छत्तीसगढ़

जय जोहार – जय छत्तीसगढ़

*जय जोहार – जय छत्तीसगढ़*
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#हसदेव_बचाओ #SaveHasdeo

आज हम बात कर रहे है पावन भुइयां छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा में स्थित #हसदेव_अरण्य क्षेत्र की , जहाँ लाखो की संख्या में वन्य जीव जंतुओं के साथ साथ 5 वी अनुसूची में शामिल आदिवासी निवास करते है , इसलिये इस क्षेत्र को पांचवी अनुसूची क्षेत्र भी कहॉ जाता है। जिसे मार्च 2012 में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक के नाम से कोयला खनन हेतु शासन द्वारा स्वीकृति प्रदान किया गया था , जिसे 2014 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (N.G.T.) के द्वारा वन स्वीकृति को चुनौती दी गयी थी , जिसके आधार पर एनजीटी ने इस क्षेत्र के बारे में समग्रता से एक अध्ययन करने को कहा था, ताकि हसदेव अरण्य में पर्यावरणीय व जैव विविधतता की परिस्थितियों का सही-सही आंकलन किया जा सके और इस क्षेत्र में वन्य जीवों की स्थिति पर भी गहन अध्ययन हो, ताकि पता लगे कि इस पूरे वन क्षेत्र में खनन के क्या प्रभाव होंगे?
साथ ही साथ उस क्षेत्र में निवासरत आदिवासी ग्रामीण व ग्राम सभा के पदाधिकारी लगभग 1 दशक से एक संघर्ष समिति बनाकर इस कोल खनन के खिलाफ संघर्ष कर रहे है।

यहाँ यह बताना भी जरूरी है कि 2015 में कांग्रेस के सम्मानीय अध्यक्ष राहुल गांधी जी भी हसदेव क्षेत्र का दौरा कर सार्वजनिक रूप से यह घोषणा किये थे कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने पर कोल खनन की स्वीकृति को निरस्त कर दिया जाएगा , किन्तु हमारे राज्य के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी पिछले कुछ महीने से तथाकथित तौर पर कोयला संकट का दुष्प्रचार कर रहे थे एवं दिनाँक 6 अप्रैल 2022 को अडानी ग्रुप को खनन करने हेतु पुनः अनुमति दे दिये , ज्ञात हो ये वही कांग्रेस की सरकार है जो विपक्ष में रहते हुए सदैव इस खनन का मुखर होकर विरोध करते आ रहे थे किंतु सत्ता में आते ही वादाखिलाफी व अपने नीतियों से भटकर कार्य कर रहा है।
अनुमति मिलने के बाद वन विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा रात में चोरी छिपे उस क्षेत्र में पेड़ो की कटाई शुरू कर दिये, जिसका वहाँ के ग्रामीणों ने मिलकर विरोध किया विरोध को बढ़ते देख वन विभाग के लोग भाग गये।

यहाँ यह बताना भी जरूरी है कि , कांग्रेस बार बार यह आरोप लगाता है कि केंद्र की मोदी सरकार किस तरह अडानी के ऊपर मेहरबान है उसे लाभ पहुचाने के लिए एक से बढ़कर एक हथकंडे अपना रहे है , यह हमारे राज्य छत्तीसगढ़ में सिद्ध होता नजर आ रहा है की कैसे इतने विरोध व भारी जनआक्रोश के बाद भी केंद्र की मोदी सरकार लगभग 4 लाख 50 हजार पेड़ो व अन्य वन्य जीवों का कत्लेआम करने का निर्णय लेते हुए कोल खनन की स्वीकृति प्रदान किये तथा अभी भी वह अपने बात पर अडिग है , छत्तीसगढ़ के विपक्ष की भाजपा सरकार जिस तरह मूक दर्शक बने बैठे है उसका भूमिका भी संदेहास्पद नजर आ रहा है।

राजनीति से उठकर अगर हम सामाजिक चिंतन करे तो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण के इस गंभीर चुनौती भरे दौर में हसदेव अरण्य जैसे जंगल को जिसे मध्य भारत का फेफड़ा कहा जाता है, कॉर्पोरेट के मुनाफे के लिए तबाह किया जाना किसी भी तर्क से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
साथ ही साथ जब वहाँ के मूलनिवासी ही इसका विरोध कर रहे है तो फिर यह विनाशकारी विकाश किसके लिए और क्यों?
हसदेव अरण्य के कटाई का विरोध हम सभी को मिलकर करना चाहिए क्योंकि एक पेड़ को काटना दण्डनीय अपराध है फिर 4 लाख 50 हजार पेड़ो को काटना या कटवाना कौन से श्रेणी का अपराध है , साथ ही साथ उस क्षेत्र के जीव जंतु व वहाँ निवासरत आदिवासियों के जिंदगी के साथ खिलवाड़ करना कौन से श्रेणी का अपराध है।
और जब वहाँ के मूलनिवासी ही नहीं चाहते कि वहाँ किसी भी प्रकार का खनन हो फिर सरकारे ये विनाश कारी तथाकथित विकास का ढोल किसके लिए पीटना चाह रही है , कही ये विकास की ढोल मानव सभ्यता को बर्बाद न कर दे।
बिजली की आपूर्ती हेतु राजस्थान को कोयला तो कही और से भी मिल जाएगा किन्तु हमारे राज्य छत्तीसगढ़ को पेड़ कटने के बाद जो ऑक्सिजन की कमी होगी उसे कहॉ से और कौन आपूर्ती करेगा यह जानने का हक प्रत्येक नागरिक का है। हम सभी ने देखा है कि कैसे कोविड 19 के दूसरे चरण में पूरे विश्व में ऑक्सीजन की आपूर्ती के लिए त्राहिमाम मचा था हर राज्य व सरकार ऑक्सीजन के लिए हाथ खड़े कर लिए थे फिर इस तरह प्राकृतिक निर्मित ऑक्सीजन आपूर्ती को पूर्ण रूप से बाधित करना कहॉ तक उचित है। कुछ लोगो को यह सिर्फ आदिवासियों की लड़ाई नजर आ रहा है मैं उनसे भी कहना चाहूंगा की ये संघर्ष ये लड़ाई सिर्फ हमारे आदिवासी मित्रो का नहीं है यह लड़ाई यह संघर्ष है एक अंधी बहरी और लोभी केंद्र व राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ मानव सभ्यता को पुनः स्थापित करने की व मातृ स्वरूपी छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा से उनकी अस्मिता को बचाने की तथा सम्पूर्ण मध्य भारत को फ्री में ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाले प्राकृतिक निर्मित ऑक्सिजन प्लांट को बचाने की , और हॉ अभी भी जिनको लगता है कि ये सिर्फ आदिवासियों की लड़ाई है उनसे मैं कहना चाहूंगा , आदिवासी संस्कृति तो सभ्यता के शुरुवात से ही वनों , नदियों , पहाड़ो व वन्य जीवों को ईश्वर की संज्ञा देते हुए उनको पूजते व उनकी रक्षा के लिए अपना बलिदान देते आ रहे है किंतु अब हमें ये समझना है कि हसदेव अरण्य जैसे महावन को बचाने के लिए हम क्या कर रहे है ? क्या हम बिना ऑक्सीजन , बिना पेड़ पौधों – नदी नालों व जैव विविधता के पृथ्वी पर कितने दिनों तक जीवित रह सकते है।
#हसदेव_अरण्य_बचाओ_जनआंदोलन से हम सभी को जुड़ना चाहिए तथा साथ मिलकर इसे बचाने के लिए कदम उठाना चाहिए।

सादर …✍️
*सूरज टंडन*

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