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*डिजिटल साक्ष्य एवं अपराधिक न्याय प्रणाली*

डिजिटल साक्ष्य*- डिजिटल साक्ष्य या इलेक्ट्रानिक्स साक्ष्य डिजिटल रूप में संग्रहित या प्रेषित कोई भी संभावित जानकारी है, जिसे अदालती मामले में एक पक्ष परीक्षण में उपयोग कर सकता है। डिजिटल साक्ष्य को स्वीकार करने के पहले अदालत यह निर्धारित करेगी कि क्या साक्ष्य प्रासंगिक है, प्रमाणित है, अफवाह है। पिछले कुछ दशको में डिजिटल साक्ष्य का उपयोग बढ़ा है नेशनल इस्टीट्यूट ऑफ जस्टिस संयुक्त राज्य अमेरिका के अनुसार डिजीटल साक्ष्य किसी इलेक्टानिक डिवाइस में संग्रहित, प्राप्त, प्रेषित ऐसी सूचनाएॅ या ऑकड़े हैं जिनका अनुसंधान में महत्व है। आधुनिक उपकरण व्यक्तिगत जानकारी के विशाल भंडार के रूप मे हैं, जो जेब में रखा जा सकता है तथा एक हाथ से इस्तेमाल किया जा सकता है या वाइस कमाण्ड से भी उपयोग किया जा सकता है। डिजिटल साक्ष्यों के द्वारा सजा दिलाने के स्पष्ट फायदे हैं। परन्तु इसके लिए कानून प्रवर्तन और अन्य अपराधी न्याय साझेदारों को डिजिटल साक्ष्यों के संग्रहण और न्यायालय में प्रस्तुतीकरण तथा उसकी न्यायालय में साक्ष्य के रूप में स्वीकार्यता के मध्य सामंजस्य बनाना होगा। जबकि डिजिटल साक्ष्यों का निष्कर्षण कानून प्रवर्तन अभिकरण के लिए अपेक्षाकृत एक नया उपकरण है। डिजिटल साक्ष्य पीडि़त और संदिग्ध दोनो से मिल सकता है। जिन मामलों में डिजिटल सबूत के उपलब्ध होने की संभावना कम होने से उन मामलों में लीड मिलना और साल्व करना कठिन हो जाता है। डिजिटल साक्ष्य की धारणा अन्य साक्ष्यों के अनुरूप है। डिजिटल साक्ष्यों के प्रसंस्करण का महत्व व्यक्तिगत इलेक्ट्रानिक उपकरणों के तेजी से प्रसार के कारण बढ़ा है। 21वी सदी को आंशिक रूप से पोर्टेबल संगीत उपकरण, सेलफोन एवं कम्प्यूटिंग उपकरणों के एडवांस के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। सेलफोन मात्र संचार उपकरण न होकर बल्कि यह एक माइक्रो कम्प्यूटर जो एक टेलीफोन, कैलेण्डर, डायरी और ई-मेल सिस्टम के रूप में सेवा देने लगा है। व्यापकता का तत्व जो आधुनिक तकनीक की विशेषता है, डिजिटल साक्ष्य को परंपरागत भौतिक रिकार्ड एवं साक्ष्यों से निम्न 03 केन्द्रीकृत विशेषताओं के माध्यम से समझ सकते हैं 1. डिजिटल साक्ष्य का व्यापक दायरा होता है। 2. यह, दोनो शारिरीक और व्यक्तिगत रूप से संवेदनशील जानकारी के साथ डील करता है। 3. यह परस्पर अपराधिक न्याय के मुद्दे जो कानून प्रवर्तन की विशिष्ट भूमिका से परे है ऐसे मामलो में भी साक्ष्य संग्रहण हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। *डिजिटल साक्ष्य के श्रोत 1. इंटरनेट* कानून प्रवर्तन अनुसंधानो में इस्तेमाल किये गये साक्ष्य कुछ पहले संचार वेबसाइटों विशेष रूप से संदेशबोर्ड और चैटरूम से हुई। इस प्रकार की साइटे वर्तमान जॉच के लिए सूचना का महत्वपूर्ण स्त्रोत है हालांकि अन्य इंटरनेट से जुड़ी हुई प्राद्योगिकी कई संभावित साक्ष्यों के स्त्रोत हैं। उपरोक्त स्त्रोतों को उपयोग करने में कानून प्रवर्तन अभिकरणों को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये स्त्रोत ऐसे साइटों के स्थान और पते नहीं होते न ही सार्वजनिक ज्ञान के दायरे में होते हैं। उपयोगकर्ता गुमनाम और संभावित रूप से इनकोडेड या इनक्रिप्टेट संचार पर भरोसा करते हैं। इंटरनेट की विश्वव्यापी प्रकृति ने इसे जटिल बना दिया है। फिर भी ऐसी साइटों से महत्वपूर्ण उपयोगी फिर भी ऐसी साइटें प्रतिभागियों के बीच के संबंध का संकेत करते है। कुछ इंटरनेट प्राद्योगिकियों में विशेष रूप से व्यक्तियों के पहचान और स्थान को छिपाने के लिए डिजाईन किया जाता है कि कौन उस तक पहुच प्राप्त कर रहा है और कौन उसे साझा कर रहा है। *2. कम्प्यूटर* कम्प्यूटर एक व्यक्तिगत संभावित डिजिटल सबूत का खजाना है। इनमे से कई सबूत भौतिक