छत्तीसगढ़

लघु वनोपज प्रबंधक नए साल से वनोपज खरीदी का बहिष्कार करने का फैसला Minor Forest Produce Manager decides to boycott forest produce purchase from new year

*लघु वनोपज प्रबंधक नए साल से वनोपज खरीदी का बहिष्कार करने का फैसला*

रिपोर्ट:- तेजराम निर्मलकर मड़ेली
*मड़ेली-छुरा/गरियाबंद/छत्तीसगढ़/:-* 34 वर्षो से नियमितीकरण की आश देख रहे लघु वनोपज प्रबंधक, 1 जनवरी से करेंगे लघुवनोपजो के संग्रहण का बहिष्कार। सरकार ने जनघोषणा पत्र में दिलाया था नियमितीकरण का भरोसा, निकला चुनावी जुमला।
*6 वर्षों से वेतन में एक रुपये की भी नही हुई वृद्धि
*सेवा नियम लगाया, किंतु आज तक नही किया अमल
छत्तीसगढ़ लघुवनोपजो के संग्रहण में पूरे देश मे नंबर एक है। कोई भी राज्य हमारे आस-पास भी नही है। मेहनत की दृष्टि से जिसका सबसे बड़ा उदाहरण लघुवनोपज संघ के 901 प्रबंधक हैं। जिनकी महेनत के कारण ही प्रदेश आज इन बुलंदियों पर पहुँच सका है। लघुवनोपजो के संग्रहण में प्रदेश सरकार को वर्ष 2020-21 में कुल 13 राष्ट्रीय अवार्ड भी मिले। फिर भी सरकार एवं अधिकारियों द्वारा विगत 34 वर्षो से प्रबंधको का सिर्फ शोषण ही किया जा रहा है और छला जा रहा है। जिसका साफ उदाहरण ये है कि जन घोषणा पत्र में प्रबंधको के नियमितीकरण का वादा किया वो अब तक सिर्फ चुनावी जुमला ही निकला, प्रबंधकों के वेतन में 6 वर्षो से एक भी रुपये की वृद्धि नही, 5 वर्ष पहले सेवा नियम बनाया गया, पर आज तक लागू नहीं, वेतन बढ़ाने राज्य संचालक मंडल ने प्रस्ताव बनाया उसे अभी तक लागू नही किया गया। इसके चलते प्रदेश के समस्त प्रबंधकों ने 01/ 01/ 2022 से लघुवनोपजो के संग्रहण के बहिष्कार का निर्णय किया है। प्रबंधको द्वारा सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना अंतर्गत पूर्व में 52 लघु वनोपजों का स्वसहायता समूहों के माध्यम से संग्रहण किया जा रहा था। इस वर्ष सरकार ने और तीन वनोपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया है। जिसमे कोदो 3000.00, कुटकी 3000.00 एवं रागी 3377.00 रुपये प्रति क्विंटल दर निर्धारित किया गया है। इन तीनो वनोपजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना में शामिल करने से कृषकों एवं संग्राहकों में काफी उत्साह देखा जा रहा है। किंतु प्रबंधको द्वारा वनोपज खरीदी के बहिष्कार से निश्चित तौर पर ख़रीदी पर सीधे असर दिखेगा।
*हांथ में गंगाजल का कसम खाकर बनाया था जनघोषणा पत्र, निकला चुनावी जुमला*
कांग्रेस सरकार ने गंगाजल की कसम खाकर जनघोषणा पत्र बनाया था जिसमे प्रबंधकों को तृतीय वर्ग कर्मचारियों का दर्जा देकर नियमितीकरण की बात की गई थी। किंतु 3 वर्षो से अधिक होने के बाद भी आज तक उस पर कोई निर्णय नही हो सका। मुख्यमंत्री और अधिकारी सिर्फ आश्वासन पर आश्वासन ही दे रहे हैं। अब तो जनघोषणा भी चुनावी जुमला शाबित हो रहा है।

*6 वर्षो से वेतन में नही हुई वृद्धि*
प्रबंधकों के साथ राज्य सरकार के दोहरे मापदंड और शोषण की हद इतनी बढ़ गई है कि विगत 6 वर्षों से प्रबंधकों का एक भी रुपये वेतन में वृद्धि नही की गई है। आज देश मे महंगाई जहां चरम सीमा पार कर चुकी है, वही प्रबंधको के साथ इस तरह दुर्व्यवहार एवं निंदनीय है।
*प्रबंधकों ने राज्य सरकार को दिलाये थे 13 नेशनल अवार्ड*
प्रबंधकों के ही कड़ी महेनत का नतीजा था जिसके कारण वर्ष 2020-21 में न्यून्तम समर्थन मूल्य योजना अंतर्गत वनोपजों के संग्रहण एवं विपणन हेतु राज्य शासन को 13 राष्ट्रीय अवार्ड मीले थे। जिससे पूरे राज्य में खुशी की लहर है। इस वर्ष भी विगत वर्षों से ज्यादा वनोपज संग्रहण का लक्ष्य राज्य शासन द्वारा रखा गया है। किंतु प्रबंधकों का विगत 34 वर्षों से हो रहे शोषण के चलते इस वर्ष लघु वनोपज के संग्रहण में कमी आ सकती है।

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