शहर में भी साकार होगी गांव की पौनी पसारी व्यवस्था
निगम और पालिका क्षेत्रों में बनेगा अलग मार्केट
भिलाई । छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में पौनी-पसारी की रची-बसी परंपरा आने वाले दिनों में शहर के अंदर साकार होगी। नगर निगम और नगर पालिका क्षेत्रों में पौनी पसारी मार्केट बनाया जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार ने मंत्री परिषद की बैठक में मंजूरी प्रदान कर दी है। इस मार्केट से परंपरागत व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा।
नरवा, गरुवा, घुरुवा, बारी के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की एक और नई परिकल्पना सामने आई है। श्री बघेल और उनकी सरकार ने अब ग्रामीण क्षेत्र की पौनी-पसारी पद्धति को शहर में साकार करने का जज्बा दिखाया है। शुक्रवार को मंत्री परिषद की बैठक में शहरी इलाकों में पौनी पसारी मार्केट विकसित करने का निर्णय लिया गया है। इस मार्केट में यादव, नाई, धोबी, लोहार, कोष्टा, बंसोड और कुम्हार जाति वर्ग के लोगों को उनके परंपरागत व्यवसाय के लिए अवसर प्रदान किया जाएगा। इसके लिए निगम व पालिका क्षेत्र में स्थल चयन करने के बाद चबूतरे का निर्माण कर मार्केट विकसित किया जाएगा। पौनी पसारी माार्केट के निर्माण में दो करोड़ रुपए की लागत सुनिश्चित रखी गई है। इसके लिए विधायक निधि से 1.50 करोड़ तथा प्रभारी मंत्री की अनुशंसा पर 50 लाख रुपए की व्यवस्था होगी।
पौनी पसारी मार्केट को लेकर खास बात यह है कि इसमें किसी को भी स्थायी रूप से दुकान या चबूतरा का आबंटन नहीं किया जाएगा। परंपरागत व्यवसाय करने वालों को अस्थायी तौर पर मार्केट में रोजी-रोटी कमाने का अवसर प्रदान किया जाएगा। मार्केट में 50 प्रतिशत चबूतरे महिलाओं के लिए आरक्षित रहेगा। महिलाएं दूध बेचने से लेकर मिट्टी के घड़े, दीये, कलश, बांस की टोकनी, पर्रा आदि का परंपरागत व्यवसाय करते हुए आत्मनिर्भर बन सकेगी।
गौरतलब रहे कि छत्तीसगढ़ के गांवों में पौनी पसारी पद्धति की पुरातन परंपरा रही है। राउत, नाई, धोबी, लोहार, मोची, बईगा, कोष्टा, बंसोड और कुम्हार पौनी पसारी में आते हैं। राउत जाति के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य समाज के लोगों के घरों में पानी भरने का काम करते रहे हैं। इसके बदले में उन्हें सालाना धान तथा अन्य फसल पौनी पसारी के रूप में दिये जाने की परंपरा है। इसके साथ ही पहठिया होते हैं जिनका काम किसानों के मवेशियों का चराने का है। यादव समाज में आने वाले राउत और पहठिया घर की महिलाएं घरेलू कामकाज के साथ ही दूध बेचने का भी व्यवसाय करती है।
ग्रामीण क्षेत्र में पहले नाई घर-घर जाकर बाल काटा करते थे। इसके अलावा पूजा अर्चना के लिए फूल, दूबी, हवन की लकड़ी आदि की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी भी नाई की रहती थी। इसी तरह मोची की जिम्मेदारी जूता-चप्पल बनाने से लेकर गांव में मृत होने वाले मवेशियों को ठिकाने लगाने तक की थी। बईगा का काम गांव के देवी-देवता के मंदिरों में सेवा करने का है। लोहार से ग्रामीण जन खेती, किसानी में उपयोग आने वाले नांगर, रापा, कुदाली, गैती, हंसिया, सब्बल आदि बनवाते रहे हैं। जबकि कुम्हार से मिट्टी के घड़े, पूजा पाठ तथा शादी-विवाह में लगने वाले मिट्टी के कलश, दीये व अन्य सामग्री की जरुरतें पूरी होती है। इस तरह के परंपरागत काम काज के बदले में उपयोग करने वाले किसान परिवार सालाना पौनी पसारी प्रदान किया करते थे। अब आधुनिकता के चलते पौनी पसारी की परंपरा दम तोड़ती दिख रही है। शहरी क्षेत्र में पौनी पसारी मार्केट बनने से गांव की इस पुरानी परंपरा को नया जीवन मिलने के साथ ही इस पेशे से जुड़े लोगों को एक बेहतर अवसर मिलने की उम्मीद जाग उठी है।
जमीन तय होते ही बनेगा प्रस्ताव
पौनी पसारी मार्केट के लिए दुर्ग जिले के तीनों नगर निगम भिलाई-दुर्ग और चरोदा समेत समस्त पालिका व नगर पंचायतों में सबसे पहले जमीन का चिन्हांकन होगा। जमीन तय होते ही प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा जाएगा। इस प्रस्तावित मार्केट में दुकान के बजाए चबूतरे का निर्माण किया जाना संभावित माना जा रहा है। वहीं धूप और बारिश से बचाव के लिए उपर में पक्की शेड बनाई जा सकती है। मार्केट में नाई, लोहार, कुम्हार, मोची, बंसोड जैसे परंपरागत व्यवसाय करे वाले वर्ग को प्राथमिकता के साथ चबूतरे उपलब्ध कराये जाने सरकार की परिकल्पना को नगरीय निकायों के द्वारा साकार किया जाएगा।
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