निष्कर्षण प्रक्रिया तरीके से या तार्किक निष्कर्षण प्रक्रिया तरीके से प्राप्त किया जा सकता है, जबकि कुछ सबूत ऑनलाइन मिली जानकारी के साथ ओवरलेप करती है। साक्ष्यों के कुछ उल्लेखनीय स्त्रोत इंटरनेट के बजाय भौतिक उपकरणों पर प्राप्त होते है, जब कभी भी इंटरनेट ब्राउस करते समय प्रोग्राम अक्सर अस्थाई इंटरनेट फाइले, कुकिज और एक ब्राउजिंग इतिहास बनाती है। इनमे से प्रत्येक वस्तुओं का उपयोग उपयोगकर्ता के वेब एक्टीविटी के अनुसंधान या जॉच निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है। वास्तव में अस्थाई फाइलें और कुकिज आमतौर पर वेबसाइटों द्वारा खुद को उपयोगकर्ताओं को ट्रेक करने और जानकारी संधारित करने के लिए किया जाता है। ई-मेल और अन्य संदेश कम्प्यूटर पर भौतिक रूप से प्राप्त किये जा सकते है। हालाकि अधिकांश ई-मेल इंटरनेट संर्वर पर होते हैं, जो स्वयं कानून प्रवर्तन का लक्ष्य होते हैं। *3. पोर्टेबल इलेक्ट्रानिक्स* वर्तमान में पोर्टेबल इलेक्ट्रानिक्स जैसे कि मोबाइल फोन प्राथमिक रूप से डिजिटल साक्ष्य प्रसंस्करण हेतु परीक्षको एवं शोधकर्ताओं के लिए फोकस का विषय है। पिछले दशकों के भीतर इस तरह के उपकरणों के उपयोग एवं शक्ति में भारी वृद्धि हुई, जिससे बड़े पैमाने पर विपणन भी किया गया है। यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं है कि डिजिटल साक्ष्य के क्षेत्र में मोबाइल फोन प्रमुख स्त्रोत है। यह आधुनिक समाज में सर्वव्यापी उपकरण है। 21वी सदी के दौरान क्षमताओं की क्रांति और वर्तमान की नई कानूनी चुनौतियों के बावजूद इसका एक कारण यह है कि यह पोर्टेबल डिवाइस महज एक कागज के टुकड़े के विपरित एक बहीखाता, डायरी, पर्सनल कम्प्यूटर इसके अतिरिक्त मोबाइल फोन में फोटोग्राफी, जीपीएस, टेक्सट मैसेज, ई-मेल और अन्य दस्तावेजों की सुविधाए है। *वर्तमान में डिजिटल साक्ष्य की स्थिति* डिजिटल साक्ष्य दोनो संदिग्धों और पीडि़तो से मिल सकते हैं, जैसा कि अपराधों में सभी शामिल व्यक्तियों के उनके स्वयं के सेलफोन जो यह पता लगाने के लिए पर्याप्त है कि प्रत्येक व्यक्ति अपराध से पहले क्या कर रहा था, कौन किससे संपर्क किया था और यदि कोई पिछली बातचीत रही होगी जो अपराध की ओर इशारा करते हुए साक्ष्य जैसे की धमकी भरे संदेश, अपराध के दृष्य से दूर की गई कालजयी तस्वीरों जैसे उत्तेजक सबूतों के साथ हो सकता है, अनुसंधान और आसान हो जाता है। इलेक्ट्रानिक उपकरण दुनिया को कनेक्ट करते हैं चाहे वह इंटरनेट, सोशल मीडिया या क्लाउड स्टोरेज प्रत्येक मामले में डिजिटल सबूत की आवश्यकता होती है। ऐसे प्रत्येक मामलों में डिजिटल सबूत मुख्य रूप से एक भौतिक उपकरण पर मौजूद नहीं हो सकता बल्कि एक सर्वर में, जो सुदूर देशोंमें हो सकते हैं। डिजिटल सबूत में संवेदनशील जानकारी शामिल होते हैं, जो शारीरिक और व्यक्तिगत हो सकते है। आधुनिक व्यक्तिगत उपकरण अत्यधिक छोटे एवं अत्यधिक हल्के होने के कारण उनकी गतिशीलता बढ़ जाती है और अधिक नाजुक होने के कारण कि पानी में डूबाकर, शक्तिशाली चुम्बक के संपर्क में लाकर या तोड़कर डिजिटल सबूत आसानी से नष्ट किया जा सकता है। एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण से सेलफोन एवं अन्य डिजिटल डिवाइस महत्वपूर्ण गोपनीयता रखते हैं क्योकि उसमें सर्वाधिक मात्रा में उपयोगकर्ता के जीवनशैली तथा उनके सहयोगियों और गतिविधियो की विशिष्ट साक्ष्य अनुसंधान के लिए उपलब्ध हो सकते हैं। डिजिटल साक्ष्य संकलन और प्रसंस्करण के लिए कानून प्रवर्तन अभिकरणों को नित नये तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा, क्योकि समय के साथ-साथ तकनीकी तेजी से बदल रही है। पूर्व मे इस्तेमाल किये जाने वाले तकनीक और उपकरण वर्तमान प्राद्योगिकी के परिप्रेक्ष्य में पर्याप्त एवं संगत नहीं है, नई तकनीको के इस्तेमाल हेतु कानून प्रवर्तन अभिकरण को अद्यतन एवं नई उपकरणों