लालच बुरी बला

किसी गांव में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह जीविका चलाने के लिए खोती करता था, परंतु इसमें उसे कभी लाभ नहीं होता था। एक दिन दोपहर में धूप से पीड़ित होकर वह अपने खेत के पास स्थित एक वृक्ष की छाया में विश्राम कर रहा था।
हरिदत्त आस्तिक और धर्मात्मा प्रकृति का सज्जन व्यक्ति था। उसे विचार किया कि ये नागदेव अवश्य ही मेरे खेत के देवता हैं, मैंने कभी इनकी पूजा नहीं की, लगता है इसीलिए मुझे खेती से लाभ नहीं मिला। यह सोचकर वह बाॅबी के पास जाकर बोला ‘हे नागदेवता! मुझे अब तक मालूम नहीं था कि आप यहां रहते हैं, इसलिए मैंने कभी आपकी पूजा नहीं की, अब आप मेरी रक्षा करें।’ ऐसा कहकर एक कटोरे में दूध लाकर नाग देवता के लिए रख कर वह घर चला गया।
प्रातःकाल खेत में आने पर उसने देखा कि कटोरे में एक सोने का सिक्का रखा हुआ है। अब हरिदत्त प्रतिदिन नागदेवता को दूध पिलाता और बदले में उसे सोने का सिक्का प्राप्त होता यह क्रम बहुत समय तक चलता रहा। हरिदत्त की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बदल गयी थी। अब वह धनी हो गया था।
एक दिन उसे किसी कार्यवश दूसरे गांव जाना था। अतः उसने दैनिक कार्य अपने पुत्र को सौंप दिया। पुत्र हरिदत्त के विपरीत लालची और क्रूर स्वभाव का था। वह दूध लेकर गया और सर्प की बाॅबी के पास रख कर लौट आया। दूसरे दिन जब कटोरा लेने गया तो उसने देखा कि वहां एक सोने का सिक्का रखा हुआ है। उसे देखकर उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि इस बाॅबी में बहुत सोना होगा और यह सांप उसका रक्षक है। यदि मैं इस सांप का मारकर बाॅबी खोद दूं तो मुझे सारा सोना मिल जाएगा। यह निश्चित कर उसे सांप पर प्रहार किया, परंतु भाग्यवश सांप बच गया एवं क्रोधित हो अपने विषैले दांतों से उसे काट लिया। इस प्रकाार ब्राह्मण पुत्र लोभवश मृत्यु को प्राप्त हुआ।
अतः इसीलिए कहा जाता है कि लालच बुरी बला है|