देश दुनिया

रूस युक्रेन युद्ध में समय कैसे बन रहा है एक बड़ा कारक How time is becoming a big factor in Russia-Ukraine war

रूस यूक्रेन युद्ध  (Russia Ukraine War) के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) यूरोप में आए पोलैंड तक में आकर अमेरिकी नाटो सैनिकों से मिले  ऐसा लगता है कि अब इस युद्ध में समय (Time as big Factor in War) एक बड़ा कारक बनता जा रहा है. बाइडन ने जहां रूस को नाटो देशों के खिलाफ हमला करने पर चेताया तो वहीं रूस भी नाटो और अमेरिका को चेतावनी दे रहा है कि वह इसमें शामिल होने की कोशिश ना करे. लेकिन हालिया घटनाक्रम ये बता रहे हैं कि अब इस युद्ध में समय की बड़ी भूमिका होने वाली है. खुद बाइडन कह रहे हैं युद्ध लंबा होने वाला हैहाल ही में हुआ क्या है
फिलहाल युद्ध तो जारी है, लेकिन रूसी रक्षा मंत्रालय का बयान है कि रूसी सेना के मुख्य लक्ष्य हासिल हो चुके हैं. कीव के अलावा दूसरे शहरों पर हमले तेज होने की खबरें हैं इनमें लवीव, चेर्नीव शामिल हैं. जेलेंस्की का रवैया दर्शा रहा है कि वे अब यूरोपीय संघ और नाटो के भरोसे रहने की स्थिति में नहीं हैं. उन्होंने कहा है कि तटस्थ रहना चाहते हैं. बाइडन ने भी पुतिन को हटाने की मांग की है, लेकिन उसके बाद अमेरिका इस बयान पर ‘रक्षात्मक’ होता दिख रहा है.

क्या रूस ने यूक्रेन में लगाया ज्यादा समय
एक लिहाज से देखें तो लगता है कि रूस ने यूक्रेन पर कब्जा करने की जल्दबाजी नहीं दिखाई है. और हमला करने में भी वजह फूंक फूंक कर कदम रखता दिख रहा है. यूक्रेन भी अपने देश में वैसी तबाही दुनिया को दिखा नहीं पा रहा है जैसी कि एक महीने में दिख सकती थी. यूक्रेन इसे युद्ध में अपनी सफलता के रूप में पेश कर रहा है. लेकिन अभी तक यूक्रेन में रूसी सेना ने किसी तरह का निर्णायक कब्जा जैसा कुछ नहीं किया है.

रूस का रूबल वाला दांव
रूस ने हाल ही में यूरोप के दुखती रख को निशाना बनाया है. उसने कहा है अगर यूरोपीय देश रूस से तेल या गैस खरीदना चाहते हैं तो उन्हें रूबल में ही खरीदना होगा. इसके लिए रूस ने कोशिशें भी शुरू कर दी है और इसके लिए अंतिम तारीख 31 मार्च रखी है. वहीं जी 7 के देशों ने रूस के इस प्रस्ताव को साफ तौर पर खारिज कर दिया है कि वह रूस से रूबल में ही तेल या गैस खरीदे.

जी 7 के देश
जी 7 में अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान हैं. इनमें रूस के फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित जर्मनी होगा. क्योंकि तेल के मामले में उसी की रूस पर सबसे ज्यादा निर्भरता है. फिर भी गौर करने वाली बात यही है कि जर्मनी में तो अभी अभी तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं जबकि कुछ दिन पहले कच्चे तेल की कीमतें भी गिरी थीं. लेकिन फिलहाल जर्मनी यही कह रहा है कि वह हर तरह के हालात के लिए तैयार है.

जी 7 यूरोपीय संघ नहीं लेकिन
अमेरिका ब्रिटेन और कनाडा (जापान भी मान सकते हैं) तेल और गैस के मामले में रूस पर निर्भर नहीं हैं यानि जी7 पूरे यूरोप का प्रतिनिधित्व नहीं करता है लेकिन यह भी कहा गया है कि जी 7 के सम्मेलन में यूरोपीय यूनियन के प्रतिनिधि भी शामिल थे. देखने वाली बात यह है कि क्या यूरोपीय यूनियन रूस के रूबल वाले प्रस्ताव को सिरे से खारिज करेगा या नहीं 

रूबल को संभालने के लिए
वहीं रूस ने 31 मार्च को रूबल में ही भुगतान की प्रक्रिया पर काम करना शुरू कर दिया है. साफ है कि रूस अब लंबे खेल की तैयारी में है जिससे वह तेल की कीमतों में हलचल  होने से यूरोप को लोग अपनी ही सरकार के खिलाफ हो जाएंगे इसका इंतजार करेगा. रूस अब पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंधों के चलते गिरते रूबल को संभालने के लिए यह सब कर रहा है.

लेकिन असल लड़ाई तेल पर ही हो रही है. नाटो का अहम सदस्य पोलैंड कहना है कि उसका एक रूसी कंपनी से तेल का करार इस साल के अंत तक के लिए जरूर है, लेकिन वह अपनी सप्लाई का भुगतान फौरन ही रूबल में नहीं बदल सकता है. यूरोपीय यूनियन भी रूस पर अपने गैस की निर्भरता 2027 तक दो तिहाई तक कम करने का लक्ष्य बना चुकी है. वही अमेरिका ने भी ऐलान किया है कि वह इस साल यूरोपीय संघ को 15 अरब क्यूबिक मीटर लिक्यूफाइड नेचुरल गैस यानि एलएनजी की सप्लाई करने पर काम करेगा. यानी हर पक्ष लंबे समय के लिए ही अपनी कमर कस रहा है

 

 

 

 

Related Articles

Back to top button