निष्काम कर्म का सही अर्थ समझें – ज्योतिष
*निष्काम कर्म का सही अर्थ समझें – ज्योतिष*
वैदिक शास्त्रों में बताया है, कि दो प्रकार के कर्म होते हैं। एक – सकाम कर्म। और दूसरे – निष्काम कर्म। जैसे ‘सपरिवार’ शब्द का अर्थ है ‘परिवार सहित’। इसी तरह से ‘सकाम’ शब्द का अर्थ है ‘कामना सहित’। कौन सी कामना सहित? इसका उत्तर है ‘सांसारिक सुख की कामना सहित’। अर्थात जब कोई कर्म सांसारिक सुख की कामना सहित किया जाएगा, तो उसे ‘सकाम कर्म’ कहेंगे। जैसे कोई व्यक्ति धन की कामना से व्यापार करता है। कोई सम्मान की कामना से सेवा करता है, परोपकार करता है। कोई प्रसिद्धि या शिष्य बनाने की कामना से कर्म करता है। इन सब का उद्देश्य है, धन सम्मान आदि को प्राप्त करके इंद्रियों के सुख भोगे जाएं। इस प्रकार से जो भी इंद्रियों के पांच विषय हैं, रूप रस गंध शब्द और स्पर्श; इन पांच सांसारिक विषयों का सुख लेने की इच्छा से जब कोई कर्म किया जाता है, तो उसे ‘सकाम कर्म’ कहते हैं।
निष्काम कर्म इसके विपरीत है। ‘निष्काम = कामना रहित।’ इसमें कामना का निषेध किया गया है। अर्थात कामना रहित कर्म को ‘निष्काम कर्म’ कहते हैं।
अब इस विषय पर विशेष ध्यान देना चाहिए, कि निष्काम कर्म में जो कामना का निषेध किया जा रहा है, वह कौन सी कामना है? निष्काम शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं। पहला – जो सांसारिक सुख की कामना, सकाम कर्म में थी, उसका निषेध किया गया है। दूसरा अर्थ – सभी कामनाओं का निषेध किया गया है, अर्थात इस कर्म के पीछे कोई भी कामना नहीं है, न तो सांसारिक सुख की, और न ही मोक्ष सुख की। इस प्रकार से सभी कामनाओं का निषेध कर दिया गया है।
निष्काम शब्द का यदि दूसरा वाला अर्थ मानें, तो ऐसा मानने पर तो कर्म करना ही असंभव हो जाएगा। क्योंकि आत्मा स्वभाव से अपूर्ण है। उसमें बहुत सी कमियां हैं। वह अपनी कमियों को पूर्ण करना चाहता है। उदाहरण के लिए – आत्मा के पास ज्ञान की कमी है, बल की कमी है, बुद्धि धन संपत्ति पुत्र परिवार इत्यादि बहुत सी वस्तुओं और भौतिक सुखों की कमी है। उसके पास मोक्ष आनन्द की भी कमी है। वह हमेशा इस कमी को पूरा करना चाहता है। और इसी कमी को पूरा करने के लिए वह कर्म करता रहता है। तो ऐसा कभी हो ही नहीं सकता, कि आत्मा बिना किसी कामना के कर्म करे।
यदि आत्मा के पास अपना ज्ञान होता, अपना आनंद होता, तो वह बिना कामना के कर्म कर सकता था, जैसे कि ईश्वर करता है। ईश्वर में अपना ज्ञान है, अपना आनंद है, इसलिए वह बिना स्वार्थ के केवल परोपकार के कर्म करता है। परंतु आत्मा की स्थिति ऐसी नहीं है। उसके पास अपना ज्ञान बहुत कम है। उसे हमेशा अन्य से ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रहती है। और आनंद भी आत्मा के पास नहीं है, इसलिए आनंद की खोज में वह दिन रात भटकता रहता है। इसलिए कभी भी आत्मा इन कामनाओं से रहित होकर कोई कर्म नहीं करेगा। या तो वह सांसारिक सुख की कामना से कर्म करेगा, या मोक्ष आनंद की कामना से कर्म करेगा। इसलिए निष्काम शब्द का यह अर्थ करना गलत है, कि सभी कामनाओं को छोड़कर कर्म किया जाए।
तो फिर निष्काम शब्द का सही अर्थ क्या है? सही अर्थ यह है, कि सकाम शब्द में जो सांसारिक सुख की कामना थी, निष्काम शब्द में उसका निषेध किया गया है। अर्थात सांसारिक सुख की कामना को छोड़कर, जब आत्मा मोक्ष सुख की कामना से कर्म करेगा, उसे निष्काम कर्म कहेंगे।
एक बात और विशेष रूप से समझनी चाहिए।
कि एक ही कर्म सकाम भी हो सकता है, और निष्काम भी। बस भावना या कामना का अंतर है।जब सेवा परोपकार विद्या प्रचार दान आदि शुभ कर्म सांसारिक सुख प्राप्ति की भावना या कामना से किए जाते हैं, तब इनका नाम सकाम कर्म होता है। और जब यही के यही कर्म मोक्ष प्राप्ति की भावना या कामना से किए जाते हैं, तो इन्हीं कर्मों का नाम निष्काम कर्म हो जाता है। इस प्रकार से सकाम और निष्काम का सही अर्थ समझना चाहिए।
सकाम कर्म से बचने का प्रयास करें, क्योंकि इसका फल भविष्य में बार-बार जन्म लेना और संसार में दुखों को भोगना होगा। तथा निष्काम कर्म करें। इसका फल जन्म मरण से छूट कर मोक्ष प्राप्त करके, सब दुखों से निवृत्ति एवं ईश्वर के उत्तम आनंद की प्राप्ति होगा।
*ज्योतिष कुमार*