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जन्म कुंडली क्या होती है

अक्सर आपने सुना होगा कि कुंडली बनवाना या फिर पंडितजी को अपनी कुंडली दिखाना। लेकिन क्या आपको पता है कि कुंडली कैसे बनती है और कुंडली से क्या क्या देखा जा सकता है। तो आइए जानते है श्री मंदिर के इस खास लेख में कि कुंडली क्या होती है।

जन्म कुंडली एक दस्तावेज है जिसका प्रयोग अक्सर ज्योतिष से जुड़ी गणनाओं को करने के लिए किया जाता है। एक जन्म कुंडली को बनाते वक़्त, जन्म तिथि, जन्म का समय, जन्म का स्थान और नाम पूछा जाता है। इन्हीं चारों घटकों को मिलाकर एक जन्म कुंडली का निर्माण होता है।

जन्म कुंडली को एक तरह से ज्योतिष प्रोफाईल भी कहा जा सकता है क्योंकि किसी भी व्यक्ति के ग्रहो की दशा किस प्रकार की है यह केवल जन्म कुंडली से ही पता लग सकता है। जन्म कुंडली का प्रयोग व्यक्ति के ग्रहों की दशा, मनोदशा और उनके योग के बारे में पता लगाने के लिए किया जाता है। ऐसा करके व्यक्ति की सम्भावी काबिलियत और भविष्य को पता करने की कोशिश की जाती है। जन्म कुंडली से यह भी पता लगता है कि जातक मांगलिक है अथवा नहीं।

कुंडली के प्रकार

समय विशेष पर ग्रहों को कुंडली में अंकित किया जाता है। हर स्थान पर कुंडली बनाने का तरीका अलग होता है, लेकिन ग्रह नौ ही होते हैं और राशियाँ भी बारह ही होती हैं। भारतवर्ष में भी कई प्रकार की कुंडलियाँ बनाने का प्रचलन है। जैसे उत्तर भारतीय पद्धति, दक्षिणी भारतीय पद्धति और पूर्वीय भारतीय पद्धति, इन तीन प्रकार की कुंडलियों का निर्माण भारतवर्ष में किया जाता है।

आइए जानते है कुंडली के प्रकार के बारे में

उत्तर भारतीय पद्धति

उत्तर भारतीय पद्धति में भाव स्थिर रहते हैं अर्थात एक से बारह भाव तक स्थिर होते हैं पर लग्न उदय के साथ राशियाँ बदल जाती है। जिस समय जो लग्न उदय होता है उसे सदा पहले भाव में लिखा जाता है और उसके बाद बाकि सभी राशियों को क्रम से लिखा जाता है। राशियों को बाईं ओर क्रम से लिखा जाता है, माना पहले भाव में कर्क राशि है तब बाईं ओर दूसरे भाव में सिंह राशि और तीसरे भाव में कन्या और बाकि सभी इसी क्रम में चलती जाएगी।

दक्षिण भारतीय पद्धति

दक्षिण भारतीय पद्धति में प्रचलित कुंडली में राशियाँ स्थिर रहती है और भाव बदल जाते हैं। पूरी कुंडली में लग्न भाव कहीं भी आ सकता है जबकि उत्तर भारतीय पद्धति में ऎसा नहीं है। दोनो की कुंडली बनाने का तरीका भी भिन्न होता है। जिस भाव में लग्न राशि आती है उसे दो तिरछी रेखाएँ खींचकर चिन्हित कर दिया जाता है। लग्न को पहला भाव मानते हैं और बाकी भाव दाईं ओर आते हैं। इस पद्धति में राशि स्थिर होती है, इसलिए राशि संख्या को कुंडली में दिखाया नहीं जाता है।

पूर्व भारत की कुंडली

देश के पूर्वी भागों में प्रचलित कुंडली में उत्तर व दक्षिणी भारत दोनों का स्वरुप देखने को मिलता है, लेकिन कुंडली का प्रारुप अलग ही होता है। दक्षिण भारतीय पद्धति की तरह इसमें राशियाँ स्थिर होती हैं लेकिन राशियों को क्रम से उत्तर भारतीय पद्धति के अनुसार बाईं ओर से लिखा जाता है। भाव योजना लग्नानुसार बदल जाती है।

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