यज्ञ स्वयं नारायण स्वरूप है पंडित मनोज मिश्रा
सभापति उद्योग एवं सहकारिता विभाग जिला पंचायत जांजगीर कुसुम कमल साव एवं समस्त ग्रामवासी सरखों के द्वारा विश्वकल्याण के लिए आयोजित श्रीविष्णु महायज्ञ एवं श्रीमद् भागवत कथा में सम्मिलित होने के लिए क्षेत्र के श्रद्धालुओं की अपार भीड़ लग रही है।
यज्ञाचार्य एवं कथा व्यास पं मनोज कुमार मिश्रा पुजारी श्रीराधा कृष्ण मंदिर सिवनी(नैला) वाले व्यास पीठ पर विराजमान होकर यज्ञ की महत्ता को बताया।
यज्ञ स्वयं नारायण स्वरूप है यज्ञ में पड़ने वाली आहुति को देवता स्वीकार करते हैं और प्रसन्न होकर यजमान को मनवांछित फल प्रदान करते हैं।इसलिए यज्ञ कार्य को बड़ी सावधानी के साथ संपन्न करना चाहिए।यज्ञ में याज्ञीक आचार्यो और यजमानो के श्रद्धा समर्पण और भक्ति के अनुरूप ही फल की प्राप्ति होती है।सामान्य प्रचलन में यह कहा जाता है कि ब्राह्मण यदि यज्ञ में कोई कमी या मन्त्र जाप में कोई त्रुटि करते हैं तो उसका फल ब्राह्मण को मिलना चाहिए जबकि ऐसा नही होता संकल्प कर लेने के बाद ब्राह्मण के हर अच्छे बुरे कर्म का फल यजमान को प्राप्त होता है इसलिए यज्ञ के आचार्य बनाने के पहले हजान बार विचार करना चाहिए कि जिस ब्राह्मण को यज्ञ में बनाने जा रहा हूँ वह विधि पूर्वक यज्ञ संपन्न करा पायेगा कि नही?
इस संबंध में श्रीमद् भागवत कि कथा में यज्ञ के संबंध में अनेक उदाहरण हैं वैवस्वत मनु महाराज पुत्र प्राप्ति की कामना से मित्रावरुण यज्ञ कराते हैं किन्तु उनकी धर्मपत्नी श्रद्धा ने होता के पास जाकर होता से कन्या प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती है तब होता ने मन्त्र में परिवर्तन कर दिया जिससे पुत्र के स्थान पर पुत्री हो गई जिससे राजा प्रसन्न नही हुए और गुरु महाराज वशिष्ठ जी से प्रार्थना किये तब उन्होंने ध्यान करके सभी बातों समझ कर भगवान श्रीहरि नारायण से प्रार्थना करके उस इला नाम की कन्या को पुनः पुत्र के रूप में परिवर्तित कराया आज भी वैज्ञानिकों के द्वारा लिंग परिवर्तन कराया जाता है मगर हमारे शास्त्रीय पद्धति से यज्ञ और यजन के द्वारा बिना आपरेशन के ही यह सब संभव था और है उस पद्धति पर विश्वास करके उसका उपयोग करने की आवश्यकता है।
महर्षि त्वष्टा ने भी इंद्र को मारने वाला पुत्र प्रगट हो इस संकल्प से यज्ञ कराया मगर ब्राह्मणों के मंत्रोच्चारण में श्वर में परिवर्तन हो जाने पर इंद्र के द्वारा मरने वाला पुत्र हुआ ।
इसलिए यज्ञ कराने में सावधानी आवश्यक है यज्ञ परमाणु बम से भी तीव्र किया करने में सक्षम है ।यज्ञ से सभी जीवों का पोषण होती है यज्ञ से वर्षा होती है जिससे अन्न होता है और अन्न ही जीवों के जीवन के लिए परम् आवश्यक है।
व्यासपीठ से पांचवे दिन की कथा में पं मनोज कुमार मिश्र ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण भक्तो के प्रेम से रीझते है सांडिल्य ऋषि का पुत्र मधुमंगल जो भगवान् श्रीकृष्ण के बाल सखा थे धन से गरीब थे जब भगवान बछड़े चराने जाते थे तो सखाओं के साथ वह भी जाता था अन्य सखा लोग अनेक प्रकार के पकवान लेकर जाते थे और उनके मन में यह बात आती थी कि हम लोग कन्हैया को पकवान खिलाते हैं और यह मधुमंगल कुछ लाता नही बल्कि हमारे लाये हुए की माता सप्ताह भर पुरानी छाछ की कढ़ी बनाकर देती हैं और कहती इसे श्यामसुन्दर कन्हैया को दे देना मधुमंगल सोचता है कि पुरानी छाछ की कढ़ी को पीकर कन्हैया का तबियत विगड़ जायेगा ऐसा सोचकर स्वयं पीने लगता है तब कन्हैया दौड़ते है उन्हें दौड़कर अपनी तरफ आते हुए देखकर मधुमंगल मटकी को फोड़ देता हैं फिर भी श्यामसुन्दर कन्हैया मधुमंगल को गले से लगाकर कढ़ी से सने हुए उसके होठ को चाटने लगते हैं जिसे देखकर ब्रह्मा जी भी मोहित हो गए।
ऐसे भगवान को छोड़कर जो अन्य की उपासना करते हैं उनका जीवन चिंतनीय है।आगे बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए गोवर्धन धारण ,चीरहरण कंस वध की कथा सुनाते हुए रुक्मिणी विवाह की कथा सुनकर श्रोता मुग्ध हो गए रुक्मिणी विवाह में सरपंच संघ के अध्यक्ष लोचन साव सपरिवार एवं ग्रामवासियों अपनी सामर्थ्य के अनुसार खूब दान किये।