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पैसे का मूल्य

पैसे का मूल्य

एक नवयुवक एक दिन काम की तलाश में किसी धर्मशाला में पहुँचा । वहाँ के मैनेंजर ने कहा, तुम यहाँ पहरेदारी का काम कर लो। कौन आते हैं, कौन जाते हैं, इसका सारा ब्यौरा लिखकर रखना होगा। नवयुवक ने कहा, मालिक! मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूँ।

प्रबन्धक ने कहा, तब तो तुम हमारे काम नहीं आ सकोगे। तुमने एक दिन काम किया, अतः यह आठ आने अपनी मजदूरी ले लो। नवयुवक अपने भाग्य को कोसता हुआ जा ही रहा था कि धर्मशाला के सेठ को दया आई और उन्होने आठ आने अपनी ओर से दे दिए।

उस जमाने में आठ आने काफी होते थे। इसलिए नवयुवक ने आठ आने अपनी जरूरतों पर खर्च किए और बाकी आठ आने से एक बेहद छोटा सा व्यापार शुरू किया । धीरे-धीरे भाग्य ने पलटा खाया। एक दिन किसी संस्था वाले उसके पास चंदा मांगने आए। उसने संस्था का नाम देखकर खुशी-खुशी एक लाख रूपये दान में दे दिए।

संस्था ने उसे सम्मानित करने की योजना बनाई। उस संस्था में धर्मशाला का सेठ भी था। नवयुवक सेठ ने उस वृद्व सेठ के हाथ में एक लाख रूपये रखते हुए कहा, मैंने कोई बड़ा काम नहीं किया है अपितु आपने उस दिन आठ आने ज्यादा देकर जो उपकार किया था। उसी से मैंने व्यापार में सफलता पाई। आप मेरे गुरू हैं। तो आप का होना चाहिए।

पैसे का मूल्य व्यक्ति की स्थिति और उसके मन पर निर्भर करता है। उस समय मेरे लिए आठ आने अमुल्य थे, आज एक लाख का भी कोई मूल्य नहीं है। बड़ा दान तो वही था।

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