प्राचीन काल की बात है, किसी जंगल में एक व्याध रहता था। वह पक्षियों को जाल में फँसाकर अपनी आजीविका चलाता था। उसी जंगल में दो पक्षी भी रहते थे। जो आपस में मित्र थे। सदा साथ-साथ रहते, साथ-साथ उड़ते और रात्रि में एक ही वृक्ष में आराम करते थे। बहेलिये की चुतराई समझते हुए वे एक-दूसरे को सचेत करते रहते थे और पृथ्वी पर पड़े अनाज के दानों के लोभ में नहीं पड़ते थे, इसलिये उसके जाल से वे हमेशा बचे रहते। बहेलिया उन चिड़ियों को अपने जाल में फँसाना चाहता, किंतु बहुत दिन ऐसे ही बीत गये, अपनी मित्रता से वे पक्षी बचे रहे।
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एक दिन की बात है, उस बहेलिये ने पृथ्वी पर जाल बिछाया और दूर किसी पेड़ की आड़ में छिपकर खड़ा हो गया। संयोग की बात कि उस दिन वे दोनों पक्षी जाल में फँस गये। वे दोनों बड़े दुःखी हो गये। जाल से निकलना सम्भव नहीं था। बहेलिया भी उसी ओ आ रहा था। फिर क्या था, दोनों ने राय की और जब तक बहेलिया पास आता कि वे दोनों जाल लेकर आकाश में उड़ गये।
बहेलियाप कुछ निराश तो हुआ, पर उसने हिम्मत न हारी। जिधर-जिधर वे पक्षी जाते, उधर-उधर ही उनके पीछे जमीन पर वह भी दौड़ता गया।
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उसी वन में एक मुनि रहते थे। उन्होंने पक्षियों को पकड़ने के लिये उनका पीछा करते हुए बहेलिये को देखा तो उन्हें उसकी मुर्खर्ता पर हँसी आ गयी, जब दौड़ते-दौड़ते बहेलिया उनके आश्रम में पहुंचा तो वे उससे कहने लगे-
‘अरे व्याध! तुम मुझे बड़े ही मूर्ख मालूम होते हो, यह बड़ा आश्चर्य हे कि तुम आकाश में उड़ने वाले पक्षियों के पीछे-पीछे पृथ्वी पर पैदल दौड़ रहे हो।’
बहेलिया बोला-‘मुने! आपकी बात तो बिल्कुल ठीक है, किंतु ये पक्षी अभी मिले हुए हैं इसलिये मेरे जाल को लिये जा रहे हैं, पर जहाँ ये झगड़ने लगेंगे, वहीं जाल समेत गिर पडेंगे और मेरे वश में आ जायेंगे।’ यह कहकर वह पुनः उन पक्षियों के पीछे भागने लगा।
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कुछ दूर वे उड़े थे कि संयोगवश आपस में यह कहकर झगड़ने लगे कि जाल खींचने में तुम ताकत नहीं लगा रहे हो, सारा बोझ मुझ पर ही पड़ रहा है। यह कहते-कहते दोनों आपस में झगड़ने लगे। फलतः जाल की पकड़ ढीली हो गयी। अब वे दोनों आपस में लड़ते-झगड़ते साथ ही नीचे गिरने लगे और कूछ दूर आगे जाकर जालसहित जमीन पर गिर पड़े। बहेलिया तो पीछा कर ही रहा था, ज्यों कि जाल जमीन पर आया, त्यों ही उसने दौड़ कर जाल में फँसे उन दोनों मूर्ख पक्षियों को पकड़ लिया।
इसी प्रकार जो लोग मित्रता छोड़कर आपस में कलह करते हैं, वे उन पक्षियों की तरह विनाश को प्राप्त होते हैं। अतः कभी भी परस्पर विरोध नहीं करना चाहिए