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क्या होते हैं भूरे बौने, उनके किस रहस्य को सुलझाने में लगे हैं वैज्ञानिकक्या होते हैं भूरे बौने, उनके किस रहस्य को सुलझाने में लगे हैं वैज्ञानिकWhat are brown dwarfs, scientists are trying to solve their mystery What are brown dwarfs, scientists are trying to solve their mystery

देहमारे ब्रह्माण्ड में तारों ग्रहों और ब्लैक होल के अलावा भी बहुत से पिंड हैं जो अपने अंदर कई रहस्य समेटे हैं और कई पिंडों को लेकर तो हमारे वैज्ञानिक भी स्पष्ट करने की स्थिति में नहीं होते कि उन्हें कहा क्या जाए. अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम ने पांच ऐसे पिंडों की खोज की है जिनका भार अलग होते तारों (Stars) के आसपास का है. इस तरह के पिंडों को, भूरे बौने या ब्राउन ड्वार्फ (Brown Dwarf) कहते हैं. इनकी खोज इनके रहस्यमयी स्वभाव की व्याख्या कर सकती है. भूरे बौने वे खगोलीय पिंड होते हैं जिनका भार (Mass) तारों और ग्रहों के बीच का होता है.

इन पिंडों की सीमा की समस्या
अभी यह विवाद का विषय है कि इन पिंडों के भार की सीमा क्या होनी चाहिए क्योंकि इनकी संरचना कम भार वाले तारों की तरह ही होती है. जिनेवा यूनिवर्सिटी के खगोलविज्ञान विभाग (UNIGE) के शोधकर्ता नोलन ग्रीव्स ने बताया, “हम अब भी नहीं जानते हैं कि वास्तव में भूरे बौनों की भार की सीमाएं कहां होती हैं.”

 

प्रक्रिया में ये अंतर
ग्रीव का कहना है कि ये सीमाएं उन्हें कम भार के तारों से अलग करने में मदद कर सकती है जो अरबों सालों तक हाइड्रोजन जलाते रहते हैं, वहीं भूरे तारों के जलने की अवस्था बहुत कम समय तक होती है. उसके बाद उनका ठंडा जीवन होता है. UNIGE और स्विस नेशनल सेंटर ऑफ कम्पीटेंस इन रीसर्च (NCCR) प्लेनेट्स के वैज्ञानिको की टीम ने बर्न यूनिवर्सिटी से सहयोग किया और पांच पिंडों की खोज की.

कौन से पिंड हैं ये
इन पांच पिंडों की खोज नासा के ट्रांसिटिंग एक्सोप्लेनेट सर्वे सैटेलाइट (TESS) की मदद से हुई जिन्हें ऑब्जेक्ट ऑफ इंट्रेस्ट (TOI) कहा गया और TOI-148, TOI-587, TOI-681, TOI-746 और TOI-1213 नाम दिया गया. इन्हें साथी इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये एक ही तारे का चक्कर लगता हैं. इनका परिक्रमा समय 27 दिन का है. और उनकी त्रिज्या गुरू ग्रह से .81 से 1.66 गुना है, लेकिन उनका भार 77 से 98 गुना ज्यादा है. इसी वजह इन्हें ग्रह की श्रेणी में नहीं ब्लकि भूरे बौने और तारों के बीच की सीमारेखा पर रखा गया है.

हर खोज में नई जानकारी
शोधकर्ताओं का मानना है कि इन पांच नए पिंडों में बहुत ही कीमती जानकारी है. इस पड़ताल के नतीजे एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं. UNIGE के खगोलविज्ञान विभाग की शोधकर्ता और NCCR प्लैनेट्स की सदस्य मोनिका लेंडल बताती हैं, “हर नई खोज भूरे बौने की प्रकृति के बारे में अतिरिक्त जानकारी दती है. जिससे हमें उनकी उत्पत्ति के बारे में बेहतर समझ के साथ यह भी बताती है कि वे इतने कम क्यों हैं.” वैज्ञानिकों कि इस बारे में एक संकेत से इन भूरे बौनों की आकार और उम्र के बीच संबंध का पता चला.

सिकुड़ जाते हैं ये
UNIGE के प्रोफेसर फ्रांसुआ बुशी ने बताया कि भूरे तारे समय के साथ सिकुड़ जाते हैं जब वे ड्यूटेरियम भंडार को जलाते हैं और ठंडे होते हैं. इनमें से सबसे पुराने पिंड TOI 148 और 746 की त्रिज्या छोटी है, तो वहीं युवा साथियों की बड़ी त्रिज्या है. फिर भी ये पिंड अपनी सीमा के बहुत पास हैं जहां वे आसानी से कम भार वाले तारों की श्रेणी की में आ सकते हैं.

वैज्ञानिक अभी इस नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं कि क्या ये वाकई भूरे बौने हैं इस मामले में ग्रीव्स का कहना है कि इन अतिरिक्त पिंडों की खोज के बाद भी वैज्ञानिकों के पास भूरे तारों और कम भार वाले तारों के बीत अंतर करने वाले सटीक नतीजों पर पहुंचने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं है. आने वाले अध्ययनों को और ज्यादा जानकारी खोजनी होगी.

 

 

 

 

 

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