छत्तीसगढ़

भारतीय समाज में नारी अधिन नहीं थी उसे अपने जीवन के विषय में निर्णय लेने का पूरा अधिकार था । ज्योर्तिमयानंदःजी

*भारतीय समाज में नारी अधिन नहीं थी उसे अपने जीवन के विषय में निर्णय लेने का पूरा अधिकार था । ज्योर्तिमयानंदःजी*
कुलदेवी मां चंडी के आशीर्वाद से प्रातः स्मरणीय ज्योतिष एवं द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के कृपा पात्र शिष्य ब्रह्मचारी ज्योतिर्मयानंद जी महाराज के मुखारविंद से राजा पाण्डेय के बैकुंठ वासी मां एवं पिताजी के स्मृति में 7 अक्टूबर से दीनदयाल उपाध्याय कालोनी बेमेतरा में भागवत कथा निरंतर चल रहा है आज ब्रह्मचारी ज्योतिर्मयानंद जी ने श्रोताओं को कृष्ण चरित्र का विस्तार से वर्णन करते हुए उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया । बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं को रुक्मणी विवाह प्रसंग पर कथा बताते हुए कहा की श्री कृष्ण को रुक्मणी का एक पत्र मिला जिसमें शिशुपाल से विवाह करने से पहले उसे विदर्भ से दूर ले जाने के लिए कहा है श्री कृष्ण के नाम रुक्मणी के पत्र को समाजशास्त्र की दृष्टि से देखे तो उसका महत्व बहुत बढ़ जाता है आज का भारत ये भूल चुका है कि भारतीय संस्कृति ने वरमाला कन्या के हाथ में दी थी इसे भारतीयों ने वर्तमान में वरमाला से वधुमाला बना दिया है । यदि रुकमणी शिशुपाल से विवाह नहीं करना चाहती तो शिशुपाल से विवाह नहीं होगा और यदि आवश्यकता आ पड़े तो स्वयं श्री नारायण हस्तक्षेप करने पर विवश हो जाते हैं । की नारी के हाथों से यह अधिकार छीनने का अधिकार किसी को नहीं है ।रुकमणी के पत्र पर श्री कृष्ण का कुंदनपुर जाना ही यह सिद्ध करता है कि भारतीय समाज में नारी अधीन नहीं थी उसे अपने जीवन के विषय में निर्णय लेने का पूरा अधिकार था । श्री कृष्ण विदर्भ जाते हैं जहां उन्होंने भीष्मक और शिशुपाल को हराया और रुक्मणी को ले गए।

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