एक ही खेत के कुछ हिस्सों में जैविक खाद तथा कुछ में रासायनिक खाद से लगाई फसल
दुर्ग। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के जैविक खेती अपनाने के आह्वान का जमीनी असर शानदार दिख रहा है। जिन किसानों ने पूरी तरह जैविक खाद से खेती की है उनकी धान की बालियां सघन और ऊंचाई भी नियत रही हैं। कई किसानों ने कुछ चक में जैविक खाद लिया तथा कुछ में रासायनिक खाद लिया। जैविक खाद से ली गई फसल में धान की बालियां अधिक आईं और ऊंचाई भी नियत रही। रासायनिक खाद की फसल में बालियां भी कम थी और ऊंचाई अधिक होने की वजह से फसल भी झुकी।
गनियारी और बोरई के जैविक खाद से खेती कर रहे किसानों के अनुभव जानने पर उन्होंने बताया कि उन्होंने दो अलग-अलग चक चुने और जहां जैविक खाद से खेती की, उसका अनुभव बेहतरीन रहा। किसानों ने बताया कि रासायनिक खाद की तुलना में प्रति क्विंटल एक एकड़ उत्पादन अधिक हुआ।
बोरई के कृषक झवेन्द्र वैष्णव बताते हैं
कि उन्होंने इस वर्ष अपने 17 एकड़ जमीन में से एक एकड़ जमीन में जैविक खेती करने का फैसला लिया। जिसके लिए कृषि विभाग के द्वारा उसे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय से छत्तीसगढ़ देवभोग सुगंधित धान मुहैया कराया गया। इस खेत में उन्होंने पूर्ण रूप से लगभग 200 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट खाद का उपयोग किया है और फसल के परिणाम से वो बहुत ही खुश हैं। उनका खेत धान की बालियों से खचा-खच भरा हुआ था।
बीते वर्ष में एक एकड़ में 15 क्विटल धान की औसत उपज प्राप्त हुई थी परंतु इस वर्ष उन्होंने 16 क्विटल धान का उत्पादन किया। इस परिणाम से संतुष्ट होकर उन्होंने भविष्य में अपने पूरे 17 एकड़ खेत में जैविक खेती करने का निर्णय लिया है। इससे उन्हें सघन और नियत ऊचांई की फसल प्राप्त हो रही है। जिन खेतों में उन्होंने रसायनिक उर्वरक का उपयोग किया था उस फसल में बालियां भी कम आई हैं और रसायनिक उर्वरक के प्रभाव से फसल की ऊंचाई बहुत ज्यादा होने के कारण फसल जमीन पर गिर गई ।
उन्होंने बताया कि देवभोग सुगंधित धान का फाउंडेशन बीज उन्हें प्राप्त हुआ था जिसमें जैविक खाद का उपयोग करने से उनकी फसल पूर्ण स्वस्थ और रोग रहित थी। भविष्य में भी वह फाउंडेशन बीज या सी1, सी2 सर्टिफाइड बीज का ही प्रयोग करेंगे। इन जानकारियों के लिए उन्होंने कृषि विभाग को भी आभार प्रकट किया।
उल्लेखनीय है कि पहले छत्तीसगढ़ में जैविक खाद का उपयोग ही होता था और यहां के देवभोग जैसे सुगंधित चावल जब पकाये जाते थे तो दूर तक महकते थे। रासायनिक खाद ने इस सुगंध को और गुणवत्ता को कमजोर कर दिया और इससे फसल की कीमत भी गिर गई। अब जैविक उपज ले रहे हैं तो मार्केट में इसके अच्छे रेट भी मिलेंगे।
घर में ही जैविक खाद बना सके इसके लिए बढ़ाएंगे पशुओं की संख्या- प्रगतिशील किसान इस दिशा में बड़ा बदलाव कर रहे हैं। प्रगतिशील किसान डॉ. टीकम सिंह साहू ने बताया कि उनके बड़े-बुढ़े अपने समय में केवल गोबर के खाद का उपयोग, खेती के लिए किया करते थे। समय के साथ इसमें बदलाव आया और लोग रासायनिक खाद का उपयोग करने लगे। लेकिन राज्य शासन ने जिस प्रकार नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना के तहत् ग्रामीण संस्कृति को पुन: स्थापित किया है। उससे पुन: परंपरागत खेती की ओर वापसी हो रही है।
घर में ही वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार कर, सुधारी खेतों की सेहत- गनियारी के इंद्रजीत भरद्वाज जी घर में ही वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार करते हैं अपनी जमीन को स्वस्थ करने में लगे हुए हैं। वो अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। उन्होंने इसकी जिम्मेदारी गौठान में कार्य कर रही सचिव मथुरा साहू को दी है। मथुरा साहू ने बताया कि शासन की योजनाओं से वर्तमान में
उन्हें आसानी से केचुंआ प्राप्त हो जाते हैं जिससे विगत कई वर्षों से उनके द्वारा वर्मी कम्पोस्ट तैयार किए जा रहे हैं। वर्मी कम्पोस्ट खाद में बदबू नहीं होती है इससे पर्यावरण भी दूषित नहीं होता। उन्होंने यह भी बताया कि जिस गौठान में वह कार्य करती हैं वहां वर्मी कम्पोस्ट खाद की बिक्री हाथों हाथ हो जाती है।
किसान राजीव गांधी न्याय योजना में रजिस्टेशन कराकर रबी के फसल के लिए तैयार– किसान मिथलेश देशमुख ने बताया कि इस बार उन्होंने बोरई के गौठान से वर्मी कंपोस्ट खाद क्रय कर अपने खेत एवं बाड़ी को तैयार किया। राजीव गांधी किसान न्याय योजना के अंतर्गत राज्य शासन ने किसानों को जो इनपुट सब्सिडी देने का फैसला किया है उससे उत्साहित होकर वो इस बार रबी की फसल भी लेने वाले है। शासन की योजना ही है, जिससे मिथलेश प्रभावित होकर दलहन- तिलहन और फलों का वृक्षारोपण करने की सोच रहे है।
वर्तमान में जिले के सभी पंचायतों में किसान चौपाल का आयोजन भी किया गया था। जिसमें किसानों की खेती संबंधित समस्याओं को सुनकर उसका निदान करने का प्रयास भी किया गया था और कृषकों को बीज के साथ-साथ जैविक खेती से संबंधित जानकारियां भी मुहैया कराई गई थी। कृषि समन्वयकों द्वारा वर्मी कंपोस्ट खाद में केचुएं के महत्व को किसानों को बताया गया कि कैसे केचुएं भूमि की मिट्टी को लगातार पलटकर मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ाते हैं।