10 अक्टूबर, 2021 (रविवार)

शारदीय नवरात्रि के अश्विन शुक्ल पंचमी को ललिता पंचमी पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष ललिता पंचमी/उपांग ललिता व्रत 10 अक्टूबर, रविवार को है। ललिता देवी माता सती पार्वती का ही एक रूप हैं। ललिता देवी को ‘त्रिपुर सुंदरी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व पूरे भारतभर में मनाया जाता है। इसे ‘उपांग ललिता व्रत’ के नाम से भी जाना जाता है। ललिता पंचमी का व्रत करने से व्यक्ति को सुख-संपत्ति के साथ संतान प्राप्ति का भी आशीष प्राप्त होता है। माताएं संतान के दीर्घ जीवन के लिए भी यह व्रत करती हैं। यह महाविद्या की दात्री देवी हैं। ललिता पंचमी कब शुरू हो रही है और कब इसका समापन हो रहा है, जानते है आगे
ललिता पंचमी का शुभ मुहूर्त
पंचमी तिथि प्रारम्भ – 10 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 55 मिनट से
पंचमी तिथि समापन – 11 अक्टूबर सुबह 2 बजकर 14 मिनट तक

ललिता व्रत की पूजा विधि
इस दिन सबसे पहले प्रात:काल में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ व्रस्त्र धारण करें। घर के ईशान कोण में, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर बैठे और मातारानी का पूजन करें। सबसे पहले शालिग्राम जी का विग्रह, कार्तिकेय जी का चित्र, माता गौरी और भगवान शिव की मूर्तियों समेत सभी पूजन सामग्री को एक जगह एकत्रित कर लें। पूजन सामग्री में तांबे का लोटा, नारियल, कुमकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन, अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, फल, मेवा, मौली, आसन इत्यादि हैं। पूजा के दौरान माता के मंत्रों का जाप करें, अंत में जो भी आपकी मनोकामना हो उसकी प्रार्थना करें। यदि आपके संतान नहीं है तो आप अपने लिए संतान सुख की प्रार्थना कर सकते हैं। इसके बाद मेवा-मिष्ठान और मालपूए एवं खीर इत्यादि का प्रसाद वितरित किया जाता है। कई स्थानों पर इस दिन चंदन से भगवान विष्णु की पूजा और गौरी-पार्वती की पूजा तथा भगवान महादेव जी की पूजा का भी चलन है। इस दिन मां ललिता के साथ-साथ स्कंद माता और भोलेनाथ की पूजा भी की जाती है। माता ललिता को त्रिपुरसुन्दरी के नाम से भी जाना जाता है।

व्रत कथा
माता सती अपने पिता राजा दक्ष द्वारा अपमान किए जाने पर यज्ञ की अग्नि में अपने प्राणों को त्याग देती हैं। तब भगवान शिव उनके शरीर को उठाए तीनों लोकों में घूमने लगते हैं। ऐसे में पूरी धरती पर हाहाकार मच जाता है। जब विष्णु भगवान अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह को विभाजित करते हैं तब भगवान शंकर को हृदय में धारण करने से उन्हें ललिता के नाम से पुकारा जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार देवी ललिता विभांडा नामक राक्षस का वध करने के लिए प्रकट हुई थीं। विभांडा की उत्पत्ति कामदेव के शरीर की राख से हुई थी।
10 अक्टूबर, 2021 (रविवार)
शारदीय नवरात्रि के अश्विन शुक्ल पंचमी को ललिता पंचमी पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष ललिता पंचमी/उपांग ललिता व्रत 10 अक्टूबर, रविवार को है। ललिता देवी माता सती पार्वती का ही एक रूप हैं। ललिता देवी को ‘त्रिपुर सुंदरी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व पूरे भारतभर में मनाया जाता है। इसे ‘उपांग ललिता व्रत’ के नाम से भी जाना जाता है। ललिता पंचमी का व्रत करने से व्यक्ति को सुख-संपत्ति के साथ संतान प्राप्ति का भी आशीष प्राप्त होता है। माताएं संतान के दीर्घ जीवन के लिए भी यह व्रत करती हैं। यह महाविद्या की दात्री देवी हैं। ललिता पंचमी कब शुरू हो रही है और कब इसका समापन हो रहा है, जानते है आगे
ललिता पंचमी का शुभ मुहूर्त
पंचमी तिथि प्रारम्भ – 10 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 55 मिनट से
पंचमी तिथि समापन – 11 अक्टूबर सुबह 2 बजकर 14 मिनट तक
ललिता व्रत की पूजा विधि
इस दिन सबसे पहले प्रात:काल में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ व्रस्त्र धारण करें। घर के ईशान कोण में, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर बैठे और मातारानी का पूजन करें। सबसे पहले शालिग्राम जी का विग्रह, कार्तिकेय जी का चित्र, माता गौरी और भगवान शिव की मूर्तियों समेत सभी पूजन सामग्री को एक जगह एकत्रित कर लें। पूजन सामग्री में तांबे का लोटा, नारियल, कुमकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन, अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, फल, मेवा, मौली, आसन इत्यादि हैं। पूजा के दौरान माता के मंत्रों का जाप करें, अंत में जो भी आपकी मनोकामना हो उसकी प्रार्थना करें। यदि आपके संतान नहीं है तो आप अपने लिए संतान सुख की प्रार्थना कर सकते हैं। इसके बाद मेवा-मिष्ठान और मालपूए एवं खीर इत्यादि का प्रसाद वितरित किया जाता है। कई स्थानों पर इस दिन चंदन से भगवान विष्णु की पूजा और गौरी-पार्वती की पूजा तथा भगवान महादेव जी की पूजा का भी चलन है। इस दिन मां ललिता के साथ-साथ स्कंद माता और भोलेनाथ की पूजा भी की जाती है। माता ललिता को त्रिपुरसुन्दरी के नाम से भी जाना जाता है।
व्रत कथा
माता सती अपने पिता राजा दक्ष द्वारा अपमान किए जाने पर यज्ञ की अग्नि में अपने प्राणों को त्याग देती हैं। तब भगवान शिव उनके शरीर को उठाए तीनों लोकों में घूमने लगते हैं। ऐसे में पूरी धरती पर हाहाकार मच जाता है। जब विष्णु भगवान अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह को विभाजित करते हैं तब भगवान शंकर को हृदय में धारण करने से उन्हें ललिता के नाम से पुकारा जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार देवी ललिता विभांडा नामक राक्षस का वध करने के लिए प्रकट हुई थीं। विभांडा की उत्पत्ति कामदेव के शरीर की राख से हुई थी।