के संबंध में भी अद्यतन रहने की आवश्यकता है। *डिजिटल साक्ष्य के संबंध में कानूनी प्रावधान* प्राद्योगिकी में निरंतर बदलाव के साथ कानून प्रवर्तन की नीतियॉ एवं डिजिटल साक्ष्य से संबंधित मुद्दों में समन्वय के साथ अद्यतन होना अनिवार्य है। कानून प्रवर्तन अभिकरण को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि डिजिटल साक्ष्य न्यायालय में प्रस्तुत किये जाते हैं, जहॉ पर डिजिटल साक्ष्यों के संकलन के पश्चात सुरक्षित रखने के प्रश्न पर ‘‘चैन ऑफ कस्टडी‘‘ को न्यायालय में चैलेंज किया जा सकता है और न्यायालय में उसकी स्वीकार्यता को भी चैलेंज की जा सकती है। इस संबंध में भारतीय साक्ष्य अधिनियम में वर्ष 2000 में संशोधन के माध्यम से इलेक्ट्रानिक अभिलेखों की स्वीकार्यता के संबंध में धारा 65(बी) जोड़ी गई है, जिसके अनुसार ‘‘किसी इलेक्ट्रानिक अभिलेख में अंतर्विष्ट किसी सूचना को भी जो कम्प्यूटर द्वारा उत्पादित और किसी कागज पर मुद्रित, प्रकाशाीय या चुम्बकीय मीडिया में भंडारी, अभिलेखित या नकल की गई हो साक्ष्य में स्वीकार्य होगा। संयुक्त राज्य अमेरिका में संविधान में चौथे संशोधन के कारण जन सामान्य को, कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा डिजिटल साक्ष्य प्रसंस्करण के मामलों में अनुचित खोज एवं जप्ती कार्यवाही के खिलाफ संरक्षण प्राप्त है। कानून प्रवर्तन अधिकारियों को इलेक्ट्रानिक उपकरणों से डिजिटल साक्ष्य एकत्र करने हेतु उपयुक्त अदालत से एक वारण्ट प्राप्त करना होता है। वारण्ट रहित डिजिटल साक्ष्य प्रसंस्करण की परिस्थितियॉ, पार्टी की सहमति या सबूत तत्काल नष्ट होने के खतरे की स्थिति में की जा सकती है। *डिजिटल साक्ष्य का दस्तावेजीकरण* डिजिटल साक्ष्य का दस्तावेजीकरण साक्ष्य के प्रमाणीकरण और हिरासत की श्रृखला (Chain of Custody) जुड़वा मुद्दो को शामिल करता है। प्रमाणीकरण साक्ष्य स्थापित करने की प्रक्रिया वास्तव में क्या है? एक प्रमुख मुद्दा डिजिटल साक्ष्य को प्रमाणित करने में अक्सर इलेक्ट्रानिक रिकार्ड के लेखक के पहचान करने में होती है, उदाहरण के लिए किसी ई-मेल को अभियोजक द्वारा साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने पर यह प्रमाण दिखाने की आवश्यकता होगी कि उक्त ई-मेल पीडि़त को प्रतिवादी द्वारा लिखा गया था, जिसके संबंध में विशेषज्ञ या जानकार को सबूतों के माध्यम से न्यायालय में गवाही देकर प्रमाणित करना होता है। जैसे कि एक कानून प्रवर्तन अधिकारी जिसने कम्प्यूटर या सेलफोन को जप्त किया है उसमें से संग्रहित की गई डिजिटल साक्ष्य के संबंध में जप्तकर्ता अधिकारी को न्यायालय में विचारण के दौरान यह सबूत पेश करना पड़ता है कि संग्रहित डिजिटल साक्ष्य उन कम्प्यूटर या सेलफोन से प्राप्त की गई है, यह सबूतों की प्रमाणीकरण की प्रक्रिया है। डिजिटल सबूतों के हिरासत की श्रृखला (Chain of Custody) यह आश्वासन देता है कि डिजिटल साक्ष्य को मूलतः संरक्षित किया गया है, एक ऐसा दस्तावेज जिसमें यह साक्ष्य एकत्र किया गया और कहॉ से एकत्र किया गया अर्थात उपकरण का प्रकार पहचान और स्वामित्व, उपकरण किसके पास था तथा उपकरण तक किसकी पहुच थी व सबूत कैसे एकत्र किये गये थे, सबूत एकत्र करने के पश्चात सबूतों को किसके अधिपत्य में रखा गया था और उसमें किसकी पहुच थी। कुल मिलाकर हिरासत की श्रृखला (Chain of Custody)का दस्तावेज यह दिखाता है कि डिजिटल साक्ष्य वाले उपकरण को कहॉ रखा गया, किसने हैण्डल किया और उसमें किसकी पहुच थी। *डिजिटल साक्ष्य की न्यायालय में स्वीकार्यता* अनुश्रुत साक्ष्य जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा दिया जाता है, जिसने उस घटना को स्वयं नहीं देखा है अपितु किसी अन्य व्यक्ति से सुना है। महान कानूनविद ‘‘टेलर‘‘ ने अनुश्रुत साक्ष्य को एक ऐसा साक्ष्य बताया है जिसकी साख साक्षी को दिया जाता है, यद्यपि वह