छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

भगवान जगन्नाथ रथ में सवार भक्तों को स्वर्ण वेश में दे रहे है दर्शन

भिलाई। जगन्नाथ मन्दिरों में भगवान दारू स्वरूप में विधमान है। वास्तव में यह परब्रम्ह का स्वरूप है जो विदारण करे या दान दे, उसको दारू  कहा जाता है ।भगवान सब दुखों का विदारण करते है और आनंद का दान करते है इस लिए उन्हें दारू ब्रम्ह कहा गया है । भगवान जगन्नाथ एक देव के रूप में नही बल्कि एक साधारण प्राणी के रूप में  अपना सब कुछ करते है । उनकी दिनचर्या से साफ पता चलता है है कि वे एक साधारण मानव की तरह सोते है ,जगते ,खाते ,पीते अपना श्रृंगार करते है ,यात्रा करते है और मधुर संगीत सुनकर शयन भी करते है और अपने परिवार के बीच रहते हुए आनंदमय जीवन भी व्यतीत करते है । श्री मंदिर में रत्नसिंहहासन  पर विराजमान महाप्रभु  जगतनाथ जु के बड़े भाई बलराम ,और छोटी बहन सुभद्रा का साथ तो सचमुच भारतीय शाश्वत पारिवारिक जीवन का आदर्श रूप है ।ये कभी एक दूसरे से अलग नही ही सकते है । इनके सयुक्त परिवार में भू देवी,श्रीदेवी और सुदर्शन का स्थान भी  वही है ।

 

उत्कल सांस्कृतिक परिषद श्री श्री जगन्नाथ मंदिर सेक्टर 6 के तत्वाधान में सबके जगत के नाथ महाप्रभु जगन्नाथ जी की रथ यात्रा महोत्सव 2019  के अंतर्गत मौसी घर गुंडिचा मंडप से वापस श्री मंदिर प्रांगण में आने के दूसरे दिन गरुड़ शयन दिवाद्धशी पालन रथ पर किया गया । प्रात: भगवान जगन्नाथ जी को नित्य कर्म सोदशा उपचार पूजन, बाल भोग ,भक्तों को दर्शन ,मध्यायन  भोग के बाद दोपहर के समय रथ का  पट बंद किया गया । संध्या आरती मंदिर के मुख्य पुजारी तुषार कांत महापात्र के द्वारा किया गया । 15 जुलाई को निलाद्री विजय संध्या 5 बजे बड़े धूमधाम से मनाया जायेगा । भगवान जगन्नाथ जी ,बहन सुभ्रदा ,बड़े भाई बलभद्र के साथ सुदर्शन चक्र जी को रथ से उतार कर श्री मंदिर में प्रवेश कराया जायेगा ।

सुना वेश 13 जुलाई  को मनाया गया

इस दिन भगवान के विग्रह का नया श्रृंगार किया जाता है और दिन भर भजन-कीर्तन के साथ पूजा-पाठ होता है। इस पर्व की शुरुआत राजा कपिलेंद्र देब के शासन काल के दौरान 1430 ईस्वी में की गई थी।

महाप्रभु जगन्नाथ जी का सोना वेश का दर्शन भक्तों ने किया। यह खुशी का पर्व होता है, जिसमें जगन्नाथ भगवान सिर से पांव तक सोने के जेवरों से लदे होते हैं। शुक्रवार को बाहुडा़ यात्रा के बाद शनिवार को सोना वेश अतिमहत्वपूर्ण दिन माना जाता है। महाप्रभु के साथ ही देवी सुभद्रा और बलभद्र के भी सोना वेश में दर्शन किए गए। मंगला आरती व मैलमा-तडपा, लागी परंपरा का का पालन किया गया। सोना वेश से पूर्व संध्या आरती की गई।

उत्कल सांस्कृतिक परिषद के महासची गजेंद्र पंडा व  सहसचिव अशोक पंडा ने सभी भक्तों से अपील  की है  कि अधिक से अधिक संख्या में पहुँच कर  भगवान जगन्नाथ का दर्शन कर पूण्य लाभ प्राय करें ।

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