देश दुनिया

कुल्लू दशहरा उत्सव: प्रायश्चित करने के लिए निभाई जाती है ये अनूठी परंपरा, जानिए पूरी कहानी Kullu Dussehra festival: This unique tradition is played to atone, know the full story

कुल्लू. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में अंतरराष्ट्रीय देव महाकुंभ दशहरा पर्व में इस बार अनूठी परंपरा काहिका का आयोजन किया गया. भगवान बिजली महादेव की अध्यक्षता में कुल 11 देवी-देवताओं ने इस पर्व में भाग लिया. काहिका उत्सव प्रायश्चित के रूप में किया गया, ताकि आज तक देव संस्कृति में जो भी भूल हुई है, उनको समाप्त किया जा सके और खंडित देव परंपरा को बहाल किया जा सके.

 

बता दें कि काहिका उत्सव में नड़ जाति के प्रमुख की अहम भूमिका रहती है. इसे देवताओं द्वारा पहले मूर्छित किया जाता है और बाद में जिंदा किया जाता है. लेकिन इस काहिका में नड़ को मूर्छित नहीं किया गया, बल्कि नड़ द्वारा परिक्रमा की गई. साथ ही काहिका में अश्लील जुमलों का भी बोलबाला रहा. गत वर्ष दशहरा पर्व में देव परंपरा खंडित हुई थी और सिर्फ 8 देवी-देवताओं को ही दशहरा पर्व में बुलाया था. जिस कारण देवी-देवता रुष्ट थे. इसके अलावा दो वर्ष पहले देव धुन का आयोजन किया गया था जिसमें भी देव परंपरा खंडित हुई थी और देवी-देवता रुष्ट थे. जिस कारण इस उत्सव का आयोजन करना पड़ा.रघुनाथ जी के प्रमुख छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने बताया कि जो देव परंपरा खंडित हुई थी और देवी-देवता रुष्ट थे, उसके निवारण के लिए काहिका का आयोजन किया गया है. इस कार्यक्रम का सारा खर्चा देवलुओं ने किया. इससे पहले जब दशहरा पर्व में 1971 में गोलीकांड हुआ था तो उसके शुद्धिकरण के लिए 1972 में काहिका का आयोजन किया था. पहला काहिका 1957 में हुआ था, जब साम्प्रदायक दंगे में एक सम्प्रदाय के बहुत सारे लोग मारे गए थे और ढालपुर अशुद्ध हुआ था तब शुद्धिकरण के लिए काहिका मनाया गया था.

पहली बार कुल्लू में गोलीकांड के वक्त हुआ आयोजन

 

वहीं विशेष जाति के नड़ दौलत सिंह ने बताया कि इससे पहले यहां पर काहिके का आयोजन कुल्लू में गोलीकांड के वक्त किया गया था. उस कार्यक्रम में मेरे पूर्वजों ने भूमिका निभाई थी. उन्होंने कहा कि काहिका शुद्धिकरण के लिए आयोजित किया जाता है, और दुनिया की भलाई के लिए इसका आयोजन किया जाता है. देवी-देवताओं के आह्वान पर इस परंपरा का आयोजन किया जाता है. दूसरी बार है, जब ढालपुर में काहिके का आयोजन किया गया. इससे पहले देश आजाद होने के बाद काहिका का आयोजन किया गया था.नड़ दौलत सिंह ने बताया कि उसमें भी छोटे-छोटे बच्चे थे. उन्होंने बताया कि सीता माता के साथ सभी देवताओं ने परिक्रमा की गई. जिसको हम सीता कहते हैं. उन्होंने देवताओं के साथ पूरे कुरुक्षेत्र में परिक्रमा की. जिसमें देवी-देवता और रघुनाथ के छड़ीवदार महेश महेश्वर सिंह ने भी भाग लिया. उन्होंने कहा कि माता-सीता ने भी परिक्रमा देवी-देवताओं के साथ की और अंत में इसका समापन बिजली महादेव के अस्थाई शिविर में किया गया. परिक्रमा के तुरंत बाद बारिश का होना शुभ माना जाता है जो कि सृष्टि के लिए अच्छे संकेत माने जाते हैं. जैसे यज्ञ पूर्ण हुआ.

कुल्लू का दशहरा पहली बार सन 1660 में मनाया गया 

 

समृद्ध संस्कृति का परिचायक कुल्लू का दशहरा पहली बार कुल्लू में 1660 ईस्वी को मनाया गया. उस समय कुल्लू में राजा जगत सिंह का शासन हुआ करता था और राजा को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलने पर इस मेले के आयोजन का एलान किया किया, जिसमें राजा जगत सिंह की रियासत के साथ लगती अन्य रियासतों के देवी-देवताओं को भी निमंत्रण दिया गया और उत्सव में 365 देवी-देवताओं ने शिरकत की. उसके बाद यह उत्सव हर साल मनाया जाने लगा.

Related Articles

Back to top button