उसका मूल्यांकन स्वयं नहीं करता है, अपितु किसी अन्य व्यक्ति की योग्यता और मूल्य पर आधारित होता है। डिजिटल साक्ष्य अनुश्रुत साक्ष्य की श्रेणी में आता है। इलेक्ट्रानिक उपकरणों से प्राप्त डिजिटल साक्ष्यों की न्यायालय में स्वीकार्यता निम्न बातों पर निर्भर करती है (1) वैधानिक प्राधिकार – इलेक्ट्रानिक उपकरणों से डिजिटल साक्ष्य डाटा प्राप्त करने के पूर्व कानूनी पहलुओं पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। (2) डिजिटल साक्ष्य की प्रासंगिकता- डिजिटल साक्ष्य की स्वीकार्यता के लिए जिस घटना का अनुसंधान किया जा रहा है, साक्ष्य उससे सुसंगत होना चाहिए। (3) डिजिटल साक्ष्य की प्रामाणिकता- डिजिटल साक्ष्य को न्यायालय में प्रमाणित करने के लिए आवश्यक है कि यह साक्ष्य जिस इलेक्ट्रानिक उपकरण से या जिस स्त्रोत से प्राप्त की गई है, वह न्यायालय में संदेह से परे सबूत किया जाना आवश्यक है। (4) डिजिटल साक्ष्य की अखण्डता- डिजिटल साक्ष्यों को न्यायालय में तभी स्वीकार्य योग्य होगा, जब यह अपरिवर्तित एवं पूर्ण हो, प्रत्येक डिजिटल साक्ष्य के हिरासत की श्रृखला (Chain of Custody) दस्तावेज ऐसा होना चाहिए कि जो अपने संपूर्ण जीवन चक्र के दौरान अखण्डता की गारण्टी दे। (5) डिजिटल साक्ष्य की विश्वसनीयता – डिजिटल साक्ष्यों के न्यायालय में स्वीकार्यता के लिए यह भी आवश्यक है कि ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए, जो इस बात के बारे में संदेह करता है कि सबूत कैसे एकत्र किये गये थे और उसे कैसे सुरक्षित रखा गया। प्रभावी डिजिटल साक्ष्य प्रसंस्करण के लिए कानून प्रवर्तन अभिकरण के अनुसंधानकर्ताओं को प्रशिक्षण अत्यंत आवश्यक है। पुलिस अकादमी को इसके लिए डिजिटल साक्ष्य पाठ्यक्रम का विस्तार करना होगा। डिजिटल साक्ष्य के संबंध में कानून प्रवर्तन अधिकारियों की भूमिका मात्र उसके आधार पर अभियुक्त को गिरफ्तार कर न्यायालय में अभियोग पत्र प्रस्तुत करने मात्र से पूरी नहीं हो जाती। क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में कानून प्रवर्तन अधिकारी एवं न्यायालय के लोक अभियोजक शासन के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं, न्यायालय में विचारण के पूर्व एवं दौरान लोक अभियोजक तथा अनुसंधानकर्ता अधिकारी के मध्य बेहतर समन्वय की आवश्यकता है साथ ही लोक अभियोजक को डिजिटल साक्ष्यों के संबंध में कानूनी जानकारियों से अद्यतन होना अनिवार्य है। डिजिटल सबूत मामलों में और बचाव के रूप में एक बड़ी भूमिका निभाता है, डिजिटल साक्ष्य के मामले में सबसे बड़ी निराशा एवं परेशानियों का सामना उस समय करना पड़ता है जब सर्वर अन्य देशों में स्थित होता है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक देशों मे डिजिटल सबूत प्राप्त करने के प्रोटोकॉल अलग-अलग होने के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यदि संबंधित देशों के मध्य MLAT (Mutual Legal Assistance Treaty) नहीं हो तो सबूत हासिल करना लगभग असंभव है। *डिजिटल क्षेत्र में नवाचार* डिजिटल साक्ष्य का क्षेत्र नया और तेजी से विस्तार कर रहा है, संभावित रूप से डिजिटल साक्ष्य जानकारी का एक महत्वपूर्ण नया स्त्रोत प्रदान करता है, जो न्यायालय में अभियोजकों को अधिक दोषसिद्धि दिलाने में मदद करेगी। जीपीएस का उपयोग करना संदिग्ध को किसी अपराध के दृष्य पर या उसके आसपास, टेक्स्ट मैसेज का विश्लेषण ई-मेल से किसी अभियोग को संपोषित करना, सोशल मिडिया साइट्स से तस्वीर कैप्चर करना और जानकरी जुटाना अपराधियो के सहयोगियों के संबंध में उसके सेलफोन से डेटा संग्रहित करना यह डिजिटल सबूतों एवं जॉच कर एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है, जो अपराधों के अनुसंधान और अभियोजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई अभियोजकों को अभी तक डिजिटल सबूतों के उपयोग और सीमाओं