*नियमों व मापदण्डों को दरकिनार कर ज़िलाक्षेत्र के रिहायशी इलाके में मोबाईल टॉवर का संचालन*
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*(ज़िलेभर में सैकड़ो मोबाईल टॉवर की उपयोगिता पर सवाल, नेटवर्क के नाम पर आम लोगों की स्वास्थ्य से खिलवाड़)*
*बेमेतरा:-* ज़िलाक्षेत्र में लगभग बीते दशकों से भारतीय दूरसंचार नियामक अधिकरण ट्राई के नियमों को ताक में रखकर लगातार जिलेभर की घनी आबादी से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के इलाकों तक विभिन्न मोबाइल कंपनियों के टॉवर को संचालित होती आ रही है। जिसमें सबसे बड़ी बात टॉवर लगाने के लिए दिए गए गाइड लाइंस व नीति-नियमों की अंधाधुंध अनदेखी की गई है।देखा जाए तो जिलेभर के रहवासी इलाको के बीच लगे मोबाईल टॉवर घरों से लगे हुए है।जो कि स्वास्थ्य सम्बंधित बहुत ही खतरनाक एवं हानिकारक है। जबकि इस सम्बंध में आम लोग इसके दूसरे व खतरनाक पहलू से अनजान है। एक तो इन मोबाईल टॉवरों में ऊपरी सिरों पर कई मोबाइल कंपनियों के एंटीना व इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मौजूद है। जो कभी भी आंधी तूफान में आसपास के इलाके में गिर सकते है। जिससे जनधन की हानि हो सकती है। वही इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव हानिकारक विकरणों (तरंग या एक तरह का रेडिएशन) का लगातार निकलना व फैलना है। जो मानव व अन्य प्राणियों के खतरनाक साबित होता है। एक्सपर्ट चिकित्सकों की माने तो मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले खतरनाक रेडिएशन के कारण आसपास के रहने वाले लोगों में विभिन्ना प्रकार के बीमारियों की चपेट में जाने की संभावना लगातार बनी रहती है। रेडिएशन से निकलने वाली तरंगों के दुष्प्रभाव से कई तरह के जानलेवा कैंसर बीमारी, अनिद्रा, सिरदर्द, कमजोरी, याददाश्त में कमी, चिड़चिड़ापन, चर्म रोग, जैसे ढेरों रोग होने की आशंका बनी रहती है।
उल्लेखनीय है, कि मोबाइल टॉवर लगाने के मानक नियम-नीति के अनुसार मोबाइल टॉवर घनी आबादी के बीच नहीं होनी चाहिए। शासकीय जमीन का उपयोग नहीं होना चाहिए। स्कूल-विद्यालय व बिजली लाइन के नजदीक टॉवर नहीं लगाना चाहिए। परंतु इन सबके बीच ज़िलाक्षेत्र के कई नगरीय एवं ग्रामीण इलाकों में कई कंपनियों के एंटीना के लिए लगे टॉवरों पर किसी तरह के नियम का अनुसरण नहीं किया जा रहा है। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है, कि संबंधित विभाग व जिम्मेदार प्रशासन द्वारा लगातार ज़िलाक्षेत्र के आम रहवासियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। जिस तरह लगातार रहवासी इलाके के सघन बस्ती में मोबाइल टॉवर संचालित हो रहा है, उसे देखते यही कहा जा सकता है, कि इनकी जानकारी शासन- प्रशासन को भी है और मोबाइल टॉवर संबंधी दूरसंचार विभाग को भी। उनकी सहमति को खारिज नहीं किया जा सकता है। परंतु सबसे चिंताजनक बात यह है, कि आखिर जिलेभर में मोबाइल टॉवर दूरसंचार के नीति-नियमों को दरकिनार कर दशकों तक लगातार संचालन में है, जो आम जनता के लिए काफी नुकसानदायक है।
ज्ञात हो कि मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स कैंसर जैसी भयानक बीमारी का कारण है। इस रेडिएशन का असर आसपास के जानवरों, पक्षियों व मधुमक्खियों पर काफी असर पड़ता है। इस कारण जिस क्षेत्र व इलाके में टॉवर स्थापित होता है, उस परिक्षेत्र में पक्षियां व मधुमक्खियां विलुप्त हो जाती है।
*नियम-नीति के विपरीत चलने से एरिया में दुष्प्रभाव*
दरअसल ज्यादातर मोबाइल टॉवर संबंधित एक्सपर्ट जानकारों का कहना है, कि मोबाइल टॉवरों को घनी आबादी से दूर होने के साथ पांच मीटर से कम चौड़ी गली के पास नहीं लगाना चाहिए। टॉवर के नीचे के उपकरण बंद बॉडी (ताकि शोरमुक्त) के साथ प्लॉट खाली पर एवं ऊपरी एंटीना से निकलने वाले विकिरण (रेडिएशन) की रेंज कम होनी चाहिए। इसके अलावा दो एंटीना पर सामने वाले घर की दूरी 35 मीटर व दो से अधिक एंटीना के सामने घर की दूरी 75 मीटर जरूरी है। कंपनियों को टॉवर से निकले विकिरण की रेंज 90 प्रतिशत कम के साथ उत्सर्जित करना पड़ता है। निर्देशों का उल्लंघन करने पर पांच रुपये का प्रति टॉवर प्रशासन द्वारा जुर्माना भी तय है। वहीं नुकसान का दायरा टॉवर के 300 मीटर एरिया में सबसे ज्यादा रेडिएशन होता है। वहीं एंटीना के सामने वाले हिस्से में सबसे ज्यादा तरंगे निकलती है। जाहिर है कि सामने के ही इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। इसके अलावा टॉवर के एक मीटर के एरिया में 100 गुना ज्यादा रेडिएशन होता है। इसके अलावा टॉवर में जितने ज्यादा एंटीना लगे होंगे रेडिएशन का प्रभाव भी उतना ज्यादा पड़ेगा।
*रेडिएशन से होने वाले नुकसान*
जानकारी के मुताबिक रहवासी इलाकों में मोबाइल टॉवर होने से थकान, अनिद्रा, डिप्रेशन, ध्यानभंग, चिड़चिड़ापन, चक्कर आना, याददाश्त में कमी, दिल की धड़कनों का बढ़ना, सिरदर्द, पाचन क्रिया पर असर, कैंसर का खतरा बढ़ जाना, ब्रेन ट्यूमर इत्यादि ऐसे कई बीमारियां टॉवर के हानिकारक विकिरण से उत्पन्ना होती है।