हक्कानी गुट से हुई गोलीबारी के बाद ‘साइडलाइन’ हुआ बरादर, तालिबान के भीतर गंभीर मतभेद After the firing from Haqqani faction, the ‘sideline’ dissipated, serious differences within the Taliban

नई दिल्ली. अफगानिस्तान में तालिबान की नई सरकार में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर (Abdul Ghani Baradar) का कद छोटा कर दिया गया है. कुछ दिनों पहले जब सरकार की घोषणा की गई तब बरादर को उप प्रधानमंत्री बनाए जाने के बाद अटकलें तेज हो गई थीं. अब ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बरादर को पाकिस्तान पोषित आतंकी समूह हक्कानी गुट से मतभेद की कीमत चुकानी पड़ी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बरादर को तालिबान में ‘सॉफ्ट स्टैंड’ वाला नेता माना जाता है और उम्मीद की जा रही थी कि उसे सरकार में सबसे ऊपर रखा जाएगा. लेकिन अब स्थितियां बदल चुकी हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक पहचान न उजागर करने की शर्त पर घटनाक्रम के जानकार लोगों ने बताया है कि इस महीने की शुरुआत में सरकार बनाने को लेकर एक बैठक हुई थी. इस बैठक में बरादर गुट और हक्कानी गुट शामिल थे. इसी बैठक में बरादर पर हमला हुआ.
बरादर ने समावेशी सरकार के लिए दबाव बनाया था
दरअसल बरादर ने एक समावेशी सरकार ने लिए दबाव बनाया था जिसमें गैर-तालिबानी नेता और देश के अल्पसंख्यक समुदाय को भी सरकार में शामिल किए जाने की बात कही गई थी. बरादर गुट का तर्क था कि इससे तालिबान सरकार को दुनिया में ज्यादा मान्यता मिलेगी. बैठक के दौरान खलील उल रहमान हक्कानी उठा और उसने बरादर को मुक्के मारना शुरू कर दिया. लोगों का कहना है कि इसके बाद दोनों पक्षों की तरफ से गोलियां चलने लगीं जिसकी वजह से कई घायल हुए और कई मौतें हुईं.
हैबतुल्ला अखुंदजादा से बरादर ने की थी मुलाकात
जानकारी के मुताबिक बरादर गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ था और इस गोलीबारी के बाद वो काबुल से सीधा कंधार निकल गया. कंधार में ही तालिबान का मुख्य बेस है और बरादर को हैबतुल्ला अखुंदजादा से बातचीत कर पूरे घटनाक्रम के बारे में बताना था.
अंतरिम सरकार में बरादर का ही डिमोशन हो गया
लेकिन जब अंतरिम सरकार की लिस्ट आई तो खुद बरादर को डिप्टी पीएम का पद मिला. जबकि इसके पहले बरादर को सरकार की मुख्य जिम्मेदारी सौंपे जाने की खबरें थीं. कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने इस पूरे घटनाक्रम में बड़ी भूमिका निभाई. सरकार में हक्कानी गुट को गृह मंत्रालय समेत चार पद मिले. मुल्ला अखुंद जैसे नेता को सरकार का मुखिया बनाया गया जिसके बारे में लोग पहले बिल्कुल न के बराबर जानते थे. वहीं सबसे ज्यादा हिस्सेदारी पश्तून समुदाय को मिली. समावेशी सरकार की बात बिल्कुल पीछे रह गई.
लंबा खिंच सकता है विवाद
हालांकि कहा जा रहा है कि भले ही अभी तालिबान और हक्कानी गुट की तरफ से मतभेद को नकारा जा रहा है कि लेकिन ये अभी विवाद लंबा खिंचेगा. बरादर के डिमोशन से पश्चिमी देशों को भी दिक्कत है क्योंकि शांति वार्ता का मुख्य चेहरा बरादर ही था. आतंकी हक्कानी गुट की मजबूत होती मौजूदगी तालिबान के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है.