की अच्छी समझ नहीं है, न्यायधीशों को भी डिजिटल सबूतों के संबंध में अद्यतन होने की अत्यंत ही आवश्यकता है। घटना स्थल पर पहले पहुॅचने वाले कानून प्रवर्तन अधिकारियो, पुलिस अधिकारियों को डिजिटल साक्ष्य हो सकने वाले उपकरणों को बेहतर हैण्डलिंग एवं सुरिक्षत रखने का पर्याप्त ज्ञान की अभी भी कमी है, जिसके लिए उन्हे बेहतर तरीके से तैयार करने की आवश्यकता है। अक्सर उन्हे डिजिटल सबूतों को सुरिक्षत एवं उपयोग करने के संबंध में बेहतर ज्ञान का अभाव है। अदालत में जब डिजिटल साक्ष्य प्रस्तुत किये जाते हैं तो डिजिटल साक्ष्यों की हिरासत की श्रृखला को न्यायालय में चुनौती दी जाती है और अंततः न्यायालय में स्वीकार्य योग्य साक्ष्य की श्रेणी में नही आ पाता। कानून प्रवर्तन अधिकारियों, अनुसंधानकर्ताओं को प्रशिक्षण अकादमी स्तर पर डिजिटल साक्ष्यों के हैण्डलिंग एवं संरक्षण के संबंध में प्रशिक्षण दिये जाने पर वे बेहतर साक्ष्य संरक्षण एवं जॉच के लिए प्रसंगिक उपकरणों को जप्त करने की दिशा में बेहतर अनुसंधान करेंगे। कानून प्रवर्तन अभिकरणों के पास डिजिटल साक्ष्यों के प्रसंस्करण का पर्याप्त ज्ञान एवं संसाधनों का अभाव डिजिटल साक्ष्य प्रसंस्करण के लिए एक बड़ी चुनौती है। डिजिटल उपकरण और निष्कर्षण उपकरण तेजी से बदल रहे हैं, अतः ऐसी स्थिति में कानून प्रवर्तन अभिकरणों को लगातार नई तकनीकों के साथ अद्यतन रहना होगा, ताकि अपराधिक न्याय व्यवस्था में कानून प्रवर्तन और अदालतों में डिजिटल सबूतों को उपरोक्त नवाचार के माध्यम से अपनी पूरी क्षमता से प्रस्तुत किया जा सके।
*डिजिटल फोरेंसिक क्या है ?* डिजिटल फोरेंसिक को औपचारिक रूप से स्वीकृत के बजाय, शब्दों के सामान्य अर्थ के द्वारा समझा जा सकता है। ब्रिटिश संसद के लिए तैयार डिजिटल फोरेंसिक नोट के अनुसार इसकी कोई मानक परिभाषा नहीं है, किन्तु U.K. Forensic Science Regulator के अनुसार डिजिटल फोरेंसिक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा डेटा स्टोरेज (जैसे डिवाइसेस, कम्प्यूटिंग से जुड़े सिस्टम) से जानकारी निकाली जाती है, जो आपराधिक कार्यवाहियों में अनुसंधान या साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत की जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका डिफेन्स कम्प्यूटर फोरेंसिक लेबोटरी के सुझाव के अनुसार डिजिटल फोरेंसिक कुछ इस तरह परिभाषित किया जा सकता है कम्प्यूटर विज्ञान और अनुसंधानत्मक प्रक्रियाओं का उपयोग कानूनी उद्देश्य को शामिल करते हुए डिजिटल साक्ष्यों को विश्लेषण उचित प्राधिकार खोज, हिरासत की श्रृंखला तथा गणितीय माध्यम से सत्यापन मान्य उपकरणों का उपयोग, पुनरावृत्ति, रिपोर्टिंग और संभावित विशेषज्ञ की प्रस्तुति को शामिल करता है। यद्यपि यह आमतौर पर अपराधिक अनुसंधानों के अतंर्गत आने वाले सबूत होते हैं, जो क्रिमीनल जस्टिस सिस्टम में न्यायालय में साक्ष्य के बतौर प्रस्तुत किये जाते हैं। डिजिटल फोरेसिंक का उपयोग सिविल मामलों, आंतरिक जॉच और अन्य जॉच तथा फोरमों में जहॉ डाटा की आवश्यकता होती है, वहॉ भी डिजिटल फोरेंसिक प्रयोग में लाया जाता है। डिजिटल फोरेसिंक अनुसंधान को 04 चरणों में विभाजित किया गया है *(1) अधिग्रहण (जप्ती)* जब कोई कम्प्यूटर या अन्य उपकरण जप्त किया जाता है तो डिजिटल फोरेंसिक अनुसंधान के प्रत्येक चरण में प्रक्रिया के अनुसार सभी चीज को दस्तावेज में लाया जाना चाहिए, यह महत्वपूर्ण है कि इस चरण में हिरासत की श्रृंखला के संबंध में दस्तावेज भी तैयार किया जाना चाहिए कि कौन और कैसे डिजिटल साक्ष्य को हैण्डल किया। जप्त किये जाने वाले इलेक्ट्रानिक उपकरण एवं जप्ती की कार्यवाही की फोटोग्राफी की जानी चाहिए, कम्प्यूटर, लैपटाप एवं अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरण के स्क्रीन में जप्ती के समय चालू प्रोग्राम जिसमें दर्शित हो, जब कभी कोई कम्प्यूटर