चाल धंसने में फंसे 4 मजदूर स्वयं रास्ता बना निकले बाहर, कहा-मां काली का चमत्कार, गांव में हो रहा पूजा-पाठ 4 laborers trapped in the sinking made their way out, said – miracle of mother Kali, worship is being done in the village
बोकारो. अगर हिम्मत और हौसला हो तो भगवान भी उसकी मदद करते हैं. इसके साथ यही यह बात एक बार फिर साबित हुई है कि जाको राखे साइयां मार सके ना कोई. ,झारखंड के बोकारो जिले के चंदनकियारी प्रखंड स्थित पर्वलपुर कोल ब्लॉक में अवैध खनन के दौरान चाल धंसने से चार मजदूर फंस गए थे. किसी को उम्मीद नहीं थी कि चारों की जान बचेगी. सबने मान लिया था कि अब ये लोग इस दुनिया में नहीं ही होंगे. लेकिन, चौथे दिन यानी 64 से 65 घंटे बाद चम्तकार हुआ और चारों खदान से बाहर निकल गए. सबसे खास बात यह कि बगैर किसी की मदद के यह हुआ. जाहिर है लोग इसे किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे हैं.
मजदूरों के घरवाले और गांव वाले इसी मां काली का चमत्कार मान रहे हैं. जैसे ही लोगों को चारों के जिंदा बच निकलने की सूचना मिली तिलाटांड गांव में मजमा लग गया. स्थानीय विधायक और झारखंड प्रदेश भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष अमर बाउरी जेएमएम जिला उपाध्यक्ष विजय रजवार भी गांव पहुंचे. चारों के बच निकलने की खुशी में गांव में पूजा-पाठ का दौर चल रहा है.
26 नवंबर की रात से खदान में फंसे थे मजदूर
बता दें कि 26 नवंबर, शुक्रवार को आमलाबाद ओपी क्षेत्र में सीसीएल के पर्वतपुर कोल ब्लॉक में अवैध खनन के दौरान चाल धंसने के कारण ये सभी चारों मजदूर फंस गए थे. दबे चारों लोग लक्ष्मण रजवार, रावण रजवार, भरत सिंह तथा अनादी सिंह ने स्वयं रास्ता बनाकर बाहर निकल आए. सभी स्थानीय तिलाटांड़ के निवासी हैं. उनकी सकुशल वापसी के बाद परिवार के लोग व प्रशासन ने राहत की सांस ली है. पूरे गांव मे जश्न का माहौल है तथा गांव में मां काली की पूजा की तैयारी चल रही है.
जैसे ही इन चारों मजदूरों के घर पहुंचने की सूचना मिली तो धीरे- धीरे पूरा गांव इकट्ठा हो गया. वहीं, मेडिकल टीम भी मौके पर मौजूद थी. खदान से बाहर आए लोगों का मेडिकल जांच करने के लिए चारों लोगों को जांच के लिए अस्पताल ले जाया जा रहा था, लेकिन ग्रामीणों ने इन्हें ले जाने से मना कर दिया जिसके बाद चारों की जांच कर मेडिकल टीम बैरंग लौट गई.
बीसीसीएल और एनडीआरएम ने भी बचाने का किया था प्रयास
बता दें कि सभी कोयला निकालने के लिए सुरंग के रास्ते अंदर गए थे. अचानक से चाल धंस गया. चाल धंसने की सूचना जमीन पर पड़ी दरार से मिली. हालांकि शुरू में पुलिस इस बात से इंकार करती रही, लेकिन जब फंसे हुए लोगों के स्वजन सामने आए तो प्रशासन भी सक्रिय हुआ. पूरे मामले में खास बात यह रही कि सुरंग की स्थिति को देखते हुए बीसीसीएल की रेस्क्यू टीम ने हाथ खड़ा कर दिये थे. वहीं, एनडीआरएफ की टीम ने पहुंचकर केवल रविवार को मुआयना किया.सोमवार से सुरंग के अंदर प्रवेश करने की बात थी. लेकिन, रविवार देर रात तब तक चारों ने अपने हिम्मत व बुद्धि का परिचय देते हुए जान बचा लिया.खदान के पानी के सहारे गुजार दिए तीन दिन
खदान में फंसे मजदूरों ने तीन दिन खदान का पानी पीकर रास्ता तलाशने का काम किया. इन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी और लगे रहे. सामने खड़ी मौत को मात देकर बाहर निकल गए. सुरंग में फंसे भरत सिंह ने बताया कि शुक्रवार को सुबह 9 बजे वे लोग कोयला निकालने के लिए अंदर गए कि अचानक से एक बजे चाल धंस गया. रास्ता बंद होता देख हमारी हिम्मत टूट गई और शाम तक बैठे रहे. बाहर से किसी की आवाज भी नहीं मिल रही थी. अपने पास जो भी पानी था उसका उपयोग करते हुए रात भर शांत रहे. हादसे के बाद प्रवेश किये रास्ता को साफ करने का प्रयास करने लगे.
