धर्म

भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने लिया था नरसिंह अवतार, जानें पौराणिक कहानी Lord Vishnu took Narasimha avatar to protect devotee Prahlad, know the mythological story

सनातन धर्म में कई सारी कथाएं प्रचलित हैं जिसमें भगवान ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लिए हैं. भगवान श्री हरी विष्णु (Lord Vishnu) ने हर युग में अपने भक्तों को मुसीबत से उबारने और धर्म की रक्षा करने के लिए अवतार लिए हैं. उन्हीं में से एक है नरसिंह अवतार (Narasimha Avatar). नरसिंह अवतार भगवान विष्णु के मुख्य दस अवतारों में से एक है. भगवान नरसिंह को शक्ति और पराक्रम के देवता के रूप में जाना जाता है. पुराणों में उल्लेख मिलता है की वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान नरसिंह ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए अवतार लिया था. तो चलिए जानते है कौन है भक्त प्रह्लाद (Devotee Prahlad) और क्यों भगवान विष्णु को लेना पड़ा नरसिंह अवतार.पौराणिक मान्यता
हिन्दू पौराणिक मान्यतों में दो अतिबलशाली दैत्यों के बारे में उल्लेख मिलता है. जिनका नाम हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप था. हिरण्याक्ष का भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर वध किया था, और उसी के वध का बदला लेने के लिए हिरण्यकश्यप ने कठोर तप कर ब्रम्हाजी से वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई देवता, देवी, नर, नारी, असुर, यक्ष या कोई अन्य जीव, न दिन में, न रात में, न दोपहर में, न घर में, न बाहर, न आकाश में और न ही पाताल में, न ही अस्त्र से और न ही शस्त्र से मार पाए. ऐसा वरदान ब्रम्हा जी से पाकर वह खुद को तीनों लोकों का स्वामी समझने लगा.इसी हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था बालक प्रहलाद जो भगवान विष्णु का परम भक्त था. हिरण्यकश्यप जब खुद को भगवान मानने लगा तो उसने अपने राज्य में लोगों को स्वयं की पूजा करने को कहा, लेकिन प्रहलाद ने अपने पिता की बात नहीं सुनी और वो भगवान विष्णु की भक्ति में लगा रहा, जब यह बात हिरण्यकश्यप को पता लगी तो उसने अपने पुत्र को समझाया कि उसका पिता ही ईश्वर है वो उसकी भक्ति करे उसकी ही पूजा करे. हिरण्यकश्यप के कई बार मना करने पर भी भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी. इस बात को हिरण्यकश्यप ने अपना अपमान जान कर अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को मारने के लिए आदेश दिया. जलती अग्नि में वह प्रहलाद को लेकर बेठ जाये. होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती, लेकिन जब होलिका भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठी तो भगवान विष्णु की कृपा से वह खुद उस आग में जलने लगी और भक्त प्रहलाद का आग बाल भी बांका नहीं कर पाई.इस बात से हिरण्यकश्यप क्रोधित हो गया और क्रोध में आकर बालक प्रहलाद को मारने के लिए उसे खम्बे से बांध कर तलवार उठा ली और भक्त

 

 

 

 

 प्रहलाद से बोला- मैं आज तेरा अंत करने जा रहा हूँ. बता तेरा भगवान कहाँ है, भक्त प्रहलाद ने शांत भाव से अपने पिता से बोले वो हर जगह है, वो इस खम्बे में है. क्रोधित हिरण्यकश्यप ने जैसे ही उस खम्बे पर तलवार से वार किया वैसे ही खंभा फटा और नरसिंह भगवान अवतरित हुए. उनका रूप देख हिरण्यकश्यप कांप उठा. नरसिंह देव, ना पूरे पशु थे और ना पूरे मनुष्य, उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध अस्त्रों या शस्त्रों से नहीं बल्कि अपनी गोद में बिठाकर अपने नाखूनों से उसकी छाती चीर कर किया था, उस समय न सुबह थी न रात थी. नरसिंह भगवान ने भक्त प्रहलाद को अर्शीवाद दिया कि जो भी आज के दिन मेरा व्रत रखेगा वह सभी प्रकार के कष्टों से दूर रहेगा. जीवन में सुख शांति बनी रहेगी. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं sabkasandesh.com इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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