छत्तीसगढ़

वनभूमि अधिकार पट्टा कही न बन जाये समाज के लिए अभिशाप – अरुण पाण्डेय

बस्तर। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आदिवासियों को वनभूमि पर अधिकार का क़ानूनी पट्टा दिए जाने के घोषणा के बाद बस्तर के दूरस्थ अंचलों में वर्षों से खड़े हरे भरे वृक्षों की बली देने की प्रथा का आरंभ हो गया है।

इसके लिए स्थानीय आदिवासियों समेत डिगर लोगों में भी वनभूमि के नाम पर पट्टा पाने का भूत सवार हो गया है ।हालात यह हैकि बस्तर जे दूरस्थ अंचलों में वर्षों से खड़े साल – सागौन के घने जंगलों के वृक्षों को सुखाकर, जलाकर व इन्हें काटकर वनभूमि पर कब्ज़ा करने का दौर भी तेज़ हो गया है।बस्तर के दूरस्थ अंचलों में जंगल को काटकर वनभूमि पर कब्ज़ा करने का कार्य बेधड़क जारी है। इस काम में ग्रामीणों की निर्भयता का एक कारण यह भी है कि अंचल के घने जंगलों में नक्सलियों का दबदबा है, जिस नक्सली भय के कारण वन अमले का आजतक इन घने जंगलों में आमद तक नही हुआ है।

कुछ ख़ास लोग जो राजनैतिक धाक रखते हैं व जिन्हें शब्द “आदीवासी” का बेहतर राजनैतिक इस्तेमाल आता है, जिसके कारण आजतक वास्तविक आदिवासी समाज का उत्थान सपना मात्र रह गया है। इन के संरक्षण में वनों की अवैध कटाई निरंतर जारी है।

राष्ट्रीय हरित नियामक आयोग व पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति बिना ही वनभूमि पट्टा बांटने का छत्तीसगढ़ सरकार की घोषणा भविष्य के लिए कही अभिशाप के रूप में सामने न आये यह भय प्रत्येक जागरूक मतदाताओं के मन को सता रही है।

मुझे लगता हैकि इस मामले में बिना समय गवाएं देश के सर्वोच्च संस्थान “माननीय सर्वोच्च न्यायालय” को स्वतः संज्ञान लेने की आवश्यकता है।

राजीव गुप्ता

Rajeev kumar Gupta District beuro had Dist- Kondagaon Mobile.. 9425598008

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