या इलेक्ट्रानिक डिवाइस जप्त किया जाए तो जप्ती पत्र में मॉडल नंबर, सिरियल नंबर, मोबाइल जप्त होने की दशा उसका आईएमईआई नंबर, मोबाइल नंबर, सिम का नंबर का जरूर उल्लेख किया जाए। जब कभी भी अन्य भंडारण मिडिया यह भारी हार्डडिस्क यूएसबी स्टिक साथ ही सीडी और डिवीडी के रूप में हो सकते हैं को जप्त करने के पश्चात इसे सुरक्षित रखना चाहिए, इसे मैग्नेट या रेडियों ट्रॉसमीटर के पास नहीं रखना चाहिए, इससे डेटा को नुकसान पहुच सकता है। जब कभी मोबाइल फोन या जीपीएस डिवाइस जो चालू हालत मे है, जिसे जप्तकर परिवहन किया जाता है तो मोबाइल डिवाइस सेल्युलर नेटवर्क से जुड़कर नये डाटा एक्सेस करता है और पुराने सबूतों को ओवरराइट कर सकता है, इसी तरह मोबाइल जीपीएस यूनिट चालू होने पर रिकार्ड करना जारी रखता है, ऐसी स्थिति में डिजिटल साक्ष्य प्रभावित होता है। विदेशों में जब भी ऐसे उपकरण जप्त किये जाते हैं, उसे एक विशेष तरह का बैग जिसे ‘‘फैराडे बैग‘‘ या पिंजरा कहा जाता है, मोबाइल एवं जीपीएस डिवाइस को उसमें रखकर सुरक्षित किया जाता है, फैराडे बैग के अंदर रखने पर एक मृत क्षेत्र का निर्माण होता है, जहॉ सेलफोन और जीपीएस को सिग्नल नहीं मिल पाते। फैराडे बैग मोबाइल डिवाइस के डिजिटल साक्ष्य को सुरक्षित रखने के लिए उपयोग में लाया जाता है। *(2) अर्जन* डिजिटल डिवाइस से डेटा को पुनर्प्राप्त करने की प्रक्रिया को अर्जन कहते हैं, आमतौर पर सबूत एकत्र करने और सुरक्षित परिवहन के बाद यह प्रक्रिया प्रयोग में लाई जाती है। किसी इलेक्ट्रानिक डिवाईस से साक्ष्य प्राप्त करने के लिए यह निर्णय लिया जाता है कि जीवित या मृत विश्लेषण करना है। कम्प्यूटर या कोई इलेक्ट्रानिक डिवाइस जब तक चालू है तो उससे जीवित विश्लेषण किया जा सकता है, बंद होने की स्थिति में प्रयोगशाला ले जाकर डेटा को नियंत्रित वातावरण में पुनर्प्राप्त किया जा सकता है *। (3) विश्लेषण* विश्लेषण का चरण आमतौर पर सबूत एकत्र किये जाने के बाद आता है। यदि डाटा का लाइव विश्लेषण नहीं किया जा सकता फिर स्थैतिक डेटा का अनुसंधान किया जाता है, जो सिस्टम से कापी करके प्राप्त की जाती है। कम्प्यूटर से डाटा की ईमेज प्राप्त करने के पश्चात अपराध से संबंधित साक्ष्य तथा भौतिक तरीके से प्राप्त सूचनाओं का समिश्रण कर और कई अन्य तकनीकियों को इस्तेमाल कर संदिग्ध व्यक्ति के विरूद्ध डिजिटल साक्ष्य प्राप्त किया जाता है। इस तरह से अनुसंधानकर्ता प्रकरण से संबंधित घटनाओं को पुर्नस्थापित कर सकता है *। (4) दस्तावेजीकरण (रिपोर्टिंग)* दस्तावेजीकरण किसी भी डिजिटल फोरेंसिक मामले में महत्वपूर्ण चरण है। किसी कार्यवाही में उपकरणों या मीडिया की जॉच में अपनाई गई प्रक्रियाओं के संबंध में और अन्य कार्यवाही जो साक्ष्य से संबंधित हो, हेतु एक दस्तावेज बनाना जरूरी होता है, याद रखना चाहिए कि अपराधिक प्रकरणों का निराकरण अंततः न्यायालय से ही होता है, न्यायालय में किसी भी साक्ष्य को लेकर प्रश्न किया जा सकता है और दस्तावेज ऐसे होना चाहिए कि उनसे उन प्रश्नों का उत्तर मिल सके। अनुसंधान के दौरान यह महत्वपूर्ण होता है कि उपकरण जिसमें डेटा स्टोर रहता है उसकी अखण्डता कायम रहे और इस कार्यवाही में डिजिटल साक्ष्य जो प्राप्त किये जाते है, उसके हिरासत की श्रृखला (Chain of Custody)के संबंध में दस्तावेज भी उस कार्यवाही में शामिल होता है। यह भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि मूल उपकरण भंडारण मिडिया या अन्य आईटम जिससे डिजिटल साक्ष्य एकत्र किये गये थे, उन उपकरणों को भी लेकर प्रतिवादी के अधिवक्ता द्वारा प्रश्न किये जा सकते हैं एवं उन उपकरणों को न्यायालय में प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जा सकती है तथा साक्ष्य के रूप में किसी सिस्टम से ली गई फोटोग्राफ्स को भी न्यायालय में प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जा