इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में ‘राष्ट्र निर्माण में हिंदी-कवियों की भूमिका’ पर संगोष्ठी
इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में ‘राष्ट्र निर्माण में हिंदी-कवियों की भूमिका’ पर संगोष्ठी
आजादी के आन्दोलन से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के दौर में भी राष्ट्र निर्माण में हिन्दी के कवियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यदि राष्ट्रकवि द्वय मैथिलीशरण गुप्त एवं सोहनलाल द्विवेदी, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, सुभद्राकुमारी चौहान, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जैसे कवियों की कविताओं ने तथा माधवराव सप्रे, बनारसीदास चतुर्वेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकारों की दमदार टिप्पणियों ने भारतीय जनमानस को आजादी के लिए प्रेरित किया, तो आजादी के बाद देश के नवनिर्माण में भी हिन्दी साहित्य सर्जकों के सृजन ने प्रेरक का कार्य किया। राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका का निर्वाह करने वाले ऐसे ही कवियों और उनके योगदान पर सार्थक चर्चा के लिए इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के हिंदी विभाग द्वारा एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय परिसर के दरबार हाल में आयोजित इस संगोष्ठी में कई उपविषयों पर भी वक्ताओं ने अपनी बातें रखीं। संगोष्ठी की शुरुआत प्रो. मृदुला शुक्ल एवं डाॅ. देवमाईत मिंज निर्देशित कविता ‘कोलाज’ की प्रस्तुति से हुई जिसमें हिन्दी विभाग के विद्यार्थी शामिल हुए।
इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. रमेश अनुपम उपस्थित थे, जबकि इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के प्रभारी कुलपति प्रो.डाॅ. हिमांशु विश्वरूप ने अध्यक्षता की। राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज विश्वविद्यालय, नागपुर (महाराष्ट्र) के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.डाॅ. मनोज पाण्डेय आधार व्यक्तव्य के लिए आमंत्रित किये गए। साथ ही विशिष्ट अतिथि के रूप में भारतेन्दु साहित्य समिति, बिलासपुर के महासचिव व वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. विजय सिन्हा, इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के कुलसचिव एवं विभागाध्यक्ष (अंग्रेजी) प्रो. डॉ. इन्द्रदेव तिवारी, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पीसी लाल यादव मौजूद थे। इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ की कुलपति पद्मश्री डॉ. मोक्षदा (ममता) चंद्राकर के संरक्षण और हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजन यादव के संयोजन में आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में विभागाध्यक्ष (हिन्दी) प्रो.डाॅ. मृदुला शुक्ल ने स्वागत संबोधन दिया। कुलसचिव प्रोफेसर तिवारी ने अपने संबोधन में इस आयोजन के लिए कुलपति महोदया के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम की सुमधुर शुरुआत विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों रक्षा बाँके, सुनैना मौर्य, नीलेश कोसरिया, केसरी, रूचि कटकवार, रोहन, उमा सारथी, विक्रम और अरविन्द आदि द्वारा प्रस्तुत स्वागत गीत से हुई।
वक्ता के रूप में डाॅ. आंचल श्रीवास्तव (सह प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, डाॅ.सी.व्ही.रमन विश्वविद्यालय, कोटा, बिलासपुर), डाॅ. तारणीश गौतम (शास. बिलासा कन्या महाविद्यालय, बिलासपुर), डाॅ. मेधाविनी तुरे (शास. महाविद्यालय, डोगरगढ़), प्रो. उमेन्द्र चंदेल (शास. महाविद्यालय, खैरागढ़), श्री यशपाल जंघेल (शास. महाविद्यालय, खैरागढ़) ने अपने विचार रखे।
प्रथम तकनीकी सत्र का विषय ‘राष्ट्र निर्माण में स्वतंत्रता पूर्व के हिन्दी-कवियों की भूमिका’ रखा गया, जिसकी अध्यक्षता डाॅ. विजय सिन्हा (वरिष्ठ साहित्यकार, बिलासपुर) ने की संचालन श्री उमाकान्त ने किया। वहीं द्वितीय तकनीकी सत्र का विषय ‘राष्ट्र निर्माण में स्वतंत्रता के बाद हिन्दी-कवियों की भूमिका’ रखा गया, जिसकी अध्यक्षता डाॅ. रमेश अनुपम (वरिष्ठ साहित्यकार, रायपुर) ने की संचालन डाॅ. उमेंद्र चंदेल ने किया। समापन सत्र के मुख्य अतिथि डाॅ. विजय सिन्हा, जबकि अध्यक्षता अधिष्ठाता एवं विभागाध्यक्ष (हिन्दी) प्रो.डाॅ. मृदुला शुक्ल ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. डॉ. काशीनाथ तिवारी मंचासीन हुए। समापन वक्तव्य (डाॅ. आंचल श्रीवास्तव, सह प्राध्यापक, कोटा) ने दिया। यह संगोष्ठी कुलसचिव प्रो. डॉ. इन्द्रदेव तिवारी (कुलसचिव) के विशेष सहयोग से संपन्न हुआ। हिंदी विभाग की एशोसिएट असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. देवाईत मिंज आयोजन सचिव थीं, जबकि विभागीय कार्यालय में सहयोगी श्रीमती खुशबू मिश्रा थीं। इस संगोष्ठी में प्रदेश के महाविद्यालयों के प्राध्यापक गण, पत्रकार गण, शोधार्थी, विद्यार्थीगण, विश्वविद्यालय के विद्यार्थी, शोधार्थी, शिक्षक, प्राध्यापक, अधिकारी, कर्मचारी समेत विश्वविद्यालय परिवार संगोष्ठी में शामिल हुआ। समापन सत्र का संचालन डाॅ. देवमाईत मिंज ने तथा आभार व्यक्त संयोजक प्रो. राजन यादव ने किया।