जिस कागज पर समोसे खाए, उसमें लिखे फायदे से मिला आंवले की खेती का आइडिया,
गरीबी से उबरने के लिए खेती के साथ-साथ करते थे माल ढुलाई
भरतपुर जिले की कुम्हेर तहसील का एक गांव है पैंघोर, नगला सुमन। इस गांव में आज ज्यादातर लोगों के पास घर पर ही काम है। हर घर के लोग किसी न किसी राेजगार या धंधे से जुड़े हैं। इन्हीं में से एक किसान हैं अमर सिंह। यही कोई 1996-97 की बात होगी, जब गरीबी से जूझ रहे अमर सिंह अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए गेहूं-सरसों की पारंपरिक खेती करते थे और माल ढुलाई के लिए छोटे वाहन चलाया करते थे। इससे उनका पेट तो भरता था, मगर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई जैसे दूसरे खर्चों के लिए पैसे नहीं बचते थे।
महिला दुकानदार से मांगे समोसे, आदतन जब भी कुछ खाते हैं तो कागज जरूर पढ़ते
इसी सोच में डूबे अमर सिंह एक दिन जब अपनी गाड़ी लेकर निकले तो काफी समय बीत गया। उन्हें अचानक भूख लगी तो कुम्हेर बाजार में एक दुकान पर बैठ गए और वहां बैठी दुकानदार से समोसे खरीदे और उसे खाने लगे। आदतन वह जब भी कुछ खाते तो उस कागज को जरूर पढ़ते हैं, जिसमें खाने-पीने की कोई चीज होती है। उस दिन भी जब उन्होंने समोसा खा लिया तो वह अखबार के उस टुकड़े को पढ़ने लगे। उसमें उन्हें आंवले के फायदे के बारे में बताया गया था। यहीं से अमर सिंह के मन में आंवले की खेती करने का आइडिया आया।
मां डरीं कि खेतों को खराब मत करो, झगड़े भी होंगे, पत्नी बोलीं-जो होगा झेल लेंगे
आंवले की खेती करने के आइडिए को अमर सिंह ने जब अपनी मां और पत्नी से बताया तो मां डर गईं और कहा-यह तुम्हें क्या नया करने की सूझी है। कहीं खेत खराब हो गए तो रही-सही उगाई जाने वाली फसल भी बर्बाद हो जाएगी। साथ ही इस वजह से गांव में दूसरे लोगों से झगड़े भी हो सकते हैं। हालांकि, बहुत मनाने के बाद वह भी तैयार हो गईं। वहीं, पत्नी उर्मिला ने कहा-आपने अगर सोचा है तो जरूर करिए, जो भी होगा हम झेल लेंगे।
हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट से पूछा तो कहा-बकरी या मछली पाल लो, मगर यह न करो
अमर सिंह बताते हैं कि जब मैंने आंवले के बाग लगाने के बारे में सोचा तो सबसे पहले समस्या आई कि इसके पौधों का इंतजाम कैसे होगा। फिर मैंने उस समय हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट के लोगों से बात की, जिन्होंने कहा-बकरी पालन कर लो, मछली पालन कर लो, मगर यह न करो। क्योंकि राजस्थान में आंवला कौन उगा रहा है? हालांकि, जब उन्होंने जोर देकर कहा तो डिपार्टमेंट में तत्कालीन सुपरवाइजर रहे सुबरण सिंह ने उनकी मदद की और 19 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से आंवले के पौधों का इंतजाम करवाया। वह कहते हैं कि इन पौधों के साथ खासियत यह है कि एक तो इनमें जल्दी कीड़े नहीं लगते हैं और ये जानवरों की पहुंच से दूर भी रहते हैं।
बेटों की तरह जवान हो गए हैं आंवले के पेड़, अब देते हैं खूब फल, हर ओर चर्चा
आंवले के पौधे घर में आए तो मां-पत्नी ने बड़ी जतन और उत्साह से उसे खेतों में लगाने का काम शुरू किया। हम सभी ने दिन-रात उसमें मेहनत की और करीब 6 बीघे में इसके पौधे लगाए। आज हमारे आंवले के बाग बेटों की तरह जवान हो गए हैं। यह बात तहसील के हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट को पता चली तो वे लोग घर तक देखने आए कि भरतपुर में कौन आंवला उगा रहा है। इसके बाद तो हर कोई देखने आने लगा। पहले वह इन आंवलों को कच्चा ही बेचा करते थे, तो सालाना 3-4 लाख रुपए तक की कमाई हो जाती थी। जब आंवले की फसल नहीं भी होती है तो अमर सिंह ने इन खेतों में सब्जियों की खेती करते हैं, जिससे उन्हें अच्छी-खासी आय हो जाती है।
मुरब्बा बनाने का काम शुरू करते ही बढ़ी डिमांड, अब 10 लाख तक कमाई
जब लोग अमर सिंह के आंवले के बाग देखने आते तो उनसे मुरब्बा और अचार खरीदने की डिमांड करते। इसके बाद उन्होंने इसे बनाने के काम का शुरू किया। इस काम में उन्होंने पहले तो गांव की करीब 25 महिलाओं को जोड़ा, जो देशी तरीके से बिना किसी केमिकल का इस्तेमाल किए आंवले को उबालने से लेकर उसे चाशनी में डुबाने तक का काम करती हैं।
ऐसे बेहतरीन मुरब्बों ने आसपास के इलाकों में डिमांड बढ़ा दी। हालांकि, लॉकडाउन में दिक्कतें आईं तो उन्होंने ज्यादातर काम मशीनों के हवाले कर दिया है। अब भी यहां 10-12 महिलाएं रोजगार पा रही हैं, जो अपने घर का कामकाज निपटाकर यहां मुरब्बे बनाने में जुटी हैं। आंवले की प्रॉसेसिंग के बाद से उन्हें सलाना करीब 10 लाख रुपए तक कमाई हो जाती है।