दुर्ग के आनंद मधुकर रतन भवन में परम पूज्य श्री विवेक मूनि का सथारा के साथ देवलोक गमन
दुर्ग। कर्नाटक गज केसरी गुरुदेव गणेश लाल जी म.सा एवं दक्षिण केशरी मि लाल जी के शिष्य तेला तप अराधक उप प्रवर्तक विवेक मुनि म.सा का संथारा के साथ उन्होंने आज प्रात: 7 बजे जय आनंद मधुकर रतन भवन में अंतिम सांस ली है । विवेक मुनि महाराज का स्वास्थ्य विगत पांच 6 दिनों से अस्वस्थ चल रहा था स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से 2 दिन पूर्व भिलाई के प्राइवेट अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था कल रात्रि 11.30 बजे स्वास्थ में अत्यधिक गिरावट के कारण उन्हें डॉ की सलाह ले कर आज प्रात: जय आनंद मधुकर रतन भवन ले आए और उन्हें छत्तीसगढ़ प्रवर्तक रतन मुनि महाराज ने संथारा का संकल्प दिलाया और लगभग डेढ़ घंटे बाद उनके संथारे का संकल्प पूर्ण हुआ और वह देव गति को प्राप्त हुए। जैन समाज दी गई सूचना के बाद जय आनंद मधुकर रतन भवन बांध का तालाब दुर्ग से उनकी बैकुंठी यात्रा प्रारंभ हुई। ओसवाल पंचायत दुर्ग एवं श्रमण संघ दुर्ग के आह्वान पर बैकुंठी यात्रा 12.30 बजे जय आनंद मधुकर रतन भवन से निकली है छत्तीसगढ के अलावा महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों के जैन समाज के सभी संप्रदाय के लोग अंतिम दर्शन को उपस्थित रहे।
विवेक मुनि की अंतिम यात्रा बांधा तालाब से प्रारंभ होकर शनिचरी बाजार जवाहर चोक गांधी चौक मोती कॉन्प्लेक्स पुराना बस स्टैंड में बैकुंठी यात्रा समाप्त हुई फिर वहां से जैन समाज के लोग जय कार्य के साथ मंगल साधना केंद्र मंगलम पहुंचे वहां उनका अंतिम दर्शन के लिए कुछ समय तक रखा गया और फिर जैन समाज एवं उनके परिवार की उपस्थिति में उनका अंतिम संस्कार मंगल साधना केंद्र मंगलम चरोदा में किया गया। मंगल साधना केंद्र के इसी परिसर में विवेक मुनि महाराज का समाधि स्थल निर्माण किया जाएगा।
ओसवाल पंचायत दुर्ग के पारित प्रस्ताव के अनुसार आज जैन समाज के लोग अपनी व्यापारिक प्रतिष्ठान दिन भर बंद रख कर अंतिम यात्रा में शामिल हुए।
विवेक मुनि महाराज का संक्षिप्त परिचय
विवेक मुनि का जन्म सन 1940 में हुआ था उनकी माता मती चंदा देवी एवं पिता सुगनचंद सिंधवी थे स्वर्गीय सुशीला देवी उनकी धर्मपत्नी थी उनकी एक पुत्र नितिन एवं पुत्री सुनीता भलगठ है
विवेक मुनि की दीक्षा कलम महाराष्ट्र में सन 2000 में हुई थी
गुरु के रुप में साध्वी प्रभा कवर जी ,गुरु मिलाल जी के पावन सानिध्य में संयम धर्म पालन किया कर्नाटक गज केसरी गणेश लाल जी महाराज की शिष्य परंपरा में विवेक मुनि दिक्षीत हुए। आपकी प्रसिद्धि तेला तप आराधक के रुप में हुई। 38 वर्ष की उम्र में कई बड़े पचखान लिए 53 उपवास की तपस्या एवं कई मासखमण तथा 8 की तपस्या आपने कई बार की है आपके शिष्य के रूप में सोरव मुनि, एवं गौरव मुनि आपके साथ हैं।