश्य हो गई लक्ष्मी के चले जाने से इंद्र आदि देवता निर्बल और श्री हीन हो गए। इंद्रपाल ने जानकर देख तीनों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और देवगण को पराजित करके स्वर्ग के राज्य पर अपना कब्जा कर लिया।
दुर्वासा ऋषि का श्राप था परब्रह्मा भगवान विष्णु भगवती लक्ष्मी के साथ विराजमान थे देवगण भगवान विष्णु की स्तुति करते हुए भोले भगवान आपके श्री चरणों में हमारा बारंबार प्रणाम करते हुए बोले कि हम सब जिस उद्देश्य से आप के शरण में आए हैं कृपया करके आप उसे पूरा कीजिए दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण माता लक्ष्मी हमसे रूठ गई है और दैत्यों ने हमें पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया है अब हम आप की शरण में हैं हमारी रक्षा कीजिए भगवान विष्णु त्रिकालदर्शी है यह पल भर में ही देवताओं के मन की बात जान गए तब वह देवगण से बोले देवगण मेरी बात ध्यान पूर्वक सुने क्योंकि केवल यही तुम्हारे कल्याण का उपाय है दैत्यों पर इस समय काल की विशेष कृपा है इसलिए जब तक तुम्हारे उत्कर्ष और ददैत्यों के पतन का समय नहीं आता तब तक तुम उनसे संधि कर लो मित्रता कर दो छीर सागर के गर्भ में अनेक दिव्य पदार्थों के साथ-साथ अमृत भी छिपा है उसे पीने वाले के सामने शत्रुओं की पराजित हो जाती है इसके लिए समुद्र मंथन करना होगा एच चूंकि यह कार्य अत्यंत कठिन है अतः इस कार्य में दैत्यों से सहायता लो, कूटनीति भी यही कहती है की आवश्यकता पड़ने पर शत्रुओं को भी मित्र बना लेना चाहिए तत्पश्चात समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत पीकर अमर हो जाओ।

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