धर्म

आमलकी एकादशी आज , आंवला खाने और दान करने का विशेष महत्व

जांजगीर चांपा – फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को आमलकी एकादशी , आंवला एकादशी या रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है , जो आज है। पूरे साल में पड़ने वाली एकादशी में यह एकादशी काफी खास मानी जाती है और इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का विधान है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित होता है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि आंवले के वृक्ष में भगवान श्रीहरि का निवास होता है। आमलकी एकादशी के दिन ब्रह्मा जी के आंसू श्रीहरि के चरणों में गिरकर आंवले के पेड़ में बदल गये थे , तभी से इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा जी की उत्पत्ति विष्णु जी की नाभि से हुई , एक बार ब्रह्मा जी ने परब्रह्म की तपस्या कर स्वयं को जानने का प्रयास किया। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को दर्शन दिये , उन्हें देखते ही ब्रह्मा जी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। मान्यता है कि ब्रह्मा जी के आंसू जब उनके चरणों पर गिरे तो आंवले के पेड़ में बदल गये। तब विष्णु जी ने कहा कि आज से यह वृक्ष और इसका फल मुझे बेहद दी प्रिय होगा और जो भी भक्त आमलकी एकादशी के दिन इस वृक्ष की पूजा करेगा या मुझ पर य् आंवला चढ़ायेगा , वह मोक्ष की तरफ अग्रसर होगा। ऐसा माना जाता है कि आंवले के पेड़ में श्री हरि और माता लक्ष्मी का वास होता है। इसकी जड़ में श्री विष्णु , तने में शिव और ऊपरी भाग में ब्रह्मा का वास माना जाता है। इसके अलावा इसकी शाखाओं में मुनि , देवता , पत्तियों में वासु और फूलों में मरुदगन का निवास माना जाता है। इस दिन आंवला खाने और उसकी दान करने का भी विशेष महत्व है। आमलकी एकादशी व्रत करने से शत्रुओं के भय से मुक्ति मिलती है धन-संपत्ति पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। पुण्य , स्वर्ग की प्राप्ति होती है और मोक्ष भी मिलता है।

पूजन विधि

इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान श्रीहरि का पूजन किया जाता है। आज सर्वार्थ सिद्धि और पुष्य नक्षत्र योग भी है , इस योग में पूजा और व्रत करने से कार्य सफल होते हैं और समस्त मनोकामनायें पूरी होती है। इस दिन आंवला पेड़ के नीचे एक चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र रखकर उसकी विधिवत पूजा की जाती है। इस दिन सुबह स्नान करके हाथ में जल , फूल और अक्षत् लेकर आमलकी एकादशी व्रत एवं पूजा का संकल्प करना चाहिये। इसके बाद भगवान विष्णु को पंचामृत स्नान कराकर उनको वस्त्र , पीले फूल , फल , केला , तुलसी का पत्ता , अक्षत् , धूप , दीप , गंध , चंदन , हल्दी , पान का पत्ती , सुपारी , आंवला आदि ओम भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते हुये अर्पित करना चाहिये। इसके पश्चात विष्णु चालीसा , विष्णु सहस्रनामक्ष, आमलकी एकादशी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करनी चाहिये। व्रत कथा का श्रवण या पाठ करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। पूजा के अंत में घी के दीपक से विधिपूर्वक भगवान विष्णु की आरती अवश्य करनी चाहिये। पूजा के बाद प्रसाद वितरण कर स्वयं भी ग्रहण करनी चाहिये। दिन में फलाहार और भगवत् भजन और शाम को विष्णु आरती करनी चाहिये। रात्रि जागरण में समय व्यतीत करते हुये अगले दिन प्राात: स्नान के बाद पूजा करके और सूर्योदय के बाद लेकिन द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले पारण करके व्रत को पूरा करनी चाहिये। एकादशी व्रत पारण हरि वासर के वक्त नहीं करना चाहिये , हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि को कहते हैं। एकादशी व्रत तोड़ने का सबसे अच्छा समय प्रातः काल का होता है , वहीं द्वादशी तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान माना जाता है। आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को आंवला अर्पित करने के साथ खुद भी ग्रहण करना शुभ माना गया है। इस दिन आंवले से जुड़े कुछ उपायों को करने से व्यक्ति को तमाम तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है।

आमलकी एकादशी की कथा

चित्रसेन राजा के राज्य में राजा सहित सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। एक दिन राजा शिकार खेलने जंगल में गया और वह शिकार करते हुये दूर-दूर जंगल में पहुंच गया। जंगल में छुपकर लुटेरे राजा पर हमला कर देते हैं। राजा और डाकुओं के बीच युद्ध होता है , इस दौरान डाकू राजा पर तरह-तरह के हथियारों से हमला करते हैं। लेकिन भगवान की कृपा से राजा पर चलाये जा रहे हथियार का कोई असर नहीं होता। लेकिन तभी राजा बेहोश होकर गिर जाता है। तभी राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट होती है , जो सभी डाकुओं को मार डालता है। जब राजा को होश आया तो राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इन डाकुओं को किसने मारा। तभी एक आकाशवाणी होती है कि हे राजा ! आपके आमलकी एकादशी व्रत की महिमा से इन सभी राक्षसों का वध किया गया है। आपके शरीर से निकलने वाली आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने उन्हें नष्ट कर दिया है। राजा यह सुनकर प्रसन्न होता है और अपने राज्य में लौट आता है और सभी लोगों को आमलकी एकादशी का महत्व बताता है।

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