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*जब तक आप स्वयं योग्य न बन जाएं, तब तक अपनी मनमानी न करें – ज्योतिष ।*

यदि आप अपने व्यक्तिगत जीवन को, परिवार को, समाज को, राष्ट्र को लंबे समय तक सुरक्षित चलाना चाहते हैं, तो किसी योग्य बुद्धिमान व्यक्ति के अनुशासन में चलें। जब तक आप स्वयं योग्य न बन जाएं, तब तक अपनी मनमानी न करें।”

नीतिकारों ने कहा है कि — सत्ता, संपत्ति, जवानी, और मूर्खता, ये चार चीजें ऐसी हैं, कि यदि किसी के पास इनमें से एक भी हो, तो वह उसके विनाश के लिए पर्याप्त है। और जिसके पास ये चारों ही हों, फिर उसका तो कहना ही क्या है। वह तो बहुत शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा।”

ऐसी स्थिति में प्रश्न होगा, कि क्या सत्ता संपत्ति आदि प्राप्त नहीं करनी चाहिए? क्या जीवन में जवानी नहीं आएगी? क्या उसे फेंक देना चाहिए?”उत्तर है, जी नहीं। ये सब चीज़ें आवश्यक हैं। सत्ता भी काम की वस्तु है, और संपत्ति भी। और जीवन में जवानी भी आती ही है। इन चीजों का निषेध हम नहीं करते।”हम तो यह कहना चाहते हैं, कि *”यदि व्यक्ति को इनमें से कोई एक वस्तु भी प्राप्त हो जाए, और वह संयमी सदाचारी अनुशासित न हो, तो उसके विनाश की पूरी पूरी संभावना होती है।”

संसार में समाधान तो सभी समस्याओं का होता है। परन्तु मुख्य बात तो यह होती है, कि *”व्यक्ति उस समस्या के समाधान को ढूंढता नहीं। उसके लिए कोई परिश्रम नहीं करता। और यदि समाधान मिल भी जाए, तो उस को जीवन में वह स्वीकार नहीं करता। उस पर आचरण नहीं करता। इसलिए ऐसे व्यक्ति परिवार समाज नष्ट हो जाते हैं।

हमारे कहने का अभिप्राय यह है, कि यदि आप अपने व्यक्तिगत जीवन को लंबे समय तक सुरक्षित रखना चाहते हैं, सुखी आनंदित प्रसन्न और सफल बनाना चाहते हैं, अपने परिवार समाज को विनाश से बचाना चाहते हैं, तो आपको इसका उपाय करना होगा। वह उपाय है, “किसी बुद्धिमान योग्य व्यक्ति के अनुशासन में रहना। हर जगह अपनी मनमानी नहीं करना।”

यदि आपको ऐसा प्रतीत होता हो, कि कोई व्यक्ति आपसे अधिक योग्य बुद्धिमान धार्मिक सदाचारी चरित्रवान पक्षपात रहित न्यायप्रिय न्यायकारी है, तो उसके अनुशासन में चलें। मान अपमान को छोड़कर, अभिमान को छोड़कर, उस योग्य व्यक्ति के अनुशासन में चलें, तो आप की समस्याएं हल हो सकती हैं, अन्यथा नहीं।”

पहले 10 / 20 लोगों का परीक्षण कर लें। इनमें से कौन व्यक्ति उक्त गुणों से युक्त है। जो ऐसा गुणवान व्यक्ति हो, उसे अपना गुरु आचार्य निर्देशक अनुशासक स्वीकार करें। और जैसा वह कहे, वैसा काम आप करते जाएं। इसी शर्त पर आप आपपत्तियों से बच पाएंगे, अन्यथा नहीं।

“सत्ता संपत्ति जवानी और मूर्खता, ऐसी चीजें हैं, जो मनुष्य को हिला देती हैं, फिसला देती हैं। इनकी फिसलन में गिरने से बचने के लिए ही यह ठोस उपाय अनुशासन बताया गया है।”अनुशासन का अर्थ केवल इतना नहीं है, कि *”आपके आचार्य निर्देशक अनुशासक ने कुछ बातें आप को बताई, उनमें से जो आपको अच्छी लगी, वह तो आपने मान ली। और जो अच्छी नहीं लगी, वह नहीं मानी। इसका नाम अनुशासन नहीं है। इसका नाम है मनमानी। ऐसा करने से व्यक्ति परिवार समाज राष्ट्र नष्ट हो जाएगा।”

अनुशासन का अर्थ है, कि जैसा अनुशासक कहे, वैसा स्वीकार करें। वैसा आचरण करें। चाहे अनुशासक का निर्णय आपको अच्छा लगे, या ना लगे, उसका पालन अवश्य करना है। इसी का नाम अनुशासन है। अनुशासन आपकी, आपके परिवार की, समाज की, और राष्ट्र की रक्षा करता है। अतः उस अनुशासक का धन्यवाद करें। क्योंकि वह आपकी समस्याओं को सुलझाने के लिए अपना समय शक्ति धन ‘आपके लिए’ खर्च कर रहा है। इसलिए वह धन्यवाद और आभार का पात्र है।” “और जहां कोई रोक टोक करने वाला अनुशासक नहीं होता, वहां व्यक्ति परिवार समाज और राष्ट्र शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। जैसे माली के बिना बगीचा शीघ्र ही उजड़ जाता है।

—- ज्योतिष

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