सकती है तथा यह भी सुनिश्चित करते हुए रिकार्ड रखना होगा कि साक्ष्य को इन साक्ष्यों में किसकी पहुच थी, इसे दूषित या छेड़छाड़ तो नहीं किया गया है। अनुसंधान के दौरान डिजिटल साक्ष्यों को प्राप्त करने के संबंध में एक रिपोर्ट तैयार करनी होगी, कि इन उपकरणों से क्या डिजिटल साक्ष्य प्राप्त किया गया और यह प्रकरण में कैसे लागू होता है। *डिजिटल फोरेंसिक और पारंपरिक फोरेंसिक* कानूनी प्रणाली पूरी तरह से प्रक्रियाओं का एक समूह हैंजो पूरी तरह से सभी पक्षों द्वारा समझा और देखा जाता है, हालाकि जब हम इन प्रक्रियाओं को डिजिटल साक्ष्य पर लागू करते हैं तो हमे कानूनी मुद्दो से जूझना पड़ता है, डिजिटल फोरेंसिक सेवाओं के सबसे बड़े उपयोगकर्ता अभियोजन और न्यायपालिका हैं। डिजिटल फोरेंसिक का महत्व सायबर क्राईम के बढ़ने के साथ और बढ़ गया है तथा समय-समय पर यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि डिजिटल वातावरण में सबूत कैसे होंगे। अपराध प्रबंधन और न्याय शास्त्र जो अपराध मूल्य के प्रमाण पर निर्भर करते हैं तथा यह निर्धारित करने के लिए की क्या वास्तव में कोई अपराध किया गया था और यदि ऐसा है तो संदेह से परे क्या ऐसे अपराधियों की पहचान बिल्कुल संभव है। सर विलियम ब्लैक स्टोन द्वारा प्रस्तावित न्यायशास्त्र के सिद्धांत जो 1765 में प्रतिपादित किये गये थे ‘‘बेहतर यह होगा कि दस दोषी व्यक्ति एक निर्दोष की तुलना में बच जाते हैं‘‘। अपराधिक न्याय व्यवस्था में साक्ष्य के महत्व को देखते हुए उन तरीकों को समझना महत्वपूर्ण है, जिनमें साक्ष्य की पहचान, एकत्र, विश्लेषण और व्याख्या कर अंत में स्थानीय प्रक्रियाओं के अनुरूप न्यायालय में प्रस्तुत की जाती है। अपराध के परंपरिक रूपों से संबंधित साक्ष्य (जैसे हत्या, सशस्त्र डकैती) के मामले में अच्छी तरह से स्थापित है कि कानून प्रवर्तन अधिकारी, अभियोजन और बचाव पक्ष के वकील व न्यायाधीश स्पष्ट रूप से उन तरीको को जानते हैं, जिनसे सबूतों की व्याख्या, विश्लेषण एवं न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है। शव परीक्षा की कानूनी व्याख्या चीन में तेरहवी शताब्दी से जारी है, वहीं पर फ्रॉस, इटली और जर्मनी में सोलहवी शताब्दी से प्रारंभ की गई है। निष्कर्ष के रूप में यह कह सकते हैं कि हमारे पास बाद में बैलिस्टिक, टॉक्सिकोलॉजी, एंथ्रोपोमेट्री और अंत में एक प्रसिद्ध फिंगर प्रिंट पद्धति विद्यमान है। डिजिटल फोरेंसिक विगत 40 वर्षों के कम समय से सबूत एवं वैज्ञानिक परिपक्वता के स्तर पर पहुचने के लिए संघर्ष कर रहा है। वहीं पर पारंपरिक फोरेंसिक पिछले 400 वर्षो से विद्यमान है। *डिजिटल फोरेंसिक प्रक्रिया -क्या यह एक वैज्ञानिक विधि है ?* डिजिटल फोरेंसिक लगभग हर अपराध में मौजूद होना चाहिए, इसकी विशिष्टता को पिछले कुछ दशकों में देखा जाए तो ज्यादातर डिजिटल फोरेंसिक पीसी और लैपटाप में देखते थे, वर्तमान में स्मार्टफोन, जीपीएस डिवाइस, सीसीटीवी सहित विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रानिक उपकरणों जो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों द्वारा संचालित और नियंत्रित उपकरणों में भी व्यापक रूप से विद्यमान है। स्मार्टफोन अभी तक के साईबर क्राईम अनुसंधान में लगातार सर्वाधिक डिजिटल साक्ष्य विश्लेषण और संग्रहण का माध्यम बना है। डिजिटल फोरेंसिक के बारे में प्रश्न समय-समय पर उठते रहे हैं कि क्या यह एक वैज्ञानिक विधि है। अमेरिकन फोरेंसिक साईंस रेग्युलेटर ‘‘साइमन ए कोल‘‘ इसे एक वैज्ञानिक तरीका बताया है, वहीं पर अमेरिकन विचारों के हिसाब से डिजिटल फोरेंसिक सामान्य फोरेंसिक विज्ञान से अधिक वैज्ञानिक नहीं हो सकता है। ब्रिटेन में फोरेंसिक साईंस रेग्युलेटरों का मानना है कि डिजिटल फोरेंसिक में होने वाली त्रुटियों का जोखिम है तथा उनके द्वारा दृढ़तापूर्वक यह अनुशंसा की गई है कि डिजिटल फोरेंसिक