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56 में से 12 सैंपल मिले अमानक, फिर भी दुकानदार को सिर्फ समझाइश देकर छोड़ा

सबका संदेश न्यूज़ कवर्धा- खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने शुक्रवार को शहर के विभिन्न दुकान से खाद्य सामग्री का सैंपल लिया। इन सैंपल की चलित प्रयोगशाला में जांच की गई। यह जांच सुबह 11 से लेकर 2 बजे तक किया गया। इनमें कुल 56 सैंपल लिए गए। इनमें 12 सैंपल अमानक मिले, यानी खाद्य सामग्री खाने योग्य नही थे। लेकिन जांच टीम ने किसी भी दुकानदार के खिलाफ कार्रवाई नही किया है। 

अधिकारियों के मुताबिक यह जांच केवल जागरुकता के लिए थी। गुरुवार को बोड़ला में सैंपल लेकर जांच किया गया। यहां भी लिए गए सैंपल खाने योग्य नहीं थे। दुकानदारों को समझाइश देकर छोड़ दिया गया। बता दे कि पूर्व में भी इसी चलित प्रयोगशाला में भी सैंपल की जांच की गई थी। लेकिन कार्रवाई नही की। वहीं शुक्रवार को शहर का मार्केट बंद था। इस कारण ज्यादा खाद्य सैंपल नही लिया गया। 

खतरे में स्वास्थ्य: खाद्य व औषधि विभाग द्वारा चलित प्रयोगशाला में की जा रही है जांच

कवर्धा. अनाज दुकान से सैंपल लेती जांच टीम। 

गाय छाप रंग का उपयोग सबसे ज्यादा

विभाग के अफसर मुकेश साहू ने बताया जांच के दौरान मेन फोकस उन खाद्य सामग्रियों के लिए किया था,जिसके खाने से लोग बीमार हो सकते है। इनमें गाय छाप रंग शामिल है। आमतौर पर इसे जलेबी रंग कहा जाता है। विभाग के सैंपल असिस्टेंट अरविंद पटेल ने बताया कि इस तरह के रंग का उपयोग खाद्य सामग्री में कलर करने के लिए किया जाता है। खासकर जलेबी व अन्य प्रकार के मिठाई के लिए होता है। डिब्बे में यह भी लिखा होता है कि इसका उपयोग खाद्य सामग्री बनाने के लिए नहीं किए जाए। रंग का उपयोग कपड़े रंगने व कारपेंटर द्वारा दरवाजे में कलर लगाने के लिए किया जाता है। लेकिन इसी रंग का उपयोग खाद्य सामग्री में ज्यादा किया जाता है। चांदी की जगह एल्युमिनियम वर्क का उपयोग हो रहा है। 

ग्रामीण क्षेत्रों में 70% व्यापारी मिला रहे अखाद्य रंग

ग्रामीण क्षेत्रों में जलेबी रंग (ऑरेंज कलर) लाने के लिए चाट, जलेबी, बालूशाही, बूंदी के लड्डू में गाय छाप जलेबी रंग मिलाया जाता है। यह रंग स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। जानकारी के अभाव, पुराने परंपरा अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के दुकानदार हाट बाजार में गुमटी लगाने वाले ग्रामीण इसी रंग को मिला रहे। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग की टीम को अब हाट बाजारों में भी जाकर इसी तरह दबिश देकर जागरूक करने की काम करेगी। ऐसे मामले सामने आने के बाद अब उपभोक्ताओं को सतर्क होना होगा। 

कपड़ा रंगने में उपयोग होता है मैथायलिन ब्लू का

कुछ होटल व दुकानदार ऑरेंज कलर के लिए खाद्य पदार्थों में गाय छाप (जलेबी रंग) मिला रहे हैं। इसमें मैथायलिन ब्लू मिला होता है। इसका उपयोग इंडस्ट्रियल क्षेत्र में कपड़ा रंगने के लिए किया जाता है। इससे कैंसर का भी खतरा बना रहता है। बाजार में खाद्य जलेबी रंग भी उपलब्ध है, जिससे कोई नुकसान नहीं होता। इनमें ब्रश कंपनी, स्टार ब्रश कंपनी के जलेबी रंग शामिल हैं। लोग इसका उपयोग कर सकते हैं। 

5 लाख रुपए तक के जुर्माने का भी प्रावधान

खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम के तहत खाद्य पदार्थों में हानिकारक रंग मिलाने पर वैधानिक कार्रवाई का प्रावधान है। इसके तहत संबंधित दुकानदार पर 5 लाख तक का जुर्माना और 6 माह सजा का प्रावधान है। हालांकि जिले में अब तक ऐसी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है। जन समुदाय के लिए भी यह खतरनाक है, इसलिए लोग भी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। इसके साथ ही विभाग द्वारा अब तक 35 प्रकरण कोर्ट में पेश किया गया है। 

 

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