दलहन क्षेत्र विस्तार अंतर्गत उतेरा फसल लेने कृषकों को किया जा रहा है प्रेरित
दुर्ग। राज्य में वृहद रूप से उतेरा फसल के रूप में दलहन-तिलहन की खेती की जाती है। शासन के निर्देशानुसार जिले में वर्षा आधारित क्षेत्र में धान फसल की कटाई उपरांत भूमि के अवशेष नमी का उपयोग करते हुए उतेरा फसल के रूप में तिवड़ा की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है।
खरीफ की प्रमुख फसल धान की कटाई के 20-25 दिन पूर्व धान की खड़ी फसल में दलहन-तिलहन फसलों के बीज को छिड़कवां विधि से बोआई कर उतेरा फसल ली जाती है। वर्तमान में धान की फसल पर परिपक्व अवस्था में है। उतेरा फसल के रूप में तिवड़ा, अलसी राई-सरसों, मूंग, उड़द, मसूर, कुसुम की फसल बोई जाती है। प्रदेश में तिवड़ा उतेरा की प्रमुख फसल है तथा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित उन्नत किस्में महातिवड़ा, रतन एवं प्रतीक सर्वाधिक उपयुक्त किस्म है।
वर्ष 2021-22 में जिले के लिए 10560 हेक्टयर में तिवड़ा क्षेत्र विस्तार का लक्ष्य रखा गया है, इसके लिए चलाए जा रहे विशेष अभियान अंतर्गत पर्याप्त बीज की व्यवस्था करते हुए। मैदानी स्तर पर कृषकों को प्रचार-प्रसार के माध्यम से अधिक से अधिक उतेरा तिवड़ा फसल लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। तिवड़ा फसल में धान फसल की अवशेष नमी का उपयोग करते हुए अत्यंत कम लागत व श्रम में आसानी से उत्पादन लिया जा सकता है। इस अभियान को सफल बनाने के लिए खुले में चराई नियंत्रण हेतु रोका-छेका कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है जिससे कि रबी के मौसम की फसलें क्षेत्र विस्तार एवं उतेरा फसल को अधिक से अधिक प्रोत्साहित किया जा सके। उतेरा फसल के रूप में तिवड़ा की खेती करने से न केवल सुरक्षित नमी का सदुपयोग होता है साथ ही किसानों को अतिरिक्त दलहन भी प्राप्त होता है।