प्रक्रिया जिसमें डिजिटल साक्ष्यों का निष्कर्षण किया जाता है, वह मान्यता प्राप्त संस्थाओं के द्वारा किया जाना चाहिए। डिजिटल साक्ष्यों का संग्रह, विश्लेषण और व्याख्या के वर्तमान दौर में कानूनी बाध्यताओं को पार करने के पश्चात ही निर्णायक एवं संदेह से परे परिणाम प्राप्त किये जाते हैं। जीपीएस फोरेंसिक जब कोई व्यक्ति जीपीएस डिवाइस का उपयोग करता है, तो वह जीपीएस में स्टोर किए जाने वाले लोकेशन जिसे वेपाइंट्स कहते है मे प्रवेश करता है। वेपाइंट किसी व्यक्ति का वर्तमान लोकेशन हो सकता है या वह स्थान जहॉ वह नेविगेट करता है। जीपीएस डिवाइस वेपाइंट की शृंखला का उपयोग करके एक मार्ग तैयार करता है, जो यह दर्शाता है कि व्यक्ति एक विशिष्ट क्रम में एक स्थान से दूसरे स्थान कैसे नेविगेट किया है, क्योंकि यह सूचना डिवाइस में स्टोर हो जाती है और यह सूचना अनुसंधान के दौरान परीक्षण के उद्देश्य से जीपीएस डिवाइस से आसानी से प्राप्त की जा सकती है। जीपीएस डिवाइस नेविगेट किये हुए ट्रेक को स्टोर करते हैं, जो जियोग्राफिक पाइंट होते हैं, जैसे ही जीपीएस यूनिट चालू होता है यह सैटेलाइट से जुड़ जाता है और डिवाइस की वर्तमान स्थिति निर्धारित कर देता है। जैसे-जैसे आप यात्रा करते जाएगे अतिरिक्त ट्रेक पाइंट जीपीएस यूनिट में रिकार्ड होते जाता है और ट्रेक लॉग में संग्रहित हो जाता है, ट्रेक लॉग को देखने से आप जीपीएस डिवाइस या जीपीएस इनेबल्ड व्हीकल में सवार व्यक्ति के कोआर्डिनेटस (अक्षांश-देशांश) जान सकते हैं। जीपीएस एक वैश्विक नौवहन उपग्रह प्रणाली है जिसका विकास संयुक्त राज्य अमेरिका के रक्षा विभाग ने किया है। 27 अप्रैल, 1995 से इस प्रणाली ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया था। वर्तमान समय में जी.पी.एस का प्रयोग बड़े पैमाने पर होने लगा है। *थाना बेमेतरा (जिला बेमेतरा छत्तीसगढ़ राज्य) का प्रकरण* डिजिटल साक्ष्यों के संग्रहण एवं न्यायालय में प्रस्तुतीकरण का उत्कृष्ट उदाहरण जिला बेमेतरा, थाना बेमेतरा अंतर्गत दिनांक 02.06.2020 एवं 03.06.2020 के दरम्यानी रात्रि 12.00 से 2.00 बजे के मध्य राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 बेमेतरा से 11 किलोमीटर पूर्व स्थित ग्राम में रोड़ किनारे निवासरत 07 वर्षीय नाबालिग मासूम बालिका के साथ अपहरण एवं दुष्कर्म की घटित घटना पर से थाना बेमेतरा में दिनांक 03.06.2020 को अपराध क्रमांक 287/2020 धारा 363, 376, 376 ए,बी भादवि 6, 12 पोक्सो एक्ट तथा 3(2)(अ) अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत अज्ञात ट्रक चालक के विरूद्ध अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया था, जिसमें यह स्थापित तथ्य था कि घटना निश्चित ही अज्ञात ट्रक चालक के द्वारा घटित की गई थी। उक्त ट्रक चालक ऊर्जा लाजिस्टिक एज काम्प्लेक्स मोवा, रायपुर के ट्रक क्रमांक सीजी 04 एमएल 8356 का चालक सूरज प्रजापति जिसे दिनांक 20.06.2020 को प्रकरण में गिरफ्तार किया गया था तथा उसे माननीय विशेष न्यायालय बेमेतरा द्वारा उपरोक्त प्रकरण में आजीवन कारावास(मृत्युपर्यन्त) के दण्ड से दिनांक 26.02.2021 को दण्डित किया गया है। माननीय न्यायालय के द्वारा अपने निर्णय में पुलिस के द्वारा डिजिटल साक्ष्यों के संकलन एवं प्रस्तुतीकरण की प्रशंसा भी गई है। उपरोक्त प्रकरण की विवेचना वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन में अनुविभागीय अधिकारी पुलिस बेमेतरा श्री राजीव शर्मा द्वारा की गई थी।
*( राजीव शर्मा उप पुलिस अधीक्षक, अनुविभागीय अधिकारी पुलिस बेमेतरा, जिला बेमेतरा को हाल ही मे उक्त प्रकरण के उत्कृष्ट अनुसंधान हेतु केन्द्रीय गृह मंत्रालय भारत सरकार द्वारा ‘‘यूनियन होम मिनिस्टर्स मेडल फार एक्सीलेंस इन इनवेस्टिगेशन वर्ष 2021‘‘ मेडल देने की घोषणा की गई है)*

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