अनसुलझी पहेली बनी कोवैक्सीन को WHO की मंजूरी, जानें आखिर क्यों हो रही है देरी

नई दिल्ली. भारत (India) में तैयार हुई एंटी-कोविड-19 वैक्सीन कोवैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की तरफ से इमरजेंसी यूज ऑथोराइजेशन (EUA) मिलना बाकी है. यह प्रक्रिया 5 अक्टूबर तक और टल गई है. ऐसे में भारत से विदेश यात्रा की तैयारी कर रहे लोगों को अभी और लंबा इंतजार करना पड़ सकता है. दरअसल, कई देशों में अप्रूवल को लेकर हालात अलग-अलग हैं. कोविड-19 के खिलाफ कुछ वैक्सीन हैं, जिन्हें प्राप्त करने वालों को ‘पूर्ण टीकाकरण का दर्जा’ हासिल करने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इन टीकों में भारत बायोटेक (Bharat Biotech) की कोवैक्सीन का नाम भी शामिल है.
स्ट्रैटेजिक एडवाइजरी ग्रुप ऑफ एक्सपर्ट्स ऑन इम्युनाइजेशन (SAGE) की 5 अक्टूबर को बैठक होने वाली है. यह मीटिंग कोवैक्सीन को EUA देने के फैसले को लेकर ही बुलाई गई है. रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी का SAGE सेशन कोवैक्सीन के 1, 2 और 3 चरण के क्लीनिकल ट्रायल के आधार पर EUA की सिफारिश करेगा.
कोवैक्सीन को डब्ल्युएचओ की तरफ से इमरजेंसी यूज लिस्टिंग में शामिल नहीं किया गया है. 10 जून को अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने भी कोवैक्सीन के EUA के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. इस फैसले में FDA ने पर्याप्त जानकारी नहीं होने का हवाला दिया था. अब तक केवल ब्राजील, ईरान, फिलीपीन्स, मॉरिशिस, मैक्सिको, नेपाल, गुआना, पैराग्वे और जिम्बाब्वे ने ही कोवैक्सीन को मंजूरी दी है
ये है WHO से मंजूरी पाने की प्रक्रिया
WHO की इस प्रक्रिया में चार चरण होते हैं. पहला, वैक्सीन निर्माता के एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट (EOI) को स्वीकार करना. दूसरा, डब्ल्युएचओ और निर्माता के बीच एक प्री-सब्मिशन बैठक. तीसरा, डब्ल्युएचओ की तरफ से डोजियर की समीक्षा की मंजूरी मिलना. चौथा, मूल्यांकन के स्थिति पर फैसला. इसके बाद अंत में मंजूरी पर अंतिम निर्णय लिया जाता है.कोवैक्सीन के मामले में अभी तक EOI को ही स्वीकार नहीं किया गया है. इसके संबंध में डब्ल्युएचओ ने ‘अधिक जानकारी’ की जरूरत बताई है. भारत बायोटेक ने 19 अप्रैल को EOI दाखिल कर दिया था. संगठन की तरफ से मंजूरी नहीं मिलने के कारण यूरोपियन संघ और अमेरिका कोवैक्सीन प्राप्त कर चुके भारतीयों को देश में आने की अनुमति नहीं देना चाहते. भारत में 16 जनवरी को हुई टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से ही सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में तैयार हुई कोविशील्ड और हैदराबाद स्थित कंपनी की कोवैक्सीन का इस्तेमाल मुख्य तौर पर किया जा रहा था.