निकाय चुनाव को लेकर अब बढऩे लगी राजनीतिक सरगर्मी कांग्रेस और भाजपा से टिकट के दावेदार जुटे वार्डों में जनाधार बढ़ाने में
भिलाई। इस साल जिले के चार नगरीय निकाय भिलाई नगर निगम, नवगठित रिसाली नगर निगम और भिलाई तीन निगम के अलावा जामुल नगर पालिका का चुनाव होने की संभावनाओ है। मिल रही जानकारी के अनुसार इस सप्ताह आचार संहिता लगने और शीघ्र चुनाव को देखते हुए पार्षद पद के दावेदार अपनी राजनीतिक जमीन संवारने में जुट गए हैं। निगम और पालिका संबंधी निजी कामकाज पर दावेदारों में जरूरतमंदों को घर पहुंच सेवा देने की मची हुई होड़ देखते बन रही है। टिकट की अपनी दावेदारी को पुख्ता बनाने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को रिझाने में भी दावेदार कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
भिलाई, रिसाली और भिलाई-चरोदा नगर निगम सहित जिले के जामुल नगर पालिका में इसी साल दिसम्बर महीने में चुनाव होने की संभावना है। कोरोना को लेकर फिलहाल हालात नियंत्रण में दिखने से चुनाव टलने की गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। इसे देखते हुए चारों निकाय से पार्षद पद के दावेदार तैयारी में जुट गए हैं। हर दावेदार मतदाताओं में अपनी पहचान को विस्तार देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। लोगों के निकाय से जुड़े कामकाज में कईं दावेदार घर पहुंच सेवा देकर दिल जीतने की कोशिश में लगे हुए हैं।
वार्ड में अपनी राजनीतिक जमीन को संवारकर जीत का परचम लहराने से पहले अनेक दावेदारों के लिए पार्टी का टिकट हासिल करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। यह स्थिति कांग्रेस और भाजपा जैसी प्रमुख राजनीतिक पार्टी में देखने को मिल रही है। चारों निकाय के कुछ वार्ड ऐसे हैं जहां कांग्रेस और भाजपा में टिकट के लिए दावेदारों की अधिकता से कश्मकश की स्थिति बन सकती है। इस बात का अहसास दावेदारों की भी है। लिहाजा अपनी अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को रिझाने की तमाम कोशिशें दावेदारों की ओर से शुरू कर दी गई है।
गौरतलब रहे कि भिलाई नगर निगम और जामुल पालिका के निर्वाचित परिषद का कार्यकाल जनवरी 2021 में खत्म हो चुका है। भिलाई से अलग होकर अस्तित्व में आने वाली रिसाली नगर निगम को भी पहली निर्वाचित परिषद का पिछले दो साल से इंतजार है। कोरोना संक्रमण के चलते इन तीनों निकाय का चुनाव निर्धारित समय पर संभव नहीं हो सका। इस बीच भिलाई-चरोदा नगर निगम का कार्यकाल जनवरी 2022 में खत्म होना है। ऐसे में भिलाई-चरोदा के साथ ही साल के अंतिम महीने में भिलाई, रिसाली व जामुल का चुनाव होने की प्रबल संभावना बनी हुई है। बीते 12 नवंबर को इस संबंध में निर्वाचन आयोग की महत्वपूर्ण बैठक हो चुकी है।
यहां पर यह बताना लाजिमी होगा कि जिले के इन चारों निकाय के वार्डों का परिसीमन नए चुनाव के मुताबिक करने के बाद आरक्षण की प्रक्रिया भी पूरी की जा चुकी है। भिलाई सहित भिलाई-चरोदा, रिसाली और जामुल में वार्डवार मतदाता सूची तैयार किया जा चुका है। फिलहाल कोरोना संक्रमण को भी काफी हद तक नियंत्रित किया जा चुका है। संभावित मानी जा रही कोरोना की तीसरी लहर का खलल नहीं पड़ता है तो दिसम्बर में चारों निकाय का चुनाव तय माना जा रहा है।
कांग्रेस के सत्ता और संगठन में तालमेल
पार्षद पद के प्रत्याशी चयन के दौरान कांग्रेस के बड़े नेताओं में तालमेल का आसार है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का यह गृह जिला है। उनके नजदीकी समर्थकों की प्राय: चुनाव होने वाले सभी चारों निकायों में मौजूदगी है। भिलाई-चरोदा और जामुल मंत्री गुरु रुद्रकुमार के अहिवारा निर्वाचन क्षेत्र का निकाय है। रिसाली नगर निगम प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू का क्षेत्र है। वहीं भिलाई नगर निगम की वर्तमान कांग्रेसी राजनीति विधायक व निवृत्तमान महापौर देवेन्द्र यादव के इर्द-गिर्द घूम रही है।
इन परिस्थितियों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि चारों निकाय में कांग्रेस का टिकट बड़े नेताओं के बीच तालमेल बिठाकर तय किया जाएगा। हालांकि पार्षदों के बहुमत के आधार पर महापौर व पालिका अध्यक्ष चुनने के नियम लागू होने के बाद पहली बार होने वाले चारों निकाय के चुनाव में टिकट के लिए एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति से तालमेल बनाना खासा चुनौतीपूर्ण रह सकता है।
कश्मकश में भाजपा के दावेदार
भाजपा से पार्षद बनने का सपना संजो कर तैयारी में जुटे दावेदार एक अलग तरह की कश्मकश के दौर से गुजर रहे हैं। चारों निकाय में भाजपा के अनेक ऐसे दावेदार सामने आ रहे हैं जो अपनी दावेदारी को अमलीजामा पहनाने किस दरबार में माथा टेकने जाएं यह तय नहीं कर पा रहे हैं। दुर्ग जिले की भाजपाई राजनीति में राज्यसभा सांसद सरोज पाण्डेय का दबदबा कायम है।
+संगठन में समर्थकों का कब्जा होने से पार्षद प्रत्याशी चयन में सरोज पाण्डेय की पसंद को प्राथमिकता मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा रहा है। बावजूद इसके लोकसभा सांसद विजय बघेल, पूर्व मंत्री प्रेम प्रकाश पाण्डेय व वैशाली नगर विधायक विद्यारतन भसीन की टिकट वितरण में रहने वाली भूमिका को नकारा नहीं जा रहा है। इसी वजह से भाजपा के दावेदार यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि अपनी टिकट को पक्की करने किस नेता या फिर नेत्री को साधा जाए।