छत्तीसगढ़

पाटेश्वर धाम के संत श्री राम बालक दास जी द्वारा संचालित किए जाने वाले ऑनलाइन सत्संग को आज पूरे 8 माह पूर्ण हुए जिससे ग्रुप में हर्ष एवं बधाई का वातावरण रहा

 

पाटेश्वर धाम के संत श्री राम बालक दास जी द्वारा संचालित किए जाने वाले ऑनलाइन सत्संग को आज पूरे 8 माह पूर्ण हुए जिससे ग्रुप में हर्ष एवं बधाई का वातावरण रहा सभी ने बाबाजी को 8 माह पूर्ण होने पर बधाइयां एवं शुभकामनाएं प्रेषित की एवं इस सत्संग से जुड़ने वाले सभी साधकों को बाबा जी ने धन्यवाद ज्ञापित किया
ऑनलाइन सत्संग संत श्री द्वारा अपने भक्तों को दिया जाने वाला ऐसा मंच है जहां सभी एकजुट हो जाते हैं इसमें नन्हे नन्हे बच्चों उनकी किलकारियां उनके भजन से सभी आनंदित हो जाते हैं सभी बंधुओं के द्वारा भेजी गई जिज्ञासा जिस पर बाबा जी के अद्भुत ज्ञान द्वारा उनकी व्याख्या की जाती है जो कि आज 240 दिनों से हमारे ज्ञान का केंद्र बना हुआ है, यह सत्संग आज पूरे भारतवर्ष में विख्यात हो चुका है
प्रतिदिन की भांति आज भी ऑनलाइन सत्संग, मे एक साधक खिलेश्वर वैष्णव (जिला बेमेतरा) के द्वारा पुछा गया प्रश्न की जगत में दोष रहित कौन है। इस प्रश्न के गुण विषय को पूज्य गुरुदेव ने भक्तों को समझाया साथ ही ऋचा बहन द्वारा मीठा मोती प्रेषित किया गया जिसमें उन्होंने संदेश दिया कि यदि हम किसी को दुख देंगे तो हमें उसके बदले दुख ही प्राप्त होगा अतः हम सबको सुख दे, जिस पर बाबा जी ने विचार रखा की हम अपने दुख का कारण स्वयं है जब हम जन्म लेते हैं तो अपने गुण लेकर पैदा होते हैं शरीर के साथ मन आत्मा अहंकार काम क्रोध उद्वेग लालच नींद अच्छा बुरा सुख और दुख की अनुभूति भी साथ लेकर आते हैं, इन्हें जैसे-जैसे अवसर मिलता है बे प्रकट हो जाते हैं,अतः सुख किसी को दिया जाए तो सुख ही मिलता है क्योंकि सुख देने से बड़ा सुख संसार में नहीं दूसरों को आनंद दोगे तो आनंद मिलेगा सुख दोगे तो सुख मिलेगा किसी को तृप्ति प्रदान करोगे तो तृप्ति मिलेगी और इसी प्रकार यदि आप किसी को कष्ट दोगे दुख प्रदान करोगे तो आपको उसके बदले दुख ही प्राप्त होगा यह केवल और केवल दानव वृति है, एक सज्जन मे यह गुण कभी नहीं होता वह दूसरों को कभी कष्ट प्रदान नहीं करता दूसरों के सुख में ही अपना सुख ढूंढता है
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने रुद्राक्ष और तुलसी की माला धारण करने के लाभ के विषय में पूछा इस पर बाबा जी ने कहा कि यह हमारे शैव एवं वैष्णव धर्म अनुयायी के लिए हीरे के बराबर है हमारे सनातन धर्म में विभिन्न संस्कार होते हैं लेकिन उसमें केवल लाभ ढूंढा जाए तो अनुचित है तुलसी और रुद्राक्ष की माला पहनने के भी लाभ ना देख कर हम इनकी विशेषताएं देख सकते हैं तुलसी एवं रुद्राक्ष की माला कंठ में धारण की जाती है जो कि भक्त जनों के लिए उनके आभूषण के समान होता है गले