मधुमेह का आयुर्वेदिक इलाज मधुमेह के प्रमुख लक्षण
मधुमेह का आयुर्वेदिक इलाज
आयुर्वेद में डायबिटीज को मधुमेह के नाम से जाना जाता है। यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाले रोगों में से एक है। खून में ग्लूकोज की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ने पर डायबिटीज की बीमारी उपन्न होती है। सबसे पहले डायबिटीज का मामला तकरीबन 1000 ईसा पूर्व सामने आया था। तब चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में मधुमेह को ऐसी बीमारी के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें मरीज को बार-बार पेशाब आता है। इसमें प्रभावित व्यक्ति का पेशाब कसैला और मीठा पाया गया।
यह दो प्रकार का होता है -शुगर के उच्च स्तर से और कमी से। आजकल शुगर का बढ़ जाना एक आम बात हो गया है और यह कई दिल की समस्याओं का प्रमुख कारण है। कुछ जड़ी-बूटियाँ मधुमेह के नियंत्रण में आपकी मदद कर सकती हैं। हम आपको जीवा के आयुर्वेदिक चिकित्सकों से परामर्श लेकर ऐसी ही कुछ जड़ी-बूटियों के बारे में यहाँ बता रहे हैं। इनके इस्तेमाल से आप अपने रोग को बढ़ने से रोक सकते हैं या खुराक में शामिल करके डाइबिटीज से बचे रह सकते हैं।
मधुमेह के प्रमुख लक्षण
वजन में कमी आना।
अधिक भूख प्यास व मूत्र लगना।
थकान, पिडंलियो में दर्द।
बार-बार संक्रमण होना या देरी से घाव भरना।
हाथ पैरो में झुनझुनाहट, सूनापन या जलन रहना।
नपूंसकता।
कुछ लोगों में मधुमेह अधिक होने की संभावन रहती है, जैसे-मोटे व्यक्ति, परिवार या वंश में मधुमेह होना, उच्च रक्तचाप के रोगी, जो लोग व्यायाम या शारीरिक श्रम कम या नहीं करते हैं शहरी व्यक्तियों को ग्रामीणो की अपेक्षा मधुमेह रोग होने की अधिक संभावना रहती है।
आयुर्वेदिक दवा
सामग्री
100 ग्राम मेथी का दाना।
100 ग्राम तेजपत्ता।
150 ग्राम जामुन की बीज।
250 ग्राम बेल के पत्ते।
बनाने की विधि
इन सबको धुप मे सुखाने के बाद पत्थर में पीसकर या यूं कहें घिसकर पाउडर बना लें साथ ही इन्हें आपस में मिला भी लें, अब इस औषधि को अपने पास किसी साफ डिब्बे में रख लें।
दवा लेने का तरीका
सुबह नाश्ता करने से एक घंटे पहले इस औषधि की एक चम्मच गरम पानी के साथ ले लें, फिर शाम को खाना खाने से एक घंटे पहले ले लें। यानि सुबह शाम एक एक चम्मच पाउडर खाना खाने से पहले गरम पानी के साथ आपको लेना है।
ऐसा माना जाता है कि यदि ऐसे ही आपने डेढ़ से दो माह इस दवा को ले लिया और साथ में प्राणायाम कर लिया तो आपकी डाईबेटिस बिलकुल ठीक हो जाएगी।
क्या खाना चाहिए?
हरी सब्जियॉं, खीरा, ककडी, टमाटर, प्याज, लहसुन, नींबू व सामान्य मिर्च मसालों का उपयोग किया जा सकता है। आलू, चावल व फलों का सेवन किया जा सकता है। ज्वार, चना व गेहूं के आटे की रोटी (मिस्सी रोटी) काफी उपयोगी है सरसों का तेल अन्य तेलों (सोयाबीन, मूंगफली, सूर्यमुखी) के साथ प्रयोग में लेना चाहिए भोजन का समय जहॉं तक संभव हो निश्चित होना चाहिए और लम्बे समय तक भूखा नही रहना चाहिये।
भोजन की मात्रा चिकित्सक द्वारा रोगी के वजन व कद के हिसाब से कैलोरीज की गणना करके निर्धारित की जाती है।
करेला, दाना मेथी आदि के कुछ रोगियों को थोडा फायदा हो सकता है किन्तु केवल इन्ही पर निर्भर रहना दवाओ का उपयोग न करना निरर्थक है।
उपचार का दूसरा पहलू है।
व्यायाम
नित्य लगभग 20-40 मिनट तेज चलना, तैरना साइकिल चलाना आदि पर पहले ये सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आपका शरीर व्यायाम करने योग्य है कि नहीं है। योगाभ्यास भी उपयोगी है। बिल्कुल खाली पेट व्यायाम नहीं करना चाहिए।
भोजन में उपयुक्त परिवर्तन व व्यायाम से जहॉं एक ओर रक्त ग्लूकोस नियंत्रित रहता है वहीं दुसरी ओर शरीर का वजन संतुलित रहता है ओर रक्तचाप नियंत्रण में मदद भी मिलती है।
क्या सावधानियॉं बरतनी चाहिए
नियमित रक्त ग्लूकोस, रक्तवसा व रक्त चाप की जॉंच।
निर्देशानुसार भोजन व व्यायाम से संतुलित वजन रखें।
पैरो का उतना ही ध्यान रखें जितना अपने चेहरे का रखते हैं क्योंकि पैरो पर मामूली से दिखने वाले घाव तेजी से गंभीर रूप ले लेते हैं ओर गैंग्रीन में परिवर्तित हो जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप पैर कटवाना पड सकता है।
हाइपाग्लाइसिमिया से निपटने के लिए अपने पास सदैव कुछ मीठी वस्तु रखें, लम्बे समय तक भूखे न रहें।
धूम्रपान व मदिरापान का त्याग।
अनावश्यक दवाओं का उपयोग न करें।
अचानक दवा कभी बन्द न करें।
सरकार द्वारा एड्स, टी.बी, मलेरिया, कुष्ठ रोग आदि पर करोडो रूपये खर्च किये जाते हैं जिसके अच्छे नतीजें सामने आ रहे है इसी प्रकार आवश्यकता है मधुमेह का भी श्रेणी में लाकर इससे प्रभावी तरीके से निबटा जाये।