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फादर्स डे पर एक पिता ने किया अपनी याद साझा, विवाह के बाद भी बेटी के साथ पिता की घनिष्ठता हैं बरकरार

फादर्स डे विश्व के कई देशों में अलग अलग समय पर मनाया जाता हैं , लेकिन भारतवर्ष में जून महिनें के तीसरे रविवार को सेलिब्रेट किया जाता हैं । यह दिन पिता की भूमिका को स्वीकार करने और अपनी यादें साझा करने के लिए मनाया जाता हैं । भारतवर्ष में फादर्स डे मनाने के लिए बच्चे हर साल प्रतीक्षा करते हैं और पिता को उपहार स्वरूप कुछ ना कुछ प्रेम से देते हैं एवं पूरा दिन अपने पिता के साथ इंजाय करते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया में एक खनन दुर्घटना में सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई थी । समर्पित दंपति ग्रेस गोल्डन की पुत्री ने 05 जुलाई, 1907 को एक दुर्घटना में अपनी जान गवाने वाले पुरुषों की याद में अनाधिकृत रूप से रविवार को मनाया और मनाने का एक प्रस्ताव रखा । कुछ दिन बाद विलियम जैक्शन स्मार्ट ने भी फादर्स डे मनाने का सुझाव रखा । वर्ष 1972 में अमेरिका राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाने संबंधी मसौदा पर हस्ताक्षर कर दिया । तब से यह मनाया जा रहा हैं । मदर्स डे की तरह पिता के कर्तव्यों के निर्वहन और उनके कार्यों के प्रतिफल स्वरूप सम्मान एवं कृतज्ञता व्यक्त करने यानि कि पिता दिवस मनाया जाता हैं।
वेदों में धरती को मां और पिता को आकाश कहा गया हैं , किन्तु इस आकाश में सूरज हैं और चांद भी हैं। अर्थात् धूप भी , चांदनी भी ताप भी ठंडक भी । टिमटिमाते तारें भी और आशा के प्रतीक पिताश्री जैसे मार्गदर्शक भी रहते हैं । आकाश में बादल भी छाते हैं, जो जल बरसाकर सुरभित कर देते हैं । इंद्रधनुष के सतरंगी छटा बिखेरकर आकाश को ऐसा सुरम्य बना देते हैं कि धरती पुत्र भी निहाल हो जाते हैं । पुत्री जब बड़ी होकर अपनी जीवनसाथी तलाशती हैं , तब पिता के माध्यम से तय किए पैमाने पर उन्हें बेहतर तरीके से जांच परीक्षण करती हैं।पिता ही हैं जो अपनी बेटी को आत्मविश्वासी और बेटों को धैर्यवान बनाते हैं ।
साहित्यकार शशिभूषण सोनी ने अपनी सुपुत्री श्रीमती शीला डॉक्टर अमित स्वर्णकार, बिलासपुर की यादों को ताजा करते हुए बताया कि
विवाह के बाद जब मेरी बेटी घर छोड़कर ससुराल जाने वाली थी हैं , तब मैं ही सबसे अधिक दुःखी हुआ । उन्होंने कहा कि इसका कारण पुत्री-पिता के अधिक निकट संबंध होना हैं । अपनी पुत्री को बातें शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि शीलू बिटियां रानी वक्त का कद्र करना सीखो क्योंकि वक्त आइस्क्रीम की मानिंद हैं यह पिघले इसके पहले हर काम समय पर करना सीखो। आज़ का काम कल पर कभी मत टालों । मुझें यह काम करना चाहिए था ना कर सकी ? मैं कर सकती थी काश मैं कर लेती काश मैंने कर लिया होता । जिंदगी में इन मायूसी भरें शब्दों का इस्तेमाल ना करते हुए समय पर सब-कुछ ठीक-ठाक करने का प्रयत्न करो। हाईकोर्ट बिलासपुर में सीनियर एडवोकेट अशोक स्वर्णकार के सुपुत्र डॉ अमित स्वर्णकार के साथ प्रतिष्ठित स्वर्णकार परिवार में तुम्हारा ब्याह हुआ हैं। एक वर्ष के भीतर अपोलो अस्पताल बिलासपुर में नन्ही-सी बच्चीं को जन्म दिया । शीलू और उनके पति डॉ अमित ने बेबी बॉय का नाम भी रख दिया । नाम हैं शिवान्या ! शिवान्या नाम शीला और अमित दोनों के नाम को मिलाकर बनाया गया हैं । शिवान्या में शिव का मतलब होता हैं शांत और सौम्य। इंजीनियर शीला स्वर्णकार ने उस समय कहीं भी थी। मैं अपने सभी मित्रों सहेलियों को शुभकामना के लिए धन्यवाद करती हूं । आज़ जिंदगी ने ईश्वर का सबसे अच्छा तोहफा शिवान्या दिया हैं।
इस अवसर पर नानी श्रीमति शशिप्रभा सोनी ने चार पंक्तियां लिखकर सोने पे सुहागा लगा दिया

आज़ मेरी बेटी शीला के सौभाग्य का दिन,
प्यारी सी नन्ही परी का मैं बनी नानी !
मेरी सुपुत्री और दमाद जी को हुई,
प्रथम कन्या रत्न की प्राप्ति !!
सचमुच हर घर की आत्मा छोटी सी बच्ची में ही टिकी होती हैं।बेबी बॉय ने जब जन्म लिया तो उसकी आने की सूचना से घर-परिवार के सभी लोग बहुत ख़ुश हो गए । पति डॉ अमित कितनी बार अपने दोस्तों को पिता बनने की खुशी में पार्टी दे चुके हैं । सास मां राधिकाजी और देवर अधिवक्ता सुमित फूलें नहीं समा रहे हैं ।

शीलू बिटियां एक नन्ही-सी परी को लाने से ही मां की जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती बल्कि उसकी नन्ही शिवी की देखभाल और कई अतिरिक्त जिम्मेदारियां भी निभानी होती हैं । कहा जाता हैं कि मां बनते ही महिला की जिंदगी बदल जाती हैं । बच्चा उसकी प्राथमिकता में सबसे पहले होता हैं। बच्ची की पूरी देखभाल करनी हैं जैसे : डाइपर का गीला होना,पेट दर्द,गैस, पांजिशन में सुलाना आदि-आदि । कुल मिलाकर नवजात बच्ची के देखभाल में परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा हैं । बधाई एवं शुभ-मंगलकामना ।

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