में रुद्राक्ष तुलसी की माला और कंठ में भगवान का नाम यह भक्तों के लिए उनके अलंकार के समान है जो उनकी महत्वपूर्ण पहचान को भी प्रकट करता है,भगवान शिव को रुद्राक्ष अति प्रिय है क्योंकि यह भगवान शिव के तीसरे नेत्र से निकले हुए जल से उत्पन्न हुआ है और कहा जाता है कि विश्व में इससे पवित्र फल कोई नहीं है, रुद्राक्ष के लिए बताया गया है कि यह भगवान शिव के अष्टमूर्ति के बराबर एक रुद्राक्ष होता है, और वैज्ञानिक महत्व इसका देखे तो इसे धारण करने वाले का बीपी व हृदय रोग दोनों ही कंट्रोल रहते हैं यह स्वसन तंत्र को भी संतुलित रखता है
उसी प्रकार भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है जैसे भगवान को जब छप्पन भोग अर्पित किए जाते हैं तो उसमें एक तुलसी पत्र डालना आवश्यक होता है नहीं तो वह छप्पन भोग भगवान ग्रहण नहीं करते उसी प्रकार जब हम दिन रात अपने शरीर व मन को भगवान को अर्पित करना चाहते हैं तो तुलसी की माला ग्रहण करते हैं, ताकि भगवान हमें व हमारी भक्ति को ग्रहण करें, तुलसी की माला हमारे विचार और शरीर दोनों को ही पवित्र बनाती है जब हम तुलसी की माला ग्रहण करते हैं तो हम यह अवश्य रुप से ध्यान रखते हैं कि हम अपवित्रता से बचे इसीलिए तुलसी और रुद्राक्ष की माला हर व्यक्ति को धारण करना चाहिए
सत्संग को आगे बढ़ाते हुए रामफल जी ने रामचरितमानस की चौपाइयां “स्वारथ लागि करही सब प्रीति… के भाव को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की, इन पंक्तियों के भाव की स्पष्ट करते हैं बाबा जी ने बताया कि मनुष्य साधु संत देवता स्वार्थ के लिए प्रीति करते हैं उसी तरह ईश्वर के लिए भी कहा गया हैं भगवान कहते हैं कि तू अगर 7 कदम मेरी और बढ़ाएगा तो मैं 60 कदम तेरी और बढ़ा लूंगा तू मुझ में प्रीति रखेगा तो मैं तुझ में प्रीति रखूंगा तुम मेरा वंदन करेगा तो मैं तेरा भरण पोषण और उद्धार करूंगा परंतु भगवान श्री राम जी ने स्वयं कहा है कि, भले ही भगवान में यह गुण हों परंतु संत कभी ऐसा नहीं करते वे तो कहते हैं कि तू मेरा अनहित भी सोचेगा तो भी मैं तेरा हीत ही सोचूँगा तू मेरे लिए अपशब्द भी बोलेगा तो भी मैं तेरे लिए मन से दुआ ही करूंगा इसीलिए मुझ से ऊपर संत है तो स्वार्थ सबके हृदय में होता है देवता हमें फल प्रदान करते हैं ताकि उनको पूजा जाए और मनुष्य की स्वार्थ की तो कोई सीमा ही नहीं है परंतु ऋषि-मुनियों का क्या स्वार्थ है केवल वे चाहते हैं कि यदि हम संसार को सतवृति, सतज्ञान सत्संग देते हैं तो आप लोग हमारे ज्ञान का पालन करेंगे हमारे धर्म का सुचारू रूप से निर्वहन करेंगे भारत की इस अस्मिता को बचा कर रखेंगे
इस प्रकार बाबाजी के अद्भुत विचारों से परिपूर्ण सत्संग परिचर्चा का आज समापन हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम

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