चीन में 24 घंटे में 26 हजार से ज्यादा कोरोना केस, शंघाई में एक वक्त का मिल रहा खाना More than 26 thousand corona cases in China in 24 hours, one time food in Shanghai
बीजिंग. चीन में कोरोना वायरस (China Coronavirus Third Wave) की तीसरी लहर नियंत्रण से बाहर हो रही है. सख्त प्रतिबंधों (Lockdown) के बावजूद चीन में कोरोना के रिकॉर्ड मामले सामने आ रहे हैं. बीते 24 घंटे में कोरोना के 26 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं. इस बीच, भारत ने शंघाई में अपनी काउंसलर सेवाएं बंद कर दी हैं.
चीन प्रशासन ने बुधवार को बताया कि 12 अप्रैल को कोरोना के 25,141 नए मामले सामने आए हैं, जबकि लक्षण वाले 1,189 मामले मिले हैं. कोरोना के बढ़ते केस के बीच जीरो कोविड नीति का बचाव करते हुए चीनी विदेश मंत्री के प्रवक्ता ने कहा, ‘ये नीति महामारी विरोधी प्रोटोकॉल विज्ञान और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है.इधर, शंघाई में लॉकडाउन से हालात बिगड़ रहे हैं. शंघाई के चांगझौ, जिआंगसु से कुछ फुटेज सामने आई थीं. जहां पर लोगों की भीड़ की जरूरी चीजों के लिए सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ती नजर आ रही है. ट्विटर पर इस भीड़ वीडियो शेयर किया गया है, जिसमें लिखा है, “चीन का सबसे बड़े और धनी शहर शंघाई में कोविड लॉकडाउन के तहत खाने के लिए दंगा.” कुछ अन्य वीडियो भी शेयर हुए हैं जिनमें मेडिकल सेंटर्स और सुपरमार्केट के आसपास लूट हो रही है.
वहां के लोगों का कहना है कि वे लोग दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं. शंघाई में महामारी की स्थिति बिगड़ती जा रही है. अधिकारियों का कहना है शहर अनिश्चित काल के लिए बंद रहेगा. जिसका मतलब है वहां के निवासियों को अपने घरों को छोड़ने की अनुमति नहीं है.
वहीं, बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास ने बताया कि शंघाई में लॉकडाउन के कारण महावाणिज्य दूतावास से संपर्क नहीं हो पा रहा है. महावाणिज्य दूतावास शंघाई में निजी रूप से काउंसलर सेवाएं देने की स्थिति में नहीं है.
दुनिया में 7.7 करोड़ लोग गरीबी के गर्त मे
कोविड-19 के चलते पिछले साल 7.7 करोड़ लोग गरीबी के गर्त में चले गए. कई विकासशील देश कर्ज पर दिए जाने वाले भारी ब्याज के कारण महामारी के दुष्प्रभावों से उबर नहीं पा रहे हैं. यह संख्या यूक्रेन में जारी युद्ध के असर से पहले की है.
रिपोर्ट के मुताबिक, धनी देश महामारी के कारण आई गिरावट से काफी कम ब्याज पर कर्ज लेकर उबर सकते हैं, लेकिन गरीब देशों ने अपना कर्ज चुकाने में अरबों डॉलर खर्च किए और ऊंची ब्याज दर पर मिले ऋण के चलते वे शिक्षा-स्वास्थ्य सुधार, पर्यावरण और असमानता घटाने में ज्यादा खर्च नहीं कर सके.
’