काफी मेहनत के बाद भी सुरंग का रास्ता साफ नहीं हुआ. इसके बाद चारों लोगों ने यह निर्णय लिया कि यहां चाल धंस गया है सो दूसरे रास्ते की तलाश की जाय. इसके बाद वैकल्पिक रास्ते को साफ करने के लिए सभी लग गए. रविवार की सुबह से हिम्मत जुटाकर एक-एक कर रास्ते को साफ करने लगे. अंतत: रविवार की रात से रास्ता मिलने का आसार नजर आने लगा तो हिम्मत बढ़ी. जान बचाने की जिद के कारण भूखे-प्यासे पूरी रात मेहनत के बाद लगभग दो बजे रात में सुरंग के रास्ते पर पहुंचे और तीन बजे बाहर निकलकर घर पहुंच गए. उनका कहना था कि हमें यह पता चल चुका था कि प्रशासन के स्तर से किसी भी स्तर से प्रयास कर हमें बाहर नहीं निकाला जा सकता है.
टॉर्च की रोशनी में गुजारे चार दिन
सुरंग से निकले अनादी सिंह ने बताया कि जीवन की टूटती डोर के बीच हिम्मत नहीं हारे. यही कारण है कि आज अपने परिवार के साथ हैं. हादसा होने के बाद हमलोगों ने यह निर्णय लिया कि अपने पास चार टॉर्च है, उसमें से एक का ही उपयोग करना है ताकि बैट्री बरकार रहे. जब तक रोशनी है तब तक काम हो सकेगा. इसके लिए एक-एक कर रास्ते को खोजने का काम किया. बिना किसी संसाधन के कहीं हाथों से दूसरे रास्ते में पड़े पत्थरों को साफ करते गए और यह दैविक चमत्कार ही था कि हम लोग धीरे धीरे कर बाहर निकल गए. जैसे ही हम लोग बाहर निकलने से पहले पहुंचे तो ठंडी हवा धीरे-धीरे सुरंग में आने लगी तब हमें यह लगा कि अब हम बाहर आ चुके हैं.वहीं, रावण रजवार व लक्ष्मण रजवार का कहना है कि रोजगार नहीं मिला रहा है. उनके घर के पास कोल ब्लॉक है. चालू रहता तो इस प्रकार जान जोखिम में डालकर काम करने की कोई जरूरत नहीं है. बाहर में काम नहीं है. अंदर अवैध उत्खनन में जीवन का खतरा है पर परिवार को पालना है तो सबकुछ करना पड़ेगा. बीसीसीएल के अधीन है पर्वतपुर कोल ब्लाक।वही भरत सिंह की पुत्री नेहा सिंह जो प्रतिदिन मां काली मंदिर में साफ-सफाई और उसे पानी से धोने का काम करती है. उसने बताया कि जिस दिन या घटना घटी उसके रात को मां काली ने उसे स्वप्न दिया था कि खदान में कोई बड़ा हादसा हो सकता है. बावजूद इसके पिता वहां चल गए. रविवार रात 11:00 बजे तक पूजा-अर्चना की और हमें यह आभास हो गया कि अब यह लोग वापस आ रहे हैं सुबह इसकी सुखद सूचना